Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वाचिन्तामणिः
PANKri
Anirwa.
ततो निर्बाधनादेव प्रत्ययातत्त्वनिष्ठितौ । संख्यासंप्रत्ययात्संख्या तात्त्विकीति व्यवस्थितम् ॥२८॥
तिस प्रकार बाधारहित प्रमाण ज्ञानोंसे ही यदि तत्त्वोंकी व्यवस्था होना माना जायगा तो संख्याके समीचीन ज्ञानसे संख्या भी वास्तविक होती हुई सिद्ध हो जाती है। इस प्रकार संख्याद्वारा तत्वोंका प्ररूपण करना व्यवस्थित हुआ।
यत्र निधिः प्रत्ययस्तत्ताविकं यथोभयप्रसिद्धं वस्तुरूपं, निर्बाधप्रत्ययश्च संख्यायामिति सा तात्त्विकी सिद्धा।
जिस विषयमें बाधारहित प्रमाणज्ञान प्रवर्त्त रहा है, वह पदार्थ वास्तविक है । जैसे कि वादी और प्रतिवादी दोनोंके यहां प्रसिद्ध होरहा वस्तुस्वरूप वास्तविक है । (घट, परमाणु, आदि दृष्टान्त ) बाधाओंसे रहित ज्ञान संख्या विषयमें होरहा है। इस कारण वह संख्या भी परमार्थभूत सिद्ध होजाती है। ढंगसे व्याप्तिको बनाते हुये पञ्च अवयववाले अनुमानसे संख्याकी सिद्धि कर दी है।
सा नैव तत्त्वतो येषां तेषां द्रव्यमसंख्यकम् । संख्यातोत्यन्तभिन्नत्वादुगुणकर्मादिवन्न किम् ॥ २९ ॥ समवायवशादेवं व्यपदेशो न युज्यते । तस्यैकरूपताभीष्टे नियमाकारणत्वतः ॥ ३०॥
जिन वैशेषिकोंके यहां वह संख्या वस्तुसे तदात्मक होती हुई न मानी जाकर मिन ही मानी गई है, उनके यहां संख्यासे अत्यन्त भिन्न होनेके कारण तो गुण, कर्म, सामान्य, आदिके समान द्रव्यसंख्यारहित क्यों नहीं हो जायगा ! भावार्थ-वैशेषिकोंके यहां संख्या नामका गुण द्रव्यमें रहता हुआ माना गया है । गुण, कर्म, आदिक छःमें गुण नहीं रहते हैं । " गुणादिनिर्गुणक्रियः " । जब कि गुण, कर्म, आदिकोंसे सर्वथा भिन्न पडी हुई संख्या गुण, आदिकको संख्यावान् नहीं बना सकती है, उसीके समान द्रव्यसे सर्वथा भिन्न पडी हुई संख्या भी द्रव्यको संख्यासहित न बना सकेगी। ऐसी दशामें द्रव्य संख्यारहित होकर असंख्य हो जायगा। यदि वैशेषिक यों कहें कि द्रव्यमें गुणका समवाय है। गुणमें गुणकी समवायसे वृत्ति नहीं है । अतः समवाय सम्बन्धके वशसे संख्यावाले द्रव्यका इस प्रकार व्यवहार हो जावेगा सो यह उनका कहना युक्त नहीं है । क्योंकि वैशेषिकोंने उस समवायको एकखरूपपना अभीष्ट किया है । " एक एव समवायस्तत्त्वं भावन" ऐसा कणाद सूत्र है। ऐसी दशामें वह समवाय भी अनेक स्थानोंपर नियमित व्यवहारोंका कारण नहीं होसका। अतः सर्वथा भिन्न पदार्थोसे सहितपनेका कहीं कहीं व्यपदेश होना विचारे भिन्न पड़े हुये समवायसे नहीं सिद्ध होता है।