Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
स्यामर्थक्रियायां प्रवृत्तेः समानदेशता ययोत्पादेतिशयस्तैस्तत्रापेक्षते । तदनपेक्षाश्च कथं साधारणाद्यर्थक्रियाहेतवोऽतिप्रसंगादिति न घटादिव्यवहारभाजः स्युः। ____ यदि फिर बौद्ध यों कहें कि एकपनेसे प्रतीतिका विषय होनेके कारण जल लाना, छत लादना, आदि अर्थक्रिया एक ही मान ली गयी है । यानी अनेक परमाणुओंसे यद्यपि अनेक क्रियायें होती हैं फिर भी अनेक एकोंमें एकत्वधर्म रहता है । अतः वे सब एक हैं, तब तो हम कहेंगे कि तिस ही कारण घट, सोट, आदि अवययी भी एक क्यों न हो जायेगा । यदि बौद्ध यों कहें कि केवल व्यवहारसे एक अवयवी हो जाओ! क्योंकि उन अनेक अवयवोंमें एकपनेका ज्ञान उपचारसे कल्पित माना गया है, ऐसा कहनेपर तो आप बौद्धोंके द्वारा मान ली गयी जल लाना, पानी खींचना, आदि अर्थक्रिया भी कल्पित व्यवहारसे एक हो जाओ! क्योंकि व्यवहारसे वह एकपनेका ज्ञान होना यहांपर भी अन्तर रहित है । वस्तुतः जल लाना आदि अर्थक्रियायें भी अनेक ही ठहरेंगी। तिस प्रकार स्वीकार करनेपर तो वास्तविकरूपसे भिन्न भिन्न देशमें रहनेवाले परमाणुओंकी एक अर्थक्रिया प्रवृति होनेसे समनदेशपना कैसे सिद्ध होगा ? बताओ । जिस समानदेशतांसे कि उत्पाद होनेपर उन परमाणुओं करके वहां वह अतिशय अपेक्षणीय होवे । अर्थात् प्रायः दस पंक्तियोंके पूर्व बौद्धोंने समानदेशपनेसे उत्पाद होनारूप अतिशयकी अपेक्षा परमाणुओंके मानी थी, किन्तु अनेक परमाणुओंसे हुयी एक अर्थक्रिया सिद्ध नहीं मानी जा रही है तो वह आतिशय नहीं बना। और उस अतिशयकी नहीं अपेक्षा रखते हुए परमाणु अनेक परमाणुओंके द्वारा साधारणरूपसे साध्य जल लाना आदि अर्थक्रियाके कारण भला कैसे हो सकते हैं ? अतिप्रसंग हो जावेगा। यानी अतिशयोंसे रहित बालू, पारा आदि भी जल लाना, जल धारण करना आदि क्रियाओंको करनेमें समर्थ हो जायेंगे । इस प्रकार अतिशयोंसे रीते परमाणु विचारे घट, पट
आदि व्यवहारको धारण करनेवाले नहीं होसकते हैं, किन्तु एक घट अवयवी है । एक पट अवयवी है इत्यादि व्यवहार वस्तुभूत हो रहे हैं। वे अवयवी अपने योग्य असाधारण कार्योको भी कर रहे हैं। .... न चायं घटायेकत्वात्ययः सांवृतः स्पष्टत्वादक्षजत्वादाधकामावाच्च यतस्तदेकत्वं पारमार्थिकं न स्यात् । ततो युक्तांशिनोऽयक्रियायां शक्तिरंशवदिति नासिद्धं साधनम् ।
घट, पट, आदि अवयवियोंके एकपनेका ज्ञान ( पक्ष ) झूठा या कल्पित नहीं है ( साध्य ) क्योंकि वह ज्ञान विशद है और इन्द्रियोंसे जन्य है तथा बाधक प्रमाणोंसे रहित है । इन तीन हेतुओंसे घटमें एकत्वज्ञान प्रमाणरूप सिद्ध हो जाता है जिससे कि उस अवयवीका एकपना पारमार्थिक न होवे। यानी एकपनेके प्रमाणज्ञानसे अवयवीमें एकपना वस्तुभूत सिद्ध हो जाता है । तिस कारण अंशवाले अवयवीकी अर्थक्रिया करनेमें सामर्थ्य मानना युक्त है । जैसे अवयव ( अंश ) अपने योग्य अर्थक्रियाको करता है । अतः कल्पनारोपित नहीं है । आप सौगत परमाणुओंको मानते ही है।