Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामाणः
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भी कथंचित् तादात्म्य बन बैठता है । स्याद्वादसिद्धान्तका मर्म जाननेवाले विद्वान् सुलभतासे इस तत्त्वको समझलेते हैं।
व्यक्त्यात्मना तु भावस्य सर्वात्मत्वं न युज्यते । सांकर्यप्रत्ययापत्तेख्यवस्थानुषंगतः ॥ २७ ॥
शक्तिरूपसे सभी पदार्थ सर्व आत्मक हो जाते हैं, किन्तु व्यक्तिरूपसे तो पदार्थीको सर्वात्मकपना युक्त नहीं है। क्योंकि यों तो संकरपनेसे ज्ञान हो जानेकी आपत्ति होनेके कारण सभी पदार्थोकी अव्यवस्था हो जानेका प्रसंग हो जायगा । अर्थात्-अष्टसहस्रीमें कहा है कि "चोदितो दधि खादेति किमुष्ट्र नाभिधावति " दहीको खाओकी प्रेरणा करनेपर वह प्रेरित पुरुष ऊंटको पकडनेके लिये दौड पडेगा, महान् संकर हो जानेके कारण किसी भी पदार्थकी व्यवस्था नहीं हो सकेगी।
न हि सर्वथा शक्तिव्यक्त्योरभेदो येन व्यक्त्यात्मनापि सर्वस्य सर्वात्मकत्वे सांकर्येण प्रत्ययस्यापत्तेर्भावस्याव्यस्थानुषज्यते कथंचिद्भेदात् । पर्यायार्थतो हि शक्तेर्व्यक्तिभिभा तदप्रत्यक्षत्वेपि प्रत्यक्षादभेदेन तदघटनात् ।
शक्ति और व्यक्तियोंका सभी प्रकार एकान्तसे अभेद नहीं माना गया है, जिससे कि शक्ति खरूपके समान व्यक्ति आत्मकपनेसे भी सब पदार्थीको सर्वात्मकपना होते सन्ते संकरपने करके ज्ञान होनेकी आपत्ति होजाय और इस कारण पदार्थोकी नियत व्यवस्था न बन सकनेका प्रसंग हो जाय । वस्तुतः यह मार्ग है कि शक्ति और व्यक्तियोंका भी परस्परमें कथंचित् भेद है। ऊपरका कथन द्रव्य दृष्टिसे है। पर्यायार्थिकनय करके तो शक्तिसे व्यक्ति भिन्न है। क्योंकि उन शक्तियोंका छनस्थोंको प्रत्यक्षज्ञान न होते हुये भी व्यक्तियोंका प्रत्यक्ष हो जाता है । अभेद करके तो वह प्रत्यक्ष होना नहीं घटित होगा । या तो दोनोंका प्रत्यक्ष होगा अथवा दोनोंका अप्रत्यक्ष ही होगा।
ननु च यथा प्रत्ययनियमाद्यक्तयः परस्परं न संकीर्यते तथा शक्तयोपि तत एवेति कथं शक्त्यात्मकं सर्व स्यात् । न हि दहनस्य दहनशक्तावनुमानप्रत्ययः स एवोद्यानशक्ती यतस्तत्र प्रत्ययप्रतिनियमो न भवेदिति कश्चित्, सोप्युक्तानभिज्ञ एव । न हि वयं शक्तीनां संकरं ब्रूमो व्यक्तीनामिव तासां कथंचित्परस्परमसांकर्यात् । किं तर्हि, मावस्यैकस्य यावंति कार्याणि कालत्रयेपि साक्षात्पारंपर्येण वा तावत्यः शक्तयः संभाव्यंत इत्यभिदध्महे । प्रत्येकं सर्वभावानां कथंचिदनुकार्यस्य कस्यचिदभावात् । - यहां और किसीकी शंका है कि जिस प्रकार प्रतिनियत ज्ञान होनेके नियमसे व्यक्तियां परस्परमें संकीर्ण ( एकम एक ) नहीं हो रही हैं, तैसे ही शक्तियां भी तिस ही ज्ञानके नियमसे संकीर्ण नहीं होगी। ऐसी दशामें सबको शक्तिरूपसे सर्वात्मकपना कैसे होवेगा ! बताओ। देखिये, अग्निकी दाह करने रूप शक्तिमें जो अनुमानज्ञान उत्पन्न होता है वही अनुमान ज्ञान. अनिकी