Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तलाशोकवार्तिके
यह तो न कहना । क्योंकि परमाणुके समान समवाय भी अंशोंसे रहित है। निरंश पदार्थ भिन्न भिन्न स्थानोंपर न्यारी न्यारी घटनाओंको नहीं घटा सकता है। अनेक खम्बोंपर लम्बा रखा हुआ दश हाथका बांस अंशसहित होता हुआ ऊपरके न्यारे न्यारे बोझोंको झेल रहा है । शरीर, आकाश, लेज आदि सांश होकर ही न्यारे न्यारे देशोंमें अनेक घटनायें करा रहे हैं। वैशेषिकोंके द्वारा माना हुआ निरंश समवाय भले ही आकाशसे भी बड़ा व्यापक कह दिया जाय । फिर भी निरंश परमाणुसे उसकी अधिक शक्ति नहीं हो सकती । अनेक शक्तियां, या स्वभाव मानने पर तो . समवाय सांश हो जायगा । बात यह है कि परमाणुका पुनः दूसरा छोटा अवयव न होनेसे परमाणु निरंश कह दी जाती है । किन्तु अनेक शक्तियां गुण, पर्याय आदिके विद्यमान होनेसे जैनसिद्धांतमें परमाणुको भी सांश माना है । " एय पदेसो वि अणु णाणा खंधप्पदेसदो होदि । बहुदेसो उवयारा तेण य काओ भणंति सचण्ड " यह द्रव्यसंग्रहमें कहा है ।
ननु निरंशोपि समवायो यदा यत्र ययोः समवायिनोविशेषणं तदा तत्र तयोः प्रतिनियतव्यपेदेशहेतुर्विशेषणविशेष्यभावात् प्रतिनियामकात् स्वयं तस्य प्रतिनियतत्वादिति चेन, असिद्धत्वात् ।
फिर वैशेषिकोंका स्वमत स्थापन के लिये अवधारण है कि निरंश होता हुआ भी समवायसम्बन्ध जिस समय जहां जिन समवायियोंका विशेषण हो जायगा, उस समय वहां उन प्रतियोगी अनुयोगीरूप समवायियोंके प्रतिनियत व्यवहारका कारण माना जायगा। हम वैशेषिकोंने समवाय और अभावका तद्वानोंके साथ विशेषणविशेष्यभाव सम्बन्ध माना है। आत्मामें समवाय सम्बन्धसे ज्ञान है । यहां ज्ञान और आत्मा इन दोमें रहनेवाला समवायसम्बन्ध विशेषण है तथा प्रतियोगिता सम्बन्धसे समवायवाला ज्ञान और अनुयोगिता सम्बन्धसे समवायवाला आत्मा ये दो विशेष्य हैं । मध्यवर्ती होकर समवाय और समवायियोंकी योजना करानेवाला विशेष्यविशेषणभाव सम्बन्ध प्रत्येक समवायियोंका नियत हो रहा है । अतः प्रतिनियम करनेवाले मध्यवर्ती विशेष्यविशेषण भाव सम्बन्धसे वह समवायसम्बन्ध स्वयं प्रतिनियत हो रहा है । इस कारण निरंश भी समवायकी परमाणुसे विशेषता है । ग्रन्थकार कहते हैं कि सो यह तो न कहना । क्योंकि आप वैशेषिकोंका उक्त कथन सिद्ध नहीं है। समवाय और समवायियोंका विशेष्यविशेषणभाव सम्बन्ध भी अनवस्था होनेके कारण सिद्ध नहीं हो पाता है । अथवा हमारे कारिकामें कहे गये अनुमानको बिगाडनेके लिये दिया गया वैशेषिकोंके इस अनुमानका प्रतिनियतत्व हेतु पक्षमें नहीं वर्तनेसे प्रसिद्ध हेत्वाभास है ।
युगपन्न विशेष्यंते तेनैव समवायिनः ।। भिन्नदेशादिवृत्तित्वादन्यथातिप्रसंगतः॥ ३२॥