Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थ लोकवार्तिक
क्षेत्रप्रत्यासत्तिर्यथा बलाका सलिलयोरेकस्यां भूमौ स्थितयोः संयुक्तसंयोगी हि ततो नान्यः प्रतिष्ठामियर्ति जन्यजनकभाव एव तयोः परस्परं प्रत्यासत्तिरिति चेन्न, अन्यसर:समुद्भूतायाः परत्र सरसि बलाकायाः निवाससंभवात् । नैका बलाका पूर्वे सरः प्रविहाय सरोन्तरमधितिष्ठन्ती काचिदस्ति प्रतिक्षणं तद्भेदादिति चेन्न कथञ्चित्तदक्षणिकत्वस्य प्रतीतेर्बाधकाभावात्तद्भान्तत्वानुपपत्तेः । क्षितेः प्रतिप्रदेशं भेदादेकत्र प्रदेशे बलाकासलिलयोखस्थानान्नैव तत्क्षेत्रप्रत्यासत्तिरिति चेन्न, क्षित्याद्यवयविनस्तदाधारस्यैकस्य साधनात्। न चैकस्यावयविनो नानावयवव्यापिनः सकृदसम्भवः प्रतीतिसिद्धत्वाद्वैद्याद्याकारव्याप्येकज्ञानवत् । पदार्थों का क्षेत्र सम्बन्ध यह है । जैसे कि एक भूमिमें ठहर रहे त्रकपति और जलका संयुक्त संयोग संबन्ध हो रहा है । भावार्थ – लम्बे चौडे तालाबकी भूमिमें जल भरा हुआ है और वहीं किनारे पर बगुलोंकी पति बैठी हुयी है । ऐसी दशा में बगुला और जलका साक्षात् संयोगसम्बन्ध नहीं है, किन्तु जलसे संयुक्त नीचेकी भूमि है और उस लम्बी चौडी अवयवीस्वरूप भूमिपर बगु
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का संयोग हो रहा है । अतः बगुला और जलका परस्पर में परम्परासे संयुक्त संयोगसम्बन्ध हुआ । उससे भिन्न और कोई दूसरा सम्बन्ध यहां प्रतिष्ठाको प्राप्त नहीं हो सकता है । इस प्रकार के क्षेत्र सम्बन्धको नहीं मानकर यदि कोई उन जल और बगुलाओंका परस्पर में जन्यजनक भाव सम्बन्ध ही माने यानी सरोवरका जल जनक है और बगुला जन्य है, बगुलाओं की स्थितिका निमित्त जल ही है, आचार्य कहते हैं कि यह तो न कहना। क्योंकि दूसरे सरोबर में भले प्रकार उत्पन्न हुयी बकपङ्क्तिका उडकर अन्य सरोवरोंमें निवास होना सम्भव है । मनुष्य जैसे देशान्तर में जा वसते हैं, तैसे ही पशु, पक्षी, भी कहीं उत्पन्न होकर अन्य स्थालोंमें चले जा सकते हैं । ऐसी दशामें सरोवर के जलका और परदेशी बगुलाका जन्यजनकभाव सम्बन्ध नहीं बन पाता है । किन्तु उनका क्षेत्रसम्बन्ध ही है । यहां कोई बालकी खाल निकालनेवाले कहते हैं कि पहिले सरोवरको छोड़कर दूसरे सरोवर में निवास करती हुयी कोई बकपति एक नहीं है । क्योंकि बगुला की भिन्न भिन्न समयों में न्यारी न्यारी पर्यायें हैं । अतः बगुलाकी पहिली पर्यायोंका पहिले सरोवर के साथ जन्यजनक सम्बन्ध था और यहां आकर वसी हुयी बगुलाकी नवीन पर्यायोंका इस जलसे कार्यकारणभाव है ! यहां बगुलाकी इस क्षणमें उपजी पर्यायका कारण तो इस जल ही मानना पडेगा, सूक्ष्मता से विचार देखिये । बाल्य अवस्थासे लेकर बूढे होनेतक बगुलाको एक ही मानना भ्रान्त है | अतः अवश्य मान लिये गये कार्यकारण भाव सम्बन्धसे ही निर्वाह हो जायगा । क्षेत्र - प्रत्यासत्तिका गौरव क्यों बढाया जाता है ? ग्रन्थकार कहते हैं कि यह कटाक्ष तो नहीं करना। क्योंकि उस बकपंक्तिके कथञ्चित् अक्षीणपनेकी प्रतीतिका कोई वाधक प्रमाण नहीं है। इस कारण अण्ड [अण्डा] अवस्थासे लेकर वृद्ध अवस्थातक कालान्तरस्थायी बगुलाके अक्षिकपनकी भ्रान्ति होना नहीं बनता है । जन्मसे लेकर मरणपर्यंत जीवित रहनेवाला बगुला एक है । अतः
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