Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तस्वार्थकोकवार्तिके
विशेषणविशेष्यभूतस्य जीवापर्थस्य कर्मसाधनोऽधिगमः प्रतिपत्तुं शक्यत इति विशेषत्व पक्ष एव श्रेयान् ।
शंकाकार कहता है कि इस प्रकार तो निर्देश आदि धर्मोको करणपन माननेमें भी उत्तरोतर धर्मोके करणपनकी परिकल्पनासे भी हुआ अनवस्थादोष नहीं आता है । क्योंकि उन निर्देश्य आदि कर्मोसे भिन्न होकरके पर अपर धोका अभाव है। हां ! उन निर्देश आदिकोंको तो करणपना उन करके जाने गये अर्थको कर्मपनकी नय निरूपणासे है । नय विवक्षाको गौणकर प्रमाण अपेक्षासे यदि विचारा जाय, तब तो कर्म और करणस्वरूप होकर तीसरी जातिवाली ही वस्तु कही जाती है । इस प्रकार कोई दोष नहीं आता है । आचार्य कहते हैं कि यह शंकाकारका कहना तो अधिक अच्छा नहीं है। क्योंकि निर्देश आदिकोंका करणपन माननेपर कर्म साधनपना नहीं बन सकता है। जो कि कर्मस्थ अधिगमको माननेपर इष्ट किया जा चुका है। हां ! हमारे कथनानुसार निर्देश आदिक यदि विशेषण माने जाय तो वह कर्मसाधनपना बन जाता है। प्रायः अन्यवादी भी विशेषण और विशेष्यका अभेद माननेको उत्सुक हैं, किन्तु स्याद्वादियोंके अतिरिक्त सभी विद्वान् कर्मसे करणको मिन्न ही मानते हैं । अतः विशेषणविशेष्य स्वरूप हो रहे जीव आदि अर्थका कर्ममें निरुक्ति कर साधा गया अधिगम होना जाना जा सकता है। इस कारण करण पक्षसे विशेषणपनका पक्ष ही बहुत अच्छा है । जैनसिद्धान्तके अनुसार सब व्यवस्था बन जाती है । एकान्तपक्षमें नहीं।
सकलविशेषणरहितत्वाद्वस्तुनी न सम्भवत्येव निर्दिश्यमानरूपमिति मतमपाकुर्ववाहा
निरंश वस्तु संपूर्णविशेषणोंसे रहित है । अतः वस्तुका कथन करने योग्यपना स्वरूप नहीं सम्भवता है, वस्तु अवक्तव्य है। इस प्रकारके बौद्धमतका खण्डन करते हुए आचार्य महाराज स्पष्ट वक्ता होकर कथन कर रहे हैं।
भावा येन निरूप्यन्ते तद्रूपं नास्ति तत्त्वतः। तत्वरूपवचो मिथ्येत्ययुक्तं निःप्रमाणकम् ॥ ७॥ यत्तदेकमनेकं च रूपं तेषां प्रतीयते । प्रत्यक्षतोऽनुमानाच्चाबाधितादागमादपि ॥ ८॥
जिस स्वरूप करके पदार्थ निरूपण किये जाते हैं, परमार्थरूपसे विचारा जाय तो वह पदार्थोका वास्तविकस्वरूप ही नहीं है । अतः उस स्वरूपका वचन करना मिथ्या है। इस प्रकार अपनी कारिका बनाकर कह दिया गया बौद्धोंका मन्तव्य युक्तियोंसे रहित है और किसी भी प्रमाणके विषय न होनेसे अप्रमाणीक है । जिस कारणसे कि उन पदार्थोके समीचीन प्रत्यक्ष प्रमाण और