Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थकोकवार्तिके
क्योंकि अनुमान प्रमाण वास्तविक अर्थको विषय करता है। अन्यया अनुमानको प्रमाणपना नहीं बन सकेगा। इसका अप्रिम प्रन्यमें हम स्पष्टरूपसे व्याख्यान कर देवेंगे। ननु निर्देशादिसूत्रेषिकरणवचनादिह क्षेत्रस्य वचनं पुनरुक्तं तयोरेकत्वादिति शंकामपनुदनाह।
शंकाकार कहता है कि निर्देश स्वामित्व, आदि सातवें सूत्रमें अधिकरणका कथन कर दिया गया है । अतः पुनः इस सत्संख्या आदि सूत्रमें क्षेत्रका परिभाषण करना पुनरुक्त दोषसे प्रसित है। क्योंकि वे अधिकरण और क्षेत्र दोनों एक हैं । इस प्रकार शंकाको दूर करते हुये विद्यानन्द आचार्य स्पष्ट उत्तर कहते हैं कि
सामीप्यादिपरित्यागाद्यापकस्य परिग्रहात् । शरीरे जीव इत्यादिकरणं क्षेत्रमन्यथा ॥४१॥
"प्रामे वृक्षाः" गांवमें वृक्ष हैं, गंगायां घोषः, गंगामें घर है, ऐसे समीपपन, तीरपन,आदिके परित्याग करनेसे और व्यापक आधारके परिग्रहण करनेसे शरीरमें जीव है, यह अधिकरण समझना चाहिये और दूसरे प्रकार समीपपन आदिके सम्बन्धसे क्षेत्रकी व्यवस्था है।
शरीरे जीव इत्याधिकरणं व्यापकाधाररूपमुक्तं, सामीप्याद्यात्मकाधाररूपं तु क्षेत्रमिहोच्यते ततोन्यथैवेति न पुनरुक्तता क्षेत्रानुयोगस्य ।
शरीरमें जीव है, तिलमें तैल है, दूध में घृत है इत्यादिक व्यापक आधारस्वरूप तो अधिकरण कह दिया गया है और यहां समीपता, अन्तराल अभाव आदि आत्मक आधारस्वरूप तो क्षेत्र कहा जारहा है, जोकि उस अधिकरणसे दूसरे ही प्रकारका है। इस कारण सत्संख्या सूत्रमें क्षेत्रके अनुयोगकी प्ररूपणाको पुनरुक्तपना नहीं है। अधिकरणसे क्षेत्रका पेट बडा है। क्षेत्रमें प्रकृत आधेयके अतिरिक्त अन्य भी अनेक पदार्थ ठहर जाते हैं । क्वचित् क्षेत्र और अधिकरणका सांकर्य भी अभीष्ट है । मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना, इस ढंगसे अनेक जातिकी बुद्धिको धारनेवाले शिष्योंको प्रतिपत्ति करानेके लिये न्यारे न्यारे उपाय हैं।
त्रिकालविषयार्थोपश्लेषणं स्पर्शनं मतम् ।।
क्षेत्रादन्यत्वभाग्वर्तमानार्थश्लेषलक्षणात् ॥४२॥
भूत, वर्तमान, भविष्यत्, तीनों कालोंमें पदार्थका आधेयपनेसे संसर्ग रखनारूप स्पर्शन माना गया है, जो कि वर्तमान कालमें ही पदार्थका श्लेष रखना क्षेत्रसे मिन्नपनेको धारण करता है।
त्रिकालविषयोपश्लेषणं स्पर्शनं, वर्तमानार्थोपश्लेषणात् क्षेत्रादन्यदेव कथंचिदवसेयं । सर्वस्यार्थस्य वर्तमानरूपत्वात्स्पर्शनमसदेवेति चेन्न, तस्य द्रव्यतोऽनादिपर्वतरूपत्वेन त्रिकालविषयोपपत्रः।