Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थलोकवार्तिके
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पुरुषको भी धूम और शब्दसे अग्नि और वाच्यार्थका ज्ञान हो जाना चाहिये था ! हाँ ! करणज्ञानके सहायक होनेसे धूमज्ञान और शद्बज्ञान उपचारसे ज्ञापक माने जा सकते हैं ।
हानादिवेदनं भिन्नं फलमिष्टं प्रमाणतः । तदभिन्नं पुनः खार्थाज्ञानव्यावर्तनं समम् ॥ ४२ ॥ स्याद्वादाश्रयणे युक्तमेतदप्यन्यथा न तु । हानादिवेदनस्यापि प्रमाणादभिदेक्षणात् ॥ ४३॥
हेय पदार्थमें हानका ज्ञान करना और आदि पदसे उपादेयको उपादानरूपसे समझना तथा उपेक्षणीयमें उपेक्षा ज्ञान होना ये तीनों ज्ञानरूप फल तो प्रमाणसे भिन्न इष्ट किये गये हैं और फिर उस क्षण अपने तथा अर्थके विषयमें अज्ञाननिवृत्तिरूप प्रमितिका होना तो प्रमाणसे अभिन्न फल है। इस प्रकार स्याद्वादसिद्धान्तके आश्रय करनेपर तो यह भेद अभेदकी व्यवस्था करना युक्त भी है । अन्यथा यानी अन्य प्रकार बौद्धोंके मतानुसार प्रमाण और फलका सर्वथा अभेद मानना और वैशेषिकोंके मतानुसार प्रमाण और फलका सर्वथा भेद मानना तो समुचित नहीं है । हान, उपादान,
और उपेक्षाके ज्ञानका भी प्रमाणसे कथञ्चित् अभेद दीख रहा है। यानी ये प्रमाणसे सर्वथा भिन्न नहीं हैं । कभी घट, सर्प, चन्द्रमा आदिको देखकर कुछ समय पीछे उपादान, हान, उपेक्षा, बुद्धियां होती हैं और कभी प्रमाणके समय ही उपादान आदि बुद्धियां संकरात्मक हो जाती हैं । हां, अज्ञाननिवृत्ति तो नियमसे प्रमाणके समयमें ही होती है। अतः प्रमाण और फलका कथञ्चित् भेदाभेद मानना ही सर्व सम्मत होना चाहिये ।
हानोपादानोपेक्ष्यज्ञानं व्यवहितं फलं प्रमाणस्याज्ञानव्यावृत्तिरव्यवहितमित्यपि स्याद्वादाश्रयगे युक्तमन्यथा तदयोगात्, हानादिज्ञानस्यापि प्रमाणात् कथंचिदव्यवधानोपलब्धेः सर्वथा व्यवहितत्वासिद्धेः । तथाहि___हेयको छोडना, उपादेयको ग्रहण करना, उपेक्षणीयकी अपेक्षा नहीं करना, उपेक्षा करना ये कृतियां या इनका ज्ञान तो प्रमाणके व्यवहित फल हैं । क्योंकि प्रमाण होनेके पीछे होनेवाले हैं और उस विषयके अज्ञानकी व्यावृत्ति हो जाना साक्षात् अव्यवहित फल है। कारण कि प्रमिति उसी समय हो जाती है । यह कथञ्चित् भेदाभेदका सिद्धान्त भी कथञ्चिद्वाद अथवा अनेकान्त मतका सहारा लेनेपर युक्त होगा। अन्यथा उस प्रमाणफलपनेका अयोग है। कचित् हेयका छोडना आदि ज्ञान भी प्रमाणसे कथञ्चित् व्यवधान रहितपनेसे होते हुए देखे जाते हैं। अतः सभी प्रकारोंसे उनको व्यवहितपना असिद्ध है । तिसी प्रकारको ग्रन्थकार स्पष्टरूपसे भविष्यग्रन्थ द्वारा कथन करते हैं।