Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्यचिन्तामणि:
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मिथ्या समझे जाते हैं ! सभी प्रकारोंसे निर्देश आदिक सत्य ही नहीं हैं । जैसे गाढ सोते हुए या मदोन्मत्त, मूर्च्छित, आदि जीवोंके शद्ब सत्य नहीं हैं। तथा वे निर्देश आदिक शब्द असत्य ही होय यह भी नहीं है, क्योंकि प्रत्यक्ष अनुमान आदि प्रमाणोंके समान सफल प्रवृत्तिके जनक होनेके कारण अनेक शब्द सत्य भी प्रसिद्ध हो रहे हैं। यहां निर्देश आदि करके अर्थ, ज्ञान और शङ्ख तीनों पकडे गये हैं ।
किं स्वभावैर्निर्देशादिभिरर्थस्याधिगमः स्यादित्याहः –
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किस स्वभाववाले निर्देश आदिकों करके जीव आदिकोंका अधिगम करना होवेगा । ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द आचार्य वार्तिकको कहते हैं।
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तैरर्थाधिगमो भेदात्स्यात्प्रमाणनयात्मभिः । अधिगम्यस्वभावैर्वा वस्तुनः कर्मसाधनः ॥ ६ ॥
प्रमाण और नयस्वरूप उन निर्देश आदिकों करके पूर्णरूप और एकदेशसे जीव आदि वस्तुका अधिगम होता है । यहां आत्मासे प्रमाण, नयस्त्ररूप करणज्ञानोंकी भेदसे विवक्षा की गयी है । कर्त्ता में हो रहा अधिगम कर्त्तासे भिन्न विषयी मूत प्रमाण नयों करके किया जाता है । तथा अधिपूर्वक गम् धातु सकर्मक है, अतः कर्ताके समान कर्ममें भी रहती है । तब कर्ममें अच् प्रत्ययकर साधा गया वस्तुका अधिगम होना जानने योग्य स्वभाववाले विषयभूत निर्देश आदिकों करके होता है । भावार्थ — मूलसूत्र करणमें तसि प्रत्यय किया गया है । कर्त्तामें रहनेवाला अधिगम आत्मासे न्यारे माने गये प्रमाण, नयस्वरूप निर्देश आदिकों करके होता है और कर्ममें रहनेवाला अधिगम जानने योग्य वस्तुके स्वभात्रभूत जड निर्देश आदिकों करके होता है ।
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कर्तृस्थोऽधिगमस्तावद्वस्तुनः साकल्येन प्रमाणात्मभिर्भेदेन निर्देशादिभिर्भवतीति प्रमाणविशेषास्त्वेते । देशतस्तु नयात्मभिरिति नयाः ततो नाप्रमाणनयात्मकैस्तैरधिगतिरिष्टा यतो व्याघातः ।
श्रोतारूप कर्त्ता में स्थित हो रहा वस्तुका पूर्णरूपसे अधिगम तो प्रमाणस्वरूप निर्देश आदिकों करके होता है । यहां श्रोता आत्माके प्रमाणस्वरूप ज्ञानको भेद करके विवक्षित किया है । इस कारण आत्मा श्रोता प्रमाणस्वरूप निर्देश आदिकों करके जीव आदि वस्तुका अधिगम कर लेता है । इस वाक्यमें कर्ता, करण, और क्रिया, भिन्न भिन्न प्रतीत हो रही हैं । इस प्रकार कर्त्तामें स्थित अधिगमको करनेवाले ये निर्देश आदिक ज्ञान पांच प्रमाणोंमेंसे कोई विशेष प्रमाण [श्रुतज्ञान] स्वरूप है । और कर्ता में स्थित हो रहा वस्तुका एकदेशसे अधिगम होना तो नयस्वरूप निर्देश आदिकों करके होता है । इस कारण वे निर्देश आदिक नयज्ञान हैं। यानी प्रमाण, नय स्वरूप निर्देश आदिकों करके दोनों प्रकारोंसे अधिगम हो जाता है । प्रमाण नयोंसे भिन्न मिध्याज्ञानरूप