Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थ लोकवार्तिके
कारणभावोऽकार्यकारणभाववत् । केवलं तयवहारो विकल्पशद्बलक्षणो विकल्पनिर्मित
इति किमनिष्टम् ।
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आप बौद्ध यदि यों कहें कि अपने अपने स्वभावमें व्यवस्थित हो रहे अर्थोको छोडकर कोई अन्य कार्यकारणभाव नहीं है, यही ठीक रहो । फिर अकार्यकारणपनेका जो लोक में व्यवहार हो रहा है । वह तो केवल कल्पनासे ही गढ लिया गया ही है । जैसे कि कार्यकारणभावका व्यवहार कल्पित हो रहा है । इस प्रकार कहनेपर आचार्य कहते हैं कि तब तो वास्तविक ही अकार्यकारणभाव के समान वस्तुभूत कार्यकारणभाव सिद्ध हो जाता है । हां ! केवल उनका व्यवहार तो विकल्पज्ञान या शद्वस्वरूप होता हुआ सच्ची कल्पनाओंसे बनाया गया है । ऐसा माननेमें क्या अनिष्ट होता है ? अर्थात् अकार्यकारणभाव और कार्यकारणभाव ये दोनों ही वस्तुओंके स्वभाव हैं । जैसे कि आत्मा और आकाशका अकार्य और अकारणभाव इन दोनोंका स्वभावभूत है, तथा ज्ञान [ मतिज्ञान ] और आत्माका कार्यकारणभाव भी आत्मा और ज्ञानका स्वभाव हो रहा है । ऐसे 1 अपने अपने स्वभावों में पदार्थ व्यवस्थित हो रहे हैं। संसार में स्वभाव और स्वभाववानोंके अतिरिक्त अन्य कोई वस्तुभूत पदार्थ नहीं हैं। एक बात यह है कि सर्वज्ञदेव स्वकीय केवलज्ञानसे कार्यकारण भावका व्यवहार नहीं करते हैं। क्योंकि व्यवहार करने में श्रुतज्ञानों या नयज्ञानोंका अधिकार है । यद्यपि अनेक व्यवहार और कल्पनायें वस्तुभूत परिणामोंकी भित्तिपर अवलम्बित हैं । फिर भी व्यावहारिक ज्ञान या शब्दोंके यथार्थ विषयभूतका निर्णय करनेपर वे प्रवक्तव्य ठोस वस्तु के हृदयको नहीं पा सकते हैं । सर्वज्ञदेव ठोस वस्तु या वस्त्वंशोंको जानते हैं। देखो, नैगमनयके भविष्य में कोई कोई नहीं परिणमनेवाले संकल्पितविषयोंको पारिणामिक मुद्रासे सर्वज्ञ नहीं जान पाते हैं । इस तक्षक [ बढ़ई ] के नैगमनयने प्रस्थको जाना है इसको भले ही सर्वज्ञ जान लेवें, किन्तु जो काष्ठ आवश्यकतावश मुद्गर बनाया जाकर प्रस्थ नहीं हो सका है, उस परिणामको सर्वज्ञ भला कैसे जान सकते हैं ? नैगमनयवालेने सर्वज्ञको कोई लांच [ घूंस ] तो नहीं देदी है । इसी प्रकार हमारे झूठे सांचे बहुतसे संकल्पित विकल्पित विषयोंको भी सर्वज्ञ विषय नहीं करते हैं । हमको धन, पुत्र, कलत्र विषयसेवनमें इष्टताकी कल्पना है । शत्रु, कटु औषधि, सदुपदेशमें अनिष्टताका व्यवहार हो रहा है । हमारी इस इच्छा या ज्ञानको वे जान लेवें, किन्तु जब पदार्थका वैसा परिणाम ही इष्ट अनिष्ट कल्पनाके विषयस्वरूप नहीं है तो अवक्तव्य ज्ञानधारी सर्वज्ञ हमारी कल्पना अनुसार उन विषयोंको तदात्मक कैसे जान सकते हैं ? एतावता भले ही वे असर्वज्ञ हो जाय, अनेकान्तवादियोंको यह उपालम्भ असह्य नहीं है ।
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वस्तुरूपयोरपि कार्यकारणभावे तयोरभावो वस्तु चेति न तु युक्तं व्याघातात् कचिन्नीलेतरत्वाभाववत् । ततो यदि कुतश्चित् प्रमाणादकार्यकारणभावः परमार्थतः केषां - चिदर्थानां सिध्येत् तदा तत एव कार्यकारणभावोऽपि प्रतीतेरविशेषात् यथैव हि गवादी