Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्यचिन्तामणिः
४९५
घावमें चौगुनी दाह बढती है । जलकी जमाई हुई बर्फ के टुकडे टुकडेमें गर्मी घुसी हुई है। समुद्रमें वडवानल है ।
एक कच्चे और पके चने या चावलमें मध्यकेन्द्रसे लेकर ऊपरतक पचासों पर्तीतक न्यारे न्यारे अनेक स्वाद हैं । सात हाथकी लाठीको मध्यमें पकडकर बालक भी उठा सकता है । इसके उष्टमांश भागको पकडकर युवा पुरुष उठा लेता है । किन्तु अन्तिम मात्र आधा इश्व भागको पकडकर तो कोई बड़ा पहलवान् भी नहीं उठा सकता । यहां लाठीके सर्व अवयवोंमें शोक नामक पर्याय शक्तिके न्यारे न्यारे अनेक वस्तुभूत धर्म वर्त रहे मानने पडते हैं ।
समझ जाते हैं । मरण करा देना "
ढाई द्वीपमें सभी क्षेत्रोंकी अपेक्षा सुदर्शन मेरु उत्तर दिशामें है । इस सिद्धान्तानुसार सूर्यका पश्चिममें उदय होना अबला, बालक सभी " अष्टसहस्त्री " में एक स्थानपर लिखा हुआ है कि – अनेक जीव विषकी " शक्तिका ज्ञान रखते हुए भी उसकी कुष्ठ दूर करनेकी शक्तिका परिज्ञान नहीं कर पाते हैं । एक लौकिक दृष्टान्त है किकिसी प्रसिद्ध नगर में एक धुरन्धर वैद्य रहता था । वहां अनेक वैद्य, हकीमों, डाक्टरोंसे निराश होकर एक उदुंबर कुष्ट रोगी आया । धुरन्धर वैद्य महाराज प्रत्येक रोगीको देखकर औषधिका परचा लिख दिया करते थे । रोगी स्वेच्छापूर्वक बाजारसे दवाई खरीद कर इष्ट सिद्धि कर लेते थे । यह कुष्ट रोगी भी प्रसिद्ध वैद्यजीके पास चिकित्सा करानेके लिये उपस्थित हुआ । वैद्यजीने कष्टसाध्य रोगका निदान कर और काकतालीयन्यायके समान असम्भव नहीं किन्तु अशक्य, • द्वै औषधिका सेवनपत्रपर लिखकर रोगीको दे दिया । और कह दिया कि इस रोगका इलाज अतीव कठिन है, तुम कुछ दिनमें मर जाओगे ।
दुःख पीडित दरिद्र रोगी भी हताश होकर शीघ्र मृत्युको चाहता हुआ बनकी ओर चल दिया । वहां पहुंच कर देखता है कि एक नरकपाल में तत्कालवर्षााके भरे हुये पानीको काला भुजङ्ग पी रहा है । मरणाकांक्षी कोढीने मृत्युका बढ़िया उपाय समझकर खोपडीके विषमय जलको धाप कर पीलिया, उसी समयसे वह रोगी चङ्गा होने लगा । और कुछ ही दिनोंमें हृष्ट पुष्ट, बलिष्ठ, गर्विष्ठ होकर अनुभवी वैद्यजीके निकट आया, और कहने लगा कि आपने मेरी चिकित्सा करनेकी उपेक्षा थी । किन्तु मैं आपके सामने नीरोग, बलवान् खडा हुआ हूं। कहो तो तुम्हें ही पटक मारूं ? वैद्यजीने कहा कि तुम्हारे रोगकी केवल एक ही औषधि थी जो कि मैंने परचेमें लिख दी थी। उस दवाई का मिलना शक्यानुष्ठान नहीं समझकर हमने तुम्हारी चिकित्सा करनेका निषेध कर दिया था । वैद्यने उस भूतकुष्टरोगीसे अपनी औषधिका लिखा हुआ पत्र निकलवाया। उस परचेमें जहरीले काले प्रचण्ड सर्पके द्वारा मनुष्य खोपडीमें भरे हुये तत्कालीन वर्षाकै पानी पी लेनेका औषधि सेवन लिखा पाया गया ।