Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
तिसी प्रकार धारण, आकर्षण, भारवहन, आदि अर्थक्रियाओंको अवयवी करता है । इस प्रकार अकल्पित, मुख्य, अवयवीको सिद्ध करनेके लिये प्रायः बीस बाईस पंक्तियोंके पूर्वमें हम जैनोंके द्वारा दिया गया अर्थक्रिया करनेमें सामर्थ्यरूप हेतु असिद्ध हेत्वाभास नहीं है । अर्थात् अवयोंसे न हो सकें ऐसी अर्थक्रियाओंको अवयवी स्वतन्त्ररूपसे करता है जो अर्थक्रियाको कर रहा है । वह वस्तुभूत तो मानना ही पडेगा । हमारा हेतु पक्षमें ठहर गया। ___स्पष्टज्ञानवेद्यत्वाच्च नांशी कल्पनारोपितोंशवत् । नन्वंशा एव स्पष्टज्ञानवेद्या नांशी तस्य प्रत्यक्षेऽप्रतिभासनादिति चेत् न, अक्षव्यापारे सत्ययं घटादिरिति संप्रत्ययात् । असति तदभावात् । ___ अर्थक्रिया करनेकी सामर्थ्यसे अवयवीको सिद्धकर पुनः वार्तिकमें व्यतिरेक मुखसे कहे गये दूसरे अनुमानसे भी अंशीको सिद्ध करते हैं । अंशी ( पक्ष ) कल्पनाओंसे गढ लिया गया नहीं है, यानी वस्तुभूत है, ( साध्य ) विशद प्रत्यक्षज्ञानसे जाना गया होनेसे ( हेतु ) जैसे कि परमाणुरूप अंश ( दृष्टान्त )। यह उदाहरण बौद्धोंके मन्तव्यानुसार दिया गया है । वस्तुतः छद्मस्थ जीवोंके इन्द्रियजन्य प्रत्यक्षसे परमाणुओंका ज्ञान नहीं होता है। हां ! अवयवीको बनानेवाले छोटे छोटे कपाल, तन्तु, आदि अंशोंका ज्ञान हो जाता है । इस अनुमानपर बौद्ध अनुनय सहित कटाक्ष करते . हैं कि स्पष्टज्ञानके द्वारा अंश ही जाने जाते हैं अंशी नहीं, उस अंशीका तो प्रत्यक्षमें कभी प्रतिभास ही नहीं होता है । अब आचार्य कहते हैं कि यह तो न कहना । क्योंकि चक्षुः, स्पर्शन, आदि इन्द्रियोंके व्यापार होनेपर यह स्थूल घट है, यह एक बडा पट है इत्यादिक भले प्रकार ज्ञान हो रहे हैं । इन्द्रियोंके व्यापार न होनेपर मोटे घट आदिकका ज्ञान नहीं होता है । अतः अन्वय, व्यतिरेकसे. अवयवीका इन्द्रियजन्य स्पष्ट ज्ञान होना प्रसिद्ध है । यही हम जैनोंने हेतु दिया है।
नन्वक्षव्यापरेशा एव परमसूक्ष्माः संचिताः प्रतिभासन्ते त एव स्पष्टज्ञानवेधाः फेवलपतिभासानन्तरमाश्वेवांशिविकल्पः प्रादुर्भवनक्षव्यापारभावीति लोकस्य विभ्रमः, सविकल्पाविकल्पयोनियोरेकत्वाध्यवसायायुगपद्धृत्तेलघुवृत्तेर्वा । यदांशदर्शनं स्पष्टं तदैव पूर्वाशदर्शनजनितांशिविकल्पस्याभावात् । तदुक्तं-" मनसोर्युगपवृत्तेस्सविकल्पाविकल्पयोः । निमूढो लघुवृत्तेर्वा तयोरैक्यं व्यवस्यति" इति । तदप्ययुक्तम् ।
• बौद्ध सतर्क होकर अपने पक्षका अवधारण कहते हैं कि इन्द्रियोंके व्यापार होनेपर अत्यन्त सूक्ष्म परमाणुरूप अंश ही एकत्रित हुए जाने जा रहे हैं वे अंश ही स्पष्ट ज्ञानसे जानने योग्य विषय हैं, केवल इतनी विशेषता है कि अंशों की ज्ञप्तिके अव्यवहित उत्तरकालमें शीघ्र ही अंशीका झूठा विकल्पज्ञान प्रकट हो जाता है । वह इन्द्रियोंके व्यापार होनेपर हुआ है ऐसा जनसमुदायको भ्रम हो रहा है । अर्थात् इन्द्रियव्यापारसे अंशोंका निर्विकल्पक ज्ञान होता है और शीघ्र ही वासना