Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थ लोकवार्तिके
११ द्रव्यसामान्येनाविशेषितेनैवास्ति १२ गुणसामान्येन गुणत्वेन स एव नास्तीति च मंगद्वयं, धर्मसमुदायेन त्रिकालगोचरानन्तशक्तिज्ञानादिसमितिरूपेणास्ति १४ तद्व्यतिरेकेणीपलभ्यमानेन रूपेण नास्तीति च भंगद्वयं, १५ धर्मसामान्यसम्बन्धेन यस्य कस्यचिद्धर्मस्याश्रयत्वेनास्ति १६ तदभावेन कस्यचिदपि धर्मस्यानाश्रयत्वेन नास्तीति च भंगद्वयं, १७ धर्मविशेषसम्बन्धेन नित्यत्वचेतनत्वाद्यन्यतमधर्मसम्बन्धित्वेनास्ति १८ तदभावेन तदसम्बन्धित्वेन नास्तीति च भंगद्वयमित्यनेकधा विधिप्रतिषेधकल्पनया सर्वत्र मूलभंगद्वयं निरूपणीयम् ।
उन ऊपरके नौ युगलोंमें प्रत्येकका स्पष्ट ( खुलासा ) इस प्रकार है कि प्रयोजन, प्रकरण, सम्भवपना, हेतु, उचितपना, देश, काल, और अभिप्रायोंसे जान लिया गया शब्दका वाच्यार्थ होता है । इस प्रकार अर्थ, प्रकरण, आदिका नहीं आश्रय करनेपर केवल अभिप्रायके अधीन वर्त्तने वाले और सबमें साधारणरूपसे पाया जाय ऐसे वस्तुपने करके जीव आदिक पदार्थ हैं ही । तथा उस सर्व साधारणपन के अभावरूप तुच्छ अवस्तुपने करके जीव आदिक नहीं ही हैं । इस प्रकार पहले दो भंग कहे जाते हैं ( १ ) तथा तिस प्रकार शद्वके द्वारा कथन कर कानसे ग्रहण किये गये विशिष्ट सामान्य जीव आदिपने करके जीव आदिक हैं और उसके प्रतियोगी विशिष्ट सामान्यके अभाव अजीव आदिपने करके नहीं हैं । भावार्थ - वस्तुस्व, सत्ता, आदि व्यापक सामान्य हैं और उनके विशेष होकर व्याप्य सामान्य जीवत्व, पुद्गलत्व, आदि हैं। अनेक मनुष्य, तिर्यञ्च, आदि जीवों में साधारणरूपसे जीवत्व रहता है। अतः जीवत्व विशेषस्वरूप होता हुआ भी सामान्य है । उस जीवत्वरूप विशिष्ट सामान्यसे जीव है और मल्लप्रतिमल्ल न्याय से उसके प्रतियोगी यानी प्रतिकूल अजीवत्व करके जीव नहीं है । इस प्रकार दो मूलभंग दूसरे कहे गये ( २ ) तथा तिसही विशिष्ट सामान्य करके जीव है और उसके अभाव सामान्य करके जो कि दूसरी वस्तुओंसे तदात्मक हो रहा हैं, ऐसे अन्य सबमें रहने वाले सामान्य करके जीव नहीं हैं। भावार्थ-सत्ताके व्याप्य और ब्राह्मण, मनुष्य, आदि विशेषोंके व्यापक ऐसे जीवत्व सामान्यसे जीव है, किन्तु जीवको छोडकर अन्य सब वस्तुओंमें रहनेवाले सामान्य धर्मकी अपेक्षासे जीव नहीं है । विशेष प्रतिष्ठित विद्वान् राजा या तपस्वी मनुष्य के होते हुए भी सामान्य ( साधारण ) जीव या पदार्थका निषेध कर दिया जाता है । इस प्रकार भी तीसरे दो भंग बन गये ( ३ ) तिस ही ढंगसे उस विशिष्ट सामान्य करके जीव है और उसके विशेषणों में मुख्यरूपसे रहनेवाले सामान्य करके नहीं हैं । अर्थात् जीवत्वपनेसे जीव है। किन्तु वह सामान्य जीव अकेले मनुष्य या अकेले ब्राह्मणकी ही मुख्यताको लेकर नास्ति (नहीं )
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है । इस रीति से चौथे दो मंग बन गये ( 8 ) तथा विशेषोंसे रहित द्रव्यत्व सामान्य करके जीव है। और विशेषोंसे सहित प्रतियोगीस्वरूप अजीव आदिपन करके नहीं है । भावार्थ - जिस समय व्यापक द्रव्यत्व करके जीव अस्ति विवक्षित हो रहा है, उस समय व्याप्य सामान्य अजीवत्व या.
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