Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
स्वार्थ लोकवार्तिके
गया प्रतिबिम्ब भला चेतन ज्ञानमें कैसे पड सकता है ? । प्रतिबिम्बको लेना और देना दोनों पुद्गलके पर्याय है । अमूर्तज्ञानके नहीं ।
प्रतिकर्मव्यवस्थानस्यान्यथानुपपत्तितः ।
साकारस्य च बोधस्य प्रमाणत्वोपवर्णनम् ॥ ३३ ॥ क्षणक्षयादिरूपस्य व्यवस्थापकता न किम् । तेन तस्य सरूपत्वाद्विशेषान्तर हानितः ॥ ३४ ॥
३८८
बौद्ध कहते हैं कि ज्ञानको साकार माने विना प्रतिनियत विषयको जाननेकी व्यवस्था होना दूसरे प्रकारोंसे बन नहीं सकती है। इस कारण प्रतिबिम्बको धारण करनेवाले साकार ज्ञानको प्रमाणपका कथन किया जाता है । अर्थात् जब कि घटज्ञान प्रकाशमान चेतन पदार्थ है तो वह घटको ही क्यों जानता है ? पट, पुस्तक, आदिको क्यों नहीं प्रकाशता है ? सूर्य क्या शूद्र या अपवित्र पदाके प्रकाश करनेमें आनाकानी करेगा ? अर्थात् नहीं। इससे प्रतीत होता है कि ज्ञानमें जिसका आकार ( छाया पडा है उसीको ज्ञान जान सकता है, अन्यको नहीं । तदाकारपनेसे तत्को जाननेकी ' व्यवस्था नियत हो रही है । इस प्रकार बौद्धोंके कहनेपर तो हम जैन कहते हैं कि वह ज्ञान क्षणिकत्व, स्वर्गगमन शक्ति, आदि विषयस्वरूपकी व्यवस्था क्यों नहीं करा देता है ? उस क्षणक्षयादिकका उन नीलादिकके साथ अभेद होनेके कारण ज्ञानमें तदाकारता तो है ही, अन्य कोई विशेषता है नहीं । अर्थात् बौद्धोंने नीलज्ञानको नीलका व्यवस्थापक तो माना है । किन्तु नीलसे माने गये अभिन्न उसके क्षणिकपनेका व्यवस्थापक नहीं माना है, तभी तो क्षणिकत्वके निर्णयार्थ अनुमान और विकल्पज्ञान उठाये जाते हैं । आत्माकी स्वर्गप्रापणशक्तिको जाननेके लिये भी आत्मज्ञानसे निराले ज्ञान उपयोगी होते हैं । अतः तदाकार होनेसे ज्ञान तत्का व्यवस्थापक है इस नियममें व्यभिचार हुआ ।
यथैव हि नीलवेदनं नीलस्याकारं बिभर्ति तथा क्षणक्षयादेरपि तदभिन्नत्वाद्विशेषान्तरस्य चाभावात् । ततो नीलाकारत्वान्नीलवेदनस्य नीलव्यवस्थापकत्वे क्षणक्षयादिव्यवस्थापकतापत्तिरन्यथा तदाकारेण व्यभिचारात् ।
जिस ही प्रकार नीलस्वलक्षणको जाननेवाला निर्विकल्पक ज्ञान नीलके आकारको धारण करता है, तैसे ही नीलके स्वभावभूत क्षणिकत्व, अणुत्व, असाधारणत्व, आदिके आकारोंको भी धारण करता है । क्योंकि वे उससे अभिन्न हैं, तथा नीलके आकार क्षणिकत्वादिके आकारोंके धारणमें भेद सूचक अन्य कोई विशेषता नहीं है । तिस कारण नीलका आकार धारण करनेसे नीलज्ञानको यदि Ata forest व्यवस्थाक माना जायगा तो उस ज्ञानको क्षणिकत्व आदिकी व्यवस्था करानेवालेपनकी आपत्ति हो जायगी । अन्यथा यानी पेटसे निकाले हुए पुत्रोंके साथ ही यदि पक्षपात किया