Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामाणः
काम करना, ईटें चिनना, आदि अनेक कार्योको करनेवाले भी मनुष्योंके समानपन देखा जाता है । अन्यथा ये चितेरा, बढई, राज आदि समान हैं इस प्रकारकी प्रतीति नहीं हो सकती थी। अतः व्यभिचार हो जानेसे एक कार्यको करने और न करनेकी अपेक्षासे समानपने और विसमानपनेक व्यवस्था करना ठीक नहीं।
समानासमानकार्यकरणाद्भावानां तथाभाव इति चेत् कुतस्तत्कार्याणां तथा भावः ? समानेतरस्वकार्यकरणादिति चेत्, स एव पर्यनुयोगोऽनवस्था च ।।
___ जो समान कार्योको करें वे समान पदार्थ हैं और जो विसदृश कार्योको करें, वे विसमान भाव हैं, इस प्रकार सदृश और विसदृश कार्योंके करनेसे पदार्थोके तिस प्रकार सदृशपन और विसदृशपन व्यवस्थित हैं ऐसा बौद्धोंके कहनेपर तो हम पूंजेंगे कि उन सदृश, विसदृश, कार्योका तिस प्रकार समानपन और असमानपन कैसे हुआ ? बताओ! इसका उत्तर तुम बौद्ध यदि यों दो कि उन कार्योने भी सदृश और विसदृश अपने उत्तरवर्ती कार्योको किया, अतः वे सदृश विसदृश माने गये, तब तो पुनः उन कार्योंके कार्योंपर भी वहीं हमारा प्रश्नरूप आक्षेप होता जायगा और आप बौद्ध उत्तर भी वही अपने अपने सदृश विसदृश कार्योंके करनेका देते जायगे और यों अनवस्था दोष हो जाता है।
तथोत्पत्तिरिति चेत् सर्वभावानां तत एव तथाभावोऽस्तु । समानेतरकारणत्वात्तेषां तथाभावः इत्यप्यनेनापास्तं, समानेतरपरिणामयोगादास्तथेत्यप्यसारं, तत्परिणामानामपरथापरिणामयोगात् तथाभावेनवस्थितेः। स्वतस्तु तथात्वेऽर्थानामपि व्यर्थस्तथापरिणामयोगः। _____ यदि बौद्ध यों कहें कि तिस प्रकार समान और असमानपनेसे पदार्थोकी उत्पत्ति हो जाती है हम क्या करें ? इसमें अनवस्थादोष कुछ नहीं है, ऐसा उनके कहनेपर तो सम्पूर्ण पदार्थोकी तिप्त ही कारणसे वैसी समान और विसमानपनेकी व्यवस्था हो जाओ ! यह उपाय अच्छा है । स्याद्वादियोंको अभीष्ट है । समान और विसमान कारणोंसे उत्पन्न हो जानेके कारण उन पदार्थोकी तिस तिस प्रकार सदृशता और विसदृशता है इस प्रकार बौद्धोंका निर्वाह करना भी इस उक्त कथनसे निराकृत हो गया समझ लेना चाहिये । क्योंकि उन कारणोंमें और उनके भी कारणोंमें सदृशता, विसदृशताकी व्यवस्था करनेके लिये प्रश्न उठाते उठाते अनवस्था हो ही जायगी। समान परिणतियों और विसमान परिणतियोंके योगसे पदार्थ तिस प्रकार सदृश, विसदृश हैं । इस प्रकार कहना भी निस्सार है । क्योंकि उन परिणामोंके सदृश विसदृशपनेके नियामक दूसरे प्रकारसे अन्य परिणाम माने जायगे, उनके योगसे तिस प्रकार व्यवस्था माननेपर फिर वहां भी प्रश्न उठेगा । उसका उत्तर भी तिस प्रकारका दिया जायगा । ऐसा होनेपर अनवस्थादोष है । इस ढंगसे किसी पदार्थकी व्यवस्था नहीं होती है । हां ! अन्यकी अधीनताके विना स्वतः ही अपनी अपनी योग्यतावश उन परिणामोंके सद्दशविसदृशपन, की व्यवस्था मानोगे तब तो पदार्थोकी भी अपनी योग्यतावश