Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वाय लोकवार्तिक
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तस्यापि पक्षीकरणादव्यभिचार इति चेत्तर्हि संभाव्यव्यभिचारी हेतुः स्पष्टत्वेन विकल्पत्वस्य विरोधासिद्धः कचिद्विकल्पत्वस्यास्पष्टत्वेन दर्शनात् स्पष्टत्वेन विरोधे चंद्रदयप्रतिभासत्वस्य सत्यत्वेनादर्शनात् स्वसंवित्पतिभासत्वस्यापि सत्यत्वं माभूत् तथा तद्विरोधसिद्धरविशेषात् । अथ प्रतिभासत्वाविशेषेपि स्वसंवित्सतिभासः सत्यः शशिद्वयप्रतिभासश्वासत्या संवादादसंवादाचोच्यते तर्हि विकल्पत्वाविशेषेपींद्रियजविकल्पः स्पष्टः साक्षादर्थग्राहकत्वात् नानुमानादिविकल्पोऽसाक्षादर्थग्राहकत्वादित्यनुमन्यतां । तथा चेंद्रियजविकल्पे व्यभिचार एव।
यदि बौद्ध उस इन्द्रियजन्य विकल्पको भी पक्षकोटिमें कर देनेसे व्यभिचार होना नहीं मानेंगे अर्थात्-स्थूलपन आदि धर्मोके प्रतिभास समान इन्द्रियजन्य विकल्प भी स्पष्ट नहीं है । अतः हेतुमानमें साध्यके भी वर्तजानेसे व्यभिचार नहीं है, इस प्रकार कहनेपर तो हम कहेंगे कि तुम्हारा हेतु सम्भाव्य व्यभिचारी है। क्योंकि विकल्पज्ञानपनेका स्पष्टपने के साथ कोई विरोध सिद्ध नहीं है। विकल्पज्ञान भी होकर स्पष्ट होसकता है । हां, विरोध होता तो व्यभिचार नहीं हो सकता था। किन्तु जब विकल्पपना होते हुये भी स्पष्टपना रक्षित रह सकता है तो ऐसी दशामें अस्पष्टपना साधनेके लिये कहा गया विकल्पपन हेतुके व्यभिचार दोषकी सम्भावना ( सन्देह ) अवश्य है, किसी किसी स्मृति या तर्कज्ञानमें विकल्पपना अस्पष्टपनेके साथ देखा जाता है । अतः विकल्पपनेका स्पष्टपनेके साथ विरोध माना जायगा तब तो नीचेके पलकमें कुछ अंगुली गढाकर आंखसे देखनेपर एक चन्द्रमामें हुये दो चन्द्रोंका प्रतिभासपना भी सत्यज्ञानपनेसे नहीं देखा जाता है । इस कारण स्वसंवेदनके प्रतिभासको भी सत्यपना नहीं हो सकेगा। क्योंकि प्रतिभासपनका उस सत्यपनके साथ विरोधकी सिद्धि होनेका कोई अन्तर नहीं है। एकसा है। इसपर यदि आप बौद्ध यों कहें कि सामान्य रूपसे प्रतिमासपनेके विशेषतारहित होते हुये भी स्वसंवेदनज्ञानका प्रतिभास होना तो संवाद हो जानेसे सत्य है और दो चन्द्रमाओंका प्रतिभास तो प्रमाणान्तरोंकी प्रवृत्ति या सफलप्रवृत्तिको पैदा करनारूप संवाद न होनेसे असत्य है। ऐसा कहे जानेपर तब तो हम भी कहते हैं कि विकल्पपनका विशेष न होते हुये भी इन्द्रियजन्य विकल्पज्ञान स्पष्ट है। क्योंकि वह विशदरूपसे अर्थका ग्राहक है। किन्तु अनुमान, स्मृति, तर्क आदि विकल्पज्ञान तो अविशदरूपसे अर्थके ग्राहक होनेके कारण स्पष्ट नहीं है । यह हमारी सम्मति मान लीजिये और तैसा होनेपर इन्द्रियजन्य विकल्पज्ञानमें स्पष्टपना ठहर जानेके कारण व्यभिचार दोष ही तदवस्थ रहा अर्थात्-आप बौद्धोंके द्वारा कहे गये बाधक अनुमानका हेतु व्यभिचारी हुआ।
- निर्विकल्पत्वादिद्रियजस्य ज्ञानस्यानिद्रियजो विकल्पास्तीति चेत्र, तस्याने न्यवस्थापयिष्यमाणत्वात् ततो नावस्पष्टावभासित्वं दृष्टान्तेस्तीति साधनवैकल्यमेव ।