Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
१४२
तत्वार्थ लोकवार्तिके
- आप बौद्ध किसी सम्बन्धविशेषसे उन परमाणुओंका इन्द्रियजन्य ज्ञानमें विषय पड जाना यदि इष्ट कर रहे हो तब तो स्थूल अवयवीके प्रत्यक्ष होनेका खंडन आप कैसे कर सकेंगे ? सभी वादि - योंके यहां अवयवीको बनानेवाले परमाणुओंका सम्पूर्णरूप से अथवा अनुमान द्वारा दूसरे प्रकारसे ज्ञान होना सिद्ध है । पहिले उन परमाणुरूप अवयवोंका ज्ञान करके पीछे अवयवीका ज्ञान होना बन जाता है, अथवा एक साथ भी अवयव और अवयवीका ज्ञान होना बन जाता है। कोई एकान्त रूपसे नियम नहीं है । अर्थात् इन्द्रियगोचर अवयवोंका ज्ञान होकर पीछे अवयवीका ज्ञान हो जाता है । जैसे कि तन्तुओंको देखकर पट ( थान ) का ज्ञान हो जाता है। तथा अवयव और अवयवीका दोनोंका ज्ञान एक साथ भी हो जाता है। जैसे पमोली और पाँडेका या बूंदी और लड्डुका का ज्ञान हो जाता है । स्याद्वादियोंने जैनसिद्धान्तमें अवयव और अवयवीके प्रत्यक्ष करनेमें नैयायिक या सांख्योंके समान कोई कुत्सित हठ नहीं पकड़ रखा है ।
1
यदि पुनर्न परमाणवः कथंचित्कस्याचिदिन्द्रियबुद्धेर्गोचरा नाप्यवयवी । न च तत्रेन्द्रियजं प्रत्यक्षमभ्रान्तं सर्वमालम्बते, भ्रान्तमिति वचनात् । सर्वज्ञानानामनालम्बनत्वादिति मतिस्तदा प्रत्यक्षं कल्पनापोढम भ्रान्तमिति वचोनर्थकमेव स्यात् कस्यचित्प्रत्यक्षस्याभावात् । यदि फिर बौद्धोंका यह मन्तव्य हो कि परमाणुएं किसी भी प्रकार किसीके भी इन्द्रियजन्य ज्ञान विषय नहीं हैं और अवयवी भी किसीके ज्ञानसे नहीं जाना जाता' । तथा उनमें उत्पन्न हुआ इन्द्रियजन्य भ्रान्ति रहित प्रत्यक्षज्ञान भी ठीक सभी विषयोंको आलम्बन नहीं करता है । क्योंकि बहिरंग विषयोंको जाननेवाले सम्पूर्ण ज्ञान भ्रान्त हैं ऐसा हमारे शास्त्रोंमें कहा है । सम्पूर्ण ज्ञान स्वको ही जानते हैं । विषयको नहीं। सभी ज्ञानोंका विषयभूत कोई आलम्बन कारण नहीं है, जिसको कि ज्ञानद्वारा जाना जाय, इस प्रकार योगाचार या वैभाषिकोंका विचार है । तब तो हम कहेंगे कि आप बौद्धोंने प्रत्यक्षका लक्षण कल्पनाओंसे रहित और भ्रान्तिरहित जो स्वीकार किया है वह वचन व्यर्थ ही हो जावेगा। क्योंकि आपके विचारानुसार तो किसी भी प्रत्यक्षज्ञानका होना सम्भव नहीं है । यानी सौत्रान्तिक बौद्धोंने बहिरंग इन्द्रियोंसे जन्य और मनसे जन्य तथा योगियोंका एवं स्वसंवेदन इस प्रकार चार प्रत्यक्ष माने हैं । किन्तु ये चारों ही अपने विषयोंको जानते हुए आलम्बनसहित हैं। सभी ज्ञानोंको यदि निर्विषय माना जावेगा तो कोई भी प्रत्यक्ष नहीं बन सकेगा ।
1
1
स्वसंवेदनमेवैकं प्रत्यक्षं यदि तत्त्वतः ।
सिद्धिरंशांशिरूपस्य चेतनस्य ततो न किम् ॥ ११ ॥
यदि विज्ञानाद्वैतवादी बौद्ध अन्य प्रत्यक्षोंको न मानकर केवल स्वसंवेदनको ही वास्तविकरूपसे एक प्रत्यक्ष स्वीकार करेंगे, तब तो उस स्वसंवेदन प्रत्यक्षसे अंश और अंशीस्वरूप महान् ( लम्बे चौडे ) चेतन आत्माकी सिद्धी क्यों न हो जावेगी ? अर्थात् स्वसंवेदन प्रत्यक्ष तो स्थूल