Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थकोकवार्तिके
दस रुपयेका नोट होते हुए भी एक रुपयेका निषेध कर दिया जाता है, अथवा एक रुपयेके होनेपर भी पैसा नहीं है, कह दिया जाता है । एवं एक जिनदत्तके होनेपर भी जिनदत्त और इन्द्रदत्त दोनों नहीं है, जैसे यह कह दिया जाता है, उसी प्रकार उभयके होनेपर अकेलेका भी अभाव कह देते हैं । शरीरका हाथ, आमका पत्ता, ये व्यवहार भी तभी सिद्ध होते हैं । अतः एक एक असर्वका निषेध करनेपर सर्वका विधान हो जाता है । तथा संसारके सभी पदार्थ दूसरेको मिलाकर दो बन सकते हैं तथा अन्य दोको मिलाकर सभी वस्तुएं तीन बन जाती हैं। इस प्रकारके वाच्यार्थ को कहनेवाले द्वि, त्रि, चतुः, आदि पद भी अद्वि, अत्रि आदिका निषेध करते हुए दो आदिक की विधि करते हैं। कोई विरोध नहीं है । बडी संख्यासे छोटी संख्याका कथञ्चित् भेद माना गया है । अतः केवलान्वयी पदार्थोंके भी स्याद्वाद परिपाटीके अनुसार व्यवच्छेद्य बन जाते हैं । व्यवच्छेद करनेवाला पद सार्थक हो जाता है । तिस कारण इस प्रकार सिद्धान्त पुष्ट हुआ कि विवादमें पडा हुआ अन्य पदोंसे रहित केवल पद (पक्ष) व्यवच्छेद्यसे सहित है ( साध्य )। पदपना होनेसे ( हेतु )। जैसे कि घट, पट आदि पद हैं ( दृष्टान्त ) । इस अनुमानसे व्यवच्छेद्यपना सिद्ध हो जानेपर दूसरे अनुमान द्वारा व्यवच्छेद्य सहितपन हेतुसे केवलपदको सार्थकपना भी उन पट, घट आदिकोंके समान साध लिया जाता है । इस प्रकार अपनेसे भिन्न प्रतियोगियोंकी व्यावृत्ति करके स्वार्थके प्रतिपादन करनेमें जैसे वाक्यका प्रयोग सार्थक है, उसीके समान पदके प्रयोगमें भी एवकार द्वारा अवधारण करना युक्त है । अन्यथा नहीं कहे हुएके समान हो जानेके कारण उस पदका प्रयोग करना व्यर्थ हो जायगा । भावार्थ-वाक्यमें एवकार लगानेके समान पदमें भी अन्य व्यावृत्तिके लिए एवकार लगाना सार्थक है।
__ अन्ये त्याहुः सर्व वस्त्विति शद्धी द्रव्यवचनो जीव इत्यादिशद्ववत् । तदभिधेयस्य विशेष्यत्वेन द्रव्यत्वात्, अस्तीति गुणवचनस्तदर्थस्य विशेषणत्वेन गुणत्वात् । तयोः सामान्यात्मनोविशेषाद्यवच्छेदेन विशेषणविशेष्यसम्भवत्वावद्योतनार्थ एवकारः। शुक्ल एव पटः इत्यादिवत्, स्वार्थसामान्याभिधायकत्वाद्विशेषणविशेष्यशद्धयोस्तत्सम्बन्धसामान्यघोतकत्वोपपत्तेः एवकारस्येति । तेऽपि यदि विशिष्टपदप्रयोगेनैवकारः प्रयोक्तव्य इत्यभिमन्यन्ते स्मृते तदा न स्याद्वादिनस्तेषां नियतपदार्थावद्योतकत्वेनाप्येवकारस्येष्टत्वात् । अथास्त्येव सर्वमित्यादिवाक्ये विशेष्यविशेषणसम्बन्धसामान्यावद्योतनार्थ एवकारोन्यत्र पदप्रयोगे नियतपदार्थावद्योतनार्थोऽपीति निजगुस्तदा न दोषः।
अन्यवादी तो ऐसा कहते हैं कि जीव, घट इत्यादि शद्बोंके समान सर्व, वस्तु, ये शब्द भी द्रव्यको कहनेवाले द्रव्यवाची शब्द हैं। क्योंकि इनके द्वारा कहा गया अर्थ विशेष्य होनेके कारण द्रव्य है तथा अस्ति यह शब्द गुणको कहता हुआ गुण शद्ध है ।वे द्रव्य और गुण दोनों ही सामान्य स्वरूप है । यानी एक द्रव्य साधारणरूपसे अनेक गुणोंका आधार बन रहा है और एक गुण भी