Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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कि क्या उस प्रत्यक्षको अब सम्पूर्ण आकारोंसे रहितपना मान रहे हो ? बताओ। बौद्ध यदि यों कहें कि उस प्रत्यक्षका तो केवल संवित्ति होना ही आकार है । अतः वास्तविकरूपसे तिस प्रकार आकार रहितपना धर्म भी नहीं माना जाता है । बौद्धोंके इस प्रकार कहनेपर तो हम कहेंगे कि यों वास्तविक आकारोंकी सिद्धि क्यों न हो जावेगी ? अर्थात् जब ज्ञानमें आकाररहितपना नहीं है तो यही कल्पनारूप आकारोंसे सहितपना स्वतः ही आ जाता है । और ज्ञानमें मान लिया गया संवित्ति आकार भी वस्तुभूत नहीं है यह नहीं समझना । यानी ज्ञानमें संवित्तिकी कल्पना वस्तुभूत है। अन्यथा संवित्तिके अद्वैतका अभाव हो जायगा। यह प्रसंग तो बौद्धोंको इष्ट न पडेगा । तिस कारणसे कल्पित होनेके कारण सम्पूर्ण धर्मोके निरात्मक ( रहित ) पनेको यदि वस्तुका स्वरूप माना जायगा, तब तो वस्तुका स्वरूप कुछ न कुछ भले प्रकार सिद्ध हो ही जाता है । जिस कारण कि दूसरे प्रकारसे यानी धर्मरहितपनेको वस्तुका स्वरूप नहीं माननेपर तो वस्तुभूतपना होनेके कारण उस वस्तुको सम्पूर्ण धर्मोंसे सहितपना फिर स्वतः सिद्ध हो जाता है । इस प्रकार कारिकाकी व्याख्या करना अत्यन्त प्रिय प्रतीत हो रहा है। ____ अथवा वस्तुभूतनिाशेषधर्माणां नैरात्म्यं वस्तुनो यदि स्वरूपं तदा तस्य स्वरूपसंसिद्धिस्तत्स्वरूपस्यानिराकरणात् । अन्यथा तस्य पररूपत्वप्रकारेण तु सैव वस्तुभूतधर्मयुक्तता वास्तवाखिलधर्माभावस्य वस्तुनः परमावे तादृशसकलधर्मसद्भावस्य स्वात्मभूतत्वप्रसिदेरन्यथा तदनुपपत्तेः।
___ अथवा दूसरे प्रकारसे इस कारिकाकी व्याख्या करते हैं कि वास्तविक सम्पूर्ण धर्मोका रहित'पना यदि वस्तुका स्वरूप है, तब तो उस वस्तुके स्वरूपकी यों ही विना प्रयत्नके भले प्रकार सिद्धि हो गयी। क्योंकि उस वस्तुके स्वरूपका आप बौद्धोंने निराकरण नहीं किया है, वस्तुका कुछ न कुछ तो स्वरूप मान ही लिया है । अन्यथा यानी धर्मरहितपनेको वस्तुका स्वयं गांठका रूप न मानोगे तो उस धर्मरहितपनेको पररूपपने प्रकारसे तो वही वास्तविक धर्मोसे युक्तपना आ जाता है। कारण कि वस्तुभूत अखिल धर्मोके अभावको वस्तुका स्वभाव न मानकर परभाव माना जायगा तो तैसे वास्तविक सकल धर्मोके सद्भावको स्वात्मभूतपना प्रसिद्ध हो जाता है। अन्यथा यानी धर्म सहितपनेको स्वात्मभूत माने विना धर्मरहितपनेका परभावपना बन नहीं सकता है। अर्थात् जिस • वस्तुसे धर्मरहितपना दूर पड़ा हुआ होकर परका भाव हो रहा है, उस वस्तुका धर्मसहितपना आत्मीयभाव बन बैठता है । इसमें किसी दूसरेका लेना देना नहीं है।
- अथवा कल्पितानां वस्तुभूतानां च निःशेषधर्माणां नैरात्म्यं वस्तुमः स्वरूपं यदि तदा तस्य स्वरूपसंसिद्धिरन्यथा कल्पिताकल्पितसकलधर्मयुक्तता तस्येति व्याख्येयं सामा'न्येन निम्शेषधर्मवचनात् । व्याघातश्चास्मिन् पक्षे नाशंकनीयः कल्पितानां वस्तुभूतानां च
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