Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
तादात्म्यपरिणामस्य तयोः सिद्धेः कथञ्चन । प्रत्यक्षतोऽनुमानाच्च न प्रतीतिविरुद्धता ॥ १७ ॥
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स्याद्वादियों करके अंतरंग और बहिरंग पदार्थोंकी सांश रूपसे सिद्धि हो चुकनेपर एकान्त-वादी अपने अंशोंमें अंशीके वर्तनेके विकल्प ग्रहण कर पहिले दिये गये दूषणोंको कहते हैं, सो ठीक नहीं है । क्योंकि वैशेषिकोंके यहां अंश अंशीका सर्वथा भेद माननेपर वे दोष लागू हो जाते हैं । किन्तु यहां स्याद्वादसिद्धान्तमें अंशी और अंशोंका सभी प्रकारोंसे भेद होना नहीं माना है। उन अंश और अंशका कथंचित् तादात्म्य सम्बन्ध नामका परिणाम होना प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाणसे सिद्धः हो रहा है । किसी भी प्रतीति से विरोध नहीं है । हस्त, पाद, ग्रीवा, पेट, आदि अवयवोंमें शरीर अवयवीका कथञ्चित् तादात्म्य सम्बन्ध हो रहा है यह प्रतीतिसिद्ध है । संयोग, समवाय, आदि सम्बन्ध मानने पर अनेक दोष आते हैं ।
स्वांशेष्वंशिनः प्रत्येकं कात्स्न्र्त्स्न्येन वृत्तौ बहुत्वमेकदेशेन सावयवत्वमनवस्था चेति न दूषणं सम्यक्तस्य स्वांशेभ्यो भिन्नस्यानभ्युपगमात् । कथंचित्तादात्म्यपरिणामस्य प्रसिद्धेस्तस्यैव समवायत्वेन साधनात् ।
उक्त वार्तिकों का भाष्य इस प्रकार है । अद्वैतवादी कहते हैं कि अपने अंशोंमें अंशीका पूर्ण रूपसे वर्तना मानोगे तब तो जितने अंश हैं उतने प्रत्येक अंशी हुए । इस ढंग से अंशी बहुत हो जावेंगे। यदि एक देशसे वृत्ति मानोगे तो उक्त दोष टल गया । किन्तु प्रथमसे ही अवयवीको सांश.. पना मानना पडेगा और इन पहिले अंशोंमें भी अवयवीकी एक देशसे वृत्ति मानी जावेगी तो फिर भी पहिलेसे ही अवयवीको सांशपना यानी पूर्ववर्ती अन्य अवयवोंसे सहितपना सिद्ध हो चुका होगा । तब तो तीसरे एकदेशरूपी अंशोंसे सहित अवयवीको सांशपना मानते हुए अनवस्था हो जावेगी भावार्थ — सहस्र तन्तुरूप अवयवोंमें एक पटरूप अंशीकी यदि सम्पूर्ण पटपनेसे एक एक तन्तु वृत्ति मानी जावेगी तब तो एक तन्तुमें पूरा एक पट रह गया और दूसरेमें दूसरा पट रह गया, इस प्रकार सहस्र हो जावेंगे । यदि हजारू तन्तुओंमें एक एक भागसे पटकी वृत्ति मानी जावेगी, यानी हजार भागोंसे एक पट हजार तन्तुओंमें विद्यमान है, इस पक्षमें पटके बहुत ( हजार ) पका प्रसंग तो निवृत्त हो गया, किन्तु अवयवोंमें वृत्ति होनेके पूर्व ही दूसरे अवयवोंकी अपेक्षा पटमें सांशपना था. यों मानना पडेगा । तभी तो वह अपने एक देशसे रहेगा अब उन दूसरे अनेक अंशों में भी एक एक भागसे पटकी वृत्ति मानी जावेगी तो तीसरे अंशोंसे भाग सहितपना पटको पहिले हीसे मान लेना पडेगा । उन तीसरे अंशोंमें भी चौथे अंशोंसे सहित पटकी एक एक भाग करके वृत्ति मानते मानते अनवस्था हो जावेगी । पांचवें अंशोंमें वर्तनेके लिये छठवें आदि अंशोंसे बनाये गये एक एक भागकी आकांक्षायें बढती जावेगी । कहीं दूर जाकर भी ठहर नहीं