Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
यदि फिर बौद्ध यों कहें कि अर्थका निर्विकल्पक दर्शन तो उसकी विकल्पवासनाका जगानेवाला होनेसे विकल्पज्ञानको उत्पन्न कर देता है। विना जाने हुए अर्थसे चित्तमें बैठी हुयी विकल्पवासनाएं प्रबुद्ध नहीं होपाती हैं । तब तो हम कहेंगे कि तिस ही कारण क्षणमें क्षय हो जाना, स्वर्गपापण करा देना आदि निर्विकल्पकसे जाने हुए विषयोंमें भी विकल्पके उत्पन्न हो जानेका प्रसंग होगा जब कि नील पीत, आदि स्वलक्षणोंके उस निर्विकल्पक ज्ञानने नील आदिमें होनेवाले विकल्पज्ञानकी जननी विकल्पवासनाका जैसे प्रबोध कराया है। उसी प्रकार क्षणिकत्वका निर्विकल्पक ज्ञान भी वहां क्षणिकत्वके विकल्पज्ञानको उत्पन्न करानेमें भी सहायक हो रही विकल्पवासनाका प्रबोधक हो जावेगा । कोई अन्तर नहीं है तो फिर निर्विकल्पक प्रत्यक्ष द्वारा अनध्यवसायरूपसे जानलिये गये क्षणनाशीकपनेका या दानी विज्ञानकी स्वर्गप्रापणशक्तिका अथवा हिंसककी नरकप्रापणशक्तिका निश्चयरूप विकल्पज्ञान क्यों न हो जाय ? जो कि आपको इष्ट नहीं है।
क्षणक्षयादावनभ्यासान्न तत्तद्विकल्पवासनायाः प्रबोधकमिति चेत, कोयमभ्यासो नाम ? बहुशो दर्शनमिति चेन्न, तस्य नीलादाविव तत्राप्यविशेषादभावासिद्धेः । तद्विकल्पोत्पत्तिरभ्यास इति चेत् तस्य कुतः क्षणक्षयादिदृष्टावभावः ? तद्विकल्पवासनाप्रबोधकत्वाभावादिति चेत्, सोऽयमन्योन्यसंश्रयः । सिद्धे हि क्षणक्षयादौ दर्शनस्य तद्विकल्पवासनापबोधकत्वाभावभ्यासाभावस्य सिद्धिस्तत्सिद्धौ च तसिद्धिरिति ।
- यदि बौद्ध यों कहें कि क्षणिकत्व आदिमें अभ्यास नहीं होनेके कारण वह क्षणिकत्वका निर्विकल्पक ज्ञान उसकी विकल्पवासनाका उद्बोधक नहीं है । नील, पीतमें अभ्यास हो जानेसे वासना शीघ्र उद्बुद्ध हो जाती है, इसपर तो हम पूंजेंगे कि आपके यहां यह अभ्यास भला क्या पदार्थ माना गया है ? बताओ ! बहुत बार किसी विषयका निर्विकल्पक ज्ञान हो जाना तो अभ्यास नहीं हो सकता है। क्योंकि ऐसा अभ्यास तो नील, पीत, आदि स्वलक्षणोंमें जैसे है उसीके समान उन क्षणक्षय आदिके दर्शनमें भी विद्यमान है- कोई अन्तर नहीं है। अतः उस अभ्यासका क्षणिकत्व आदिमें अभाव कहना असिद्ध है । जो नील, पीत, आदिको जानता है उसी समय उनके वस्तुभूत क्षणिकत्व आदिको भी निर्विकल्पक द्वारा जान लेता है । यदि उनके विकल्पज्ञानोंकी उत्पत्ति हो जाना ही अभ्यास माना जावेगा तो क्षणिकत्व आदिके निर्विकल्पक दर्शनमें उस अभ्यासका अभाव है । यह कैसे कहा जाय ? बताओ। यदि उनकी विकल्पवासनाओंका प्रबोध करानेवाला न होनेसे अभ्यासका अभाव कहा जावेगा तब तो यह वही अन्योन्याश्रयदोष हुआ । क्षणिकत्व आदिमें हुए निर्विकल्पकदर्शनको उन क्षणक्षय आदिकी विकल्पवासनाओंके प्रबोधकपनेका अभाव सिद्ध हो जाय । तब विकल्प उत्पन्न हो जानारूप अभ्यासका अभाव सिद्ध होय, और अभ्यासके अभावकी सिद्धि हो जानेपर क्षणिकत्वमें हुए निर्विकल्पकको उसकी विकल्पवासनाका प्रबोधकत्वाभाव सिद्ध