Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 607
________________ ५९४ तत्वार्थ छोकवार्तिके मानी गयी क्षणिक बुद्धिकी हंसी की गयी है। देखिये, बौद्धजन शुद्धसंवेदन तत्त्वके अद्वैतकी पहिले प्रतिज्ञा करके पुनः बुद्धदेव कल्पनासे, झगडोंसे रहित है और दूसरे न्यारे संसारी जीव कल्पनाके जालोंसे घिरे हुये चित्तवाले हैं, इस प्रकार भेदका कथन करते हैं। स्थिर बुद्धिवाला मनुष्य तो अद्वैतको मानकर फिर द्वैतको पुष्ट नहीं करेगा । कथं च संवेदनाद्वैतवादिनः संवृतिपरमार्थसत्यद्वयविभागः सिद्धः ? संवृत्येति चेत्, सोऽयमन्योन्यसंश्रयः । सिद्धे हि परमार्थसंवृतिसत्यविभागे संवृतिराश्रीयते तस्यां च सिद्धायां तद्विभाग इति कुतः किं सिध्येत्, तत्र तत्त्वतो ग्रामग्राहकभावाभावे स्वेष्टसाधनं नामेति विनिश्चयः । और संवेदन के अद्वैतको कहनेकी टेव रखनेवाले वैभाषिकके यहां भला कल्पनासत्य और वास्तविक सत्य इन दो सत्योंका विभाग कैसे सिद्ध होगा ? बताओ ! इसपर बौद्ध यदि यों कहें कि वस्तुको न छूनेवाले व्यवहारसे दो सत्योंका विभाग कर लिया जायगा । यथार्थपनेसे नहीं। तब तो हम कहते हैं कि सो यह अन्योन्याश्रय दोष हुआ । वास्तविक सत्य और व्यवहारसत्यका विभाग हो जानेपर संवृतिका आश्रय लिया जाता है और उस संवृतिके सिद्ध हो जानेपर उन दो सत्योंका विभाग करना बनता है । इस प्रकार परस्पराश्रय दोषकी दशामें किससे किसकी सिद्धि की जाय । तुम ही बताओ ? तिस कारण वास्तविक रूपसे ग्राह्यग्राहकभावको माने विना अपने अभीष्ट तत्त्वकी नाममात्र भी सिद्धि नहीं हो सकती है ऐसा विशेष निश्चय समझो । बाध्यबाधकभावस्याप्यभावेनिष्टबाधनं । स्वान्योपगमतः सिध्द्येन्नेत्यसावपि तात्त्विकम् ॥ ८ ॥ झूठा ज्ञान और ज्ञेय बाध्य होता है तथा समीचीन ज्ञान और ज्ञेय बाधक होता है । अर्थात् - तदभाववान् में तत्प्रकारक बुद्धि या उस बुद्धिका विषय बाध्य है और तद्वान्में तत्प्रकारक निर्णय या उस निर्णयका विषय बाधक है, ऐसे बाध्यबाधक भावका अभाव माननेपर संवेदनाद्वैतवादियों के यहां अनिष्टतत्वमें बाधा कैसे दी जा सकेगी ? केवल अपने या दूसरोंके स्वीकार कर लेनेसे तो अनिष्टका बाधन नहीं सिद्ध हो जायगा । इस कारण वह बाध्यबाधकभाव या अनिष्टतत्त्वकी बाध करना परमार्थभूत है अथवा " अबाधे अनिष्टसाधनं पाठ होनेपर बाध्यबाधक भावकी बाधा न माननेपर आप बौद्धोंके अनिष्ट बाध्यबाधकभावका साधन हुआ जाता है। अपने या अन्यके स्वीकार करने मात्र अनिष्टकी बाधा देना कैसे भी सिद्ध न हो सकेगा। अवसर पडनेपर परपुरुषोंकी तलवार तुम्हारे काममें नहीं आ सकती है। अतः वह अनिष्टबाधन भी वास्तविक मानना चाहिये । तभी बौद्ध अपने अभीष्ट संवेदनाद्वैतकी सिद्धि कर सकेंगे । तव यह है कि बाध्यबाधकभावको मानो तो ""

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