Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
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नीले पुष्प और दूसरे अधिक नीले पुष्प में रंग है, जिस प्रकार नीलकी अपेक्षा रखता हुआ दूसरा अधिक नील रंग है, तिसी प्रकार दूसरे अधिक नीलेकी अपेक्षा रखता हुआ पहिला थोडा नीला रंग है। इस प्रकार परमार्थरूपसे सद्भूत नील आदिक रंगोंमें भी आपेक्षिकपना विद्यमान है । अतः व्यभिचार दोष होनेके कारण आपेक्षिकपने हेतुकी कल्पनासे आरोपेगयेपन साध्य के साथ व्याप्त नहीं जानी जाती है, जिससे कि कल्पनाओंसे आरोपी गयी अन्तरंग, बहिरंग, पदार्थोंमें रहनेवाली संख्याको निःस्वरूपपना हो जाय । अथवा अन्य पदार्थोंमें ठहरी हुई दूसरी संख्यासे प्रकृत संख्याको बाहर भीतर स्वरूपरहितपना प्राप्त हो जाय । भावार्थ- आपेक्षिक भी संख्या वस्तुभूत है स्वरूपशून्य नहीं है ।
यदि पुनरस्पष्टावभासित्वे सत्यापेक्षिकत्वादिति हेतुस्तदा साधनविकलो दृष्टांतः, स्थविष्ठत्वादिधर्माणां स्पष्टावभासित्वात् । तत्र भ्रांतमिति चेन्न, बाधकाभावात् । स्थविष्ठत्वादिधर्मप्रतिभासो न स्पष्टो विकल्पत्वादनुमानादिविकल्पवदित्यनुमानं तद्वाधकमिति चेन, पुरोवर्तिनि वस्तुनींद्रियजविकल्पेन स्पष्टेन व्यभिचारात् ।
फिर बौद्ध यदि यों कहें कि हम केवल आपेक्षिकपने हेतुसे कल्पनासे आरोपितपनेकी सिद्धि नहीं करते हैं, किन्तु कल्पनारोपितपनेको साधनेमें अस्पष्ट रूपसे प्रतिभासवाले होते सन्ते आपेक्षिकपना इतना हेतु कहते हैं, तब तो हम जैन कहते हैं कि आप बौद्धोंका माना गया दृष्टान्त साधनसे रहित होगया। क्योंकि स्थूलपना, छोटापना, लम्बापन, आदि धर्मो के भी स्पष्ट प्रकाशित होनापन विद्यमान है । अतः हेतुका विशेषण अस्पष्ट प्रकाशीपन न रहनेसे दृष्टान्तमें हेतु न रहसका । इस पर आप बौद्ध यदि यों कहें कि उन स्थूलपना आदि धर्मो में स्पष्ट प्रकाशितपना तो भ्रमयुक्त है 1 • आचार्य कहते हैं कि यह तो नहीं कहना। क्योंकि स्थूलपन आदिको बाधा देनेवाले प्रमाणका अभाव है । सीपमें हुये चांदीके ज्ञानका " यह चांदी नहीं है " इस आकारवाला बाधकप्रमाण होरहा हैं । अतः वह भ्रान्त कहा जाता है । किन्तु यहां तो कोई बाधक नहीं है। यदि आप यह बाधक प्रमाण उठावें कि बेर, आमला, अमरूद, आदिमें स्थूलपन, आदि धर्मीका प्रतिभास होना ( पक्ष ) स्पष्ट नहीं है (साध्य ) विकल्पज्ञान होनेसे (हेतु) जैसे कि अनुमान, स्मृति, आदिक सविकल्पक ज्ञान स्पष्टरूपसे जननेवाले नहीं है (दृष्टान्त) । अतः सविकल्पकज्ञान भ्रान्त हैं। यह अनुमान उस स्थूलत्वादि धर्मोके स्पष्ट प्रकाशितपनका बाधक है, ग्रन्थकार कहते हैं कि सो यह तो न कहना । क्योंकि आपके दिये हुये बाघक अनुमानका सन्मुख रखी हुई वस्तुमें स्पष्टरूपसे हुये इन्द्रियजन्य विकल्पज्ञानसे व्यभिचार आता है। अर्थात् - आंखों के आगे रखे हुये घट, पट, पुस्तक आदि में इन्द्रियजन्य विकल्पज्ञान स्पष्ट रूपसे प्रवर्त्त रहा है । किन्तु वहां स्पष्टपनेका अभावरूप साध्य नहीं है । अतः बाधक अनुमानका हेतु व्यभिचारी है । प्रमाणज्ञानका बाधक झुंठा ज्ञान नहीं होसकता है ।
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