Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
जातिमुद्रासे अनेक द्रव्योंमें पाया जाता है। उन सामान्य स्वरूपोंका विशेषरूपसे पृथग्भाव करके विशेषण विशेष्यभाव होरहेपनको प्रगट करनेके लिये एवकार लगाना चाहिये । जैसे कि “ शुक्ल एव पटः, द्रोण एव व्रीहिः "धौला ही कपडा है, चार अढैया ही चावल है, इत्यादि स्थलोंपर विशेषण विशेष्योंका कर्मधारय करनेकी योग्यतासे व्यभिचारकी सम्भावनामें एवकार लगाया जाता है। विशेषण शब्द और विशेष्य शब्द दोनों ही तो अपने अपने अर्थको सामान्यरूपसे कह रहे हैं। उनके सामान्यरूपसे सम्बन्धको द्योतन करनेके लिये एवकारका लगाना आवश्यक है। तभी एवकारको द्योतकपना सध सकेगा। आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार जिनका कहना है, वे भी यदि विशिष्टपदका उच्चारण करनेपर या सामान्यद्वारा विशेषका स्मरण कर लेनेपर एवकारका प्रयोग नहीं करना चाहिये । इस प्रकार अभिमानपूर्वक मान रहे हैं, यानी सामान्यरूप पदोंके साथ एव लगाना चाहिए। विशेषवाचक पदोंके साथ नहीं लगाना चाहिये । तब तो वे स्याद्वादी नहीं है, क्योंकि उन स्याद्वादियोंने नियमित विशिष्ट पदार्थक प्रगट करनेकी अपेक्षासे भी एवकारका प्रयोग करना इष्ट किया है । भावार्थ-मीमांसक सामान्यरूपसे विशेष्य विशेषण भाव सम्बन्ध प्रगट करनेके लिये तो एवकार लगाना माने और विशेष सम्बन्धसे ग्रस्त हो रहे विशिष्ट पदके प्रयोग करनेपर एवकार लगाना न मानें, यह तो कोरा अभिमान मात्र है । जब कि सर्वत्र अन्य व्यावृत्तियां की जा सकती हैं तो सभी वाक्योंमें एवकार लगाना चाहिये और वे यदि “ अस्त्येव सर्वं, नीलघटमेवानय " सभी पदार्थ कथञ्चित् हैं ही, नीले घडेको ही लाओ इत्यादि वाक्योंमें तो सामान्यरूपसे विशेषण विशेष्यके सम्बन्धको प्रगट करनेके लिये एवकार लगाना चाहिये । तथा दूसरे स्थलोंपर पदके प्रयोग करनेपर नियमित पदार्थोके प्रगट करनेके लिये भी एवकार लगाना चाहिये । इस प्रकार कहेंगे तो कोई दोष नहीं है । यह स्याद्वादसिद्धान्तके अनुकूल पडता है।
केन पुनः शद्धेनोपात्तोर्थ एवकारेण द्योत्यत इति चेत्, येन सह प्रयुज्यते असाविति प्रत्येयम् । पदेन हि सह प्रयुक्तोऽसौ नियतं तदर्थमवद्योतयति वाक्येन वाक्यार्थमिति सिद्धम् ।
फिर किस शद्वके द्वारा कहा जाकर ग्रहण किया गया अवधारणस्वरूप अर्थ एवकारसे द्योतित किया जाता है ? भावार्थ-मृत्तिका आदिकसे निष्पन्न हुआ घट जैसे प्रदीपसे घोतित हो जाता है । ऐसे ही किस वाचक शब्दसे कथन किया गया नियम करना रूप अर्थ एवकारसे व्यक्त कर दिया जाता है ? बताओ ! ऐसा पूंछनेपर तो हमारी ओरसे यह उत्तर समझ लेना चाहिये कि जिस पद या वाक्यके साथ वह एवकार प्रयुक्त किया जाता है, उसी पद या वाक्यसे कहा जा
चुका अर्थ एव निपातसे अभिव्यक्त कर दिया जाता है । जब पदके साथ निश्चयसे वह एव प्रयुक्त किया जायगा तो नियत किये गये उस पदके अर्थको प्रगटित कर देगा। और जब वाक्यके साथ एवकार लगा दिया जायगा तो वाक्यके नियमित अर्थको प्रकाशित कर देवेगा । इस प्रकार अनिष्ट