Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 597
________________ तत्वार्थ लोकवार्तिके रहनेवाले छठे अधिगमक विधानकी ही सिद्धि हो जाती है। अतः निर्देश, स्वामिपन, आदिके समान वह विधान भी जानने योग्य ही है । तभी वस्तुकी पूरी तहोंका परिज्ञान हो पाता है। यहांतक अधिगतिके निर्देश आदिक छहों उपायोंका प्रदर्शन कर दिया गया है 1 तदेवं मानतः सिद्धैर्निर्देशादिभिरंजसा । युक्तं जीवादिषूक्तेषु निरूपणमसंशयम् ॥ २७ ॥ ५८४ तिस कारण इस प्रकार प्रमाणसे सिद्ध किये गये निर्देश आदिकों करके पूर्वमें कहे हुये जीव आदिक पदार्थों में या रत्नत्रयमें संशयरहित शीघ्र अधिगम होनेका निरूपण करना युक्ते है । भावार्थसूत्रकारका निर्देश आदिकों करके तत्त्वोंके अधिगमका उक्त सूत्र द्वारा निरूपण करना समुचित ही है । न हि प्रमाणनयात्मभिरेव निर्देशादिभिर्जीवादिषु भावसाधनोधिगमः कर्तव्य इति युक्तं तद्विषयैरपि निर्दिश्यमानत्वादिभिः कात्स्न्यैकदेशार्पितैः कर्मसाधनस्याधिगमस्य करणात् तेषामुक्तप्रमाणासिद्धत्वादिति व्यवतिष्ठते । " प्रमाणनयैरधिगमः " इस पहिले सूत्र के अनुसार प्रमाणनयस्वरूप निर्देश आदिकों करके ही जीव आदि पदार्थों में भावसाधन निरुक्तिसे साधा गया अधिगम करना चाहिये । इतना ही युक्त नहीं है । किन्तु साथमें उन प्रमाणनयोंके विषय और पूर्णदेश तथा एकदेशसे विवक्षित किये गये ऐसे निर्देश करने योग्य, स्वामिपनको प्राप्त, आदिकों करके भी कर्मसाधन निरुक्तिसे साधे गये अधिमका करना होता है । उन निर्देश किये जाने योग्य आदिकोंकी हम उक्त प्रमाणोंसे सिद्धि कर चुके हैं, इस प्रकार व्यवस्था बन जाती है। अर्थात् - " निर्दिश्यते अनेन इति निर्देशः " इस प्रकार करणमें निर्देश आदि शब्दोंको साधनेपर और अधिगमनं अधिगमः इस प्रकार भावमें अधिगमको साधनेपर वस्तुको पूर्णरूपसे तथा एकदेशसे जाननेवाले प्रमाण, नय, स्वरूप निर्देश आदिकों करके जीवादिकोंका अधिगम होता है तथा " निर्दिश्यतेयत् ” इस प्रकार कर्ममें यत् प्रत्ययकर पुनः शानच् और तद्धितके त्व प्रत्यय करनेपर साधे गये निर्देश्यमानत्व आदिकोंकरके " अधिगम्यते यत् " जो जाना जाय ऐसा कर्मसाधन अधिगम किया जाता है । विषय और विषयी दोनोंमें पूर्ण देश और एकदेशसे जानलियागयापन और जानलेनापन व्यवस्थित हो रहा है । उमास्वामी महाराजका विषयी और विषयकी अपेक्षासे उक्त ये दो सूत्र बनाना सार्थक है । " यथागममुदाहार्या निर्देष्टव्यादयो बुधैः । निश्चयव्यवहाराभ्यां नयाभ्यां मानतोपि वा ॥ २८ ॥ विद्वानों करके निर्देश करने योग्य, स्वामिपनको प्राप्त, आदि पदार्थोंके आगमके अनुसार उदाहरण बना लेने चाहिये । निश्चयनय और व्यवहारनय इन दोनों नयोंसे अथवा प्रमाणोंसे भी निर्देश आदिकोंके उदाहरण समझ लेना चाहिये । 1

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