Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्यकोकवार्तिक
___स्यादिति निपातोऽयमनेकान्तविधिविचारादिषु बहुष्वर्थेषु वर्तते, तत्रैकार्यविवक्षा च स्यादनेकान्तार्थस्य वाचको गृह्यते इत्येके । तेषां शद्धान्तरप्रयोगोऽनर्थकः स्याच्छद्वेनैवानेकान्तात्मनो वस्तुनः प्रतिपादितत्वादित्यपरे, तेऽपि यद्यनेकान्तविशेषस्य वाचके स्याच्छद्धे प्रयुक्त शद्वान्तरप्रयोगमनर्थकमाचक्षते तदा न निवार्यन्ते, शद्धान्तरत्वस्य स्याच्छद्वेन कृतत्वात् । अनेकान्तसामान्यस्य तु वाचके तस्मिन् प्रयुक्ते जीवादिशद्धान्तरप्रयोगो नानर्थकस्तस्य तद्विशेषप्रतिपत्यर्थत्वात् कस्यचित्सामान्येनोपादानेऽपि विशेषार्थिना विशेषोऽनुप्रयोक्तव्यो वृक्षशद्वावृक्षत्वसामान्योपादानेऽपिधवादितद्विशेषार्थितया धवादिशदविशेषवदिति वचनात् ।
स्यात् यह तिडंत प्रतिरूपक निपात अनेकान्त यानी अनेक धर्म और विधि अर्थात् प्रेरणा करना या कार्योंमें प्रवृत्ति कराना तथा विचार करना और विद्या आदि बहुतसे अर्थोंमें वर्त रहा है । तिन अनेक अर्थोंमें एक अर्थकी विवक्षा होगी । अतः स्यात् शब्द अनेक अर्थका वाचक ग्रहण किया गया है । इस प्रकार कोई एक वादी कह रहे हैं । उनके यहां अन्य शद्बोंका प्रयोग करना व्यर्थ पडेगा। क्योंकि अकेले स्यात् शद्ब करके ही अनेक धर्मस्वरूप पूर्ण वस्तुका प्रतिपादन हो चुका है। इस प्रकार कोई दूसरे वादी एकेके आक्षेपका समाधान कर रहे हैं। अब आचार्य कहते हैं कि वे दूसरे भी विशेषरूपसे अनेकान्तको कहनेवाले स्यात् शब्दके प्रयोग करनेपर यदि दूसरे शब्दके बोलनेको व्यर्थ कह रहे हैं, तब तो हम उनको नहीं रोकते हैं । क्योंकि दूसरे शब्दके द्वारा होने योग्य प्रयोजनको स्यात् शदने ही साध दिया है । ऐसी दशामें दूसरे शब्द्वका प्रयोग करना अवश्य ही व्यर्थ है। किन्तु सामान्यरूपसे अनेकान्तके वाचक उस स्यात् शब्दके प्रयोग करनेपर तो दूसरे जीव, अस्ति, आदि शद्वोंका प्रयोग करना व्यर्थ नहीं है । क्योंकि वह विशेषरूपसे प्रतिपत्ति करनेके लिये है। किसी भी पदार्थका सामान्यरूपसे कथन किये जानेपर भी विशेष अर्थकी प्राप्तिको चाहनेवाले पुरुष करके विशेषका पीछे अवश्य प्रयोग करना चाहिये । देखो ! सामान्यवाची वृक्ष शवसे वृक्षपन सामान्यका ग्रहण होनेपर भी उस वृक्षके विशेष धव, खैर, पपिल आदिकी अभिला. षुकतासे जैसे धव आदि विशेष शब्दोंका प्रयोग करना आवश्यक कहा गया है, इसी प्रकार प्रकरणमें स्यात्के साथ उद्योतक विशेष पदोंका उच्चारण करना अवश्यंभावी है।
भवतु नाम द्योतको वाचकश्च स्याच्छद्रोऽनेकान्तस्य तु प्रतिपदं प्रतिवाक्यं चाऽश्रूय. माणः समये लोके च कुतस्तथा प्रतीयत इत्याह:
स्यात् यह शब्द अनेकान्तका घोतक हो जाओ ! अथवा भले ही वाचक हो जाओ ! हमें इसमें कोई आपत्ति नहीं है। किन्तु शास्त्रमें और लोकमें प्रत्येक पद और प्रत्येक वाक्यके साथ जुडा हुआ तो नहीं सुना जा रहा है। हजारों पद या वाक्य तो एव या स्यात् शब्द लगाये विना बोले, सुने, जा रहे हैं। फिर तैसा होनेपर वह स्यात् शब्द कैसे तिस प्रकारका प्रतीत होगा ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर आचार्य महाराज स्पष्ट उत्तर कहते हैं।