Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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इस अंगी सम्यग्दर्शनके निःशंकित, नि:कांक्षित, आदि आठ अंग माने गये हैं । बुद्धिमान् पुरुष अंगोंको देखकर अंगीका अनुमान कर लेते हैं । गोम्मटसारकी प्ररूपणासे वीस अंक परिमित सौ संख या अठारह अंक प्रमाण एक संख मनुष्योंमें टोटल अनुसार एक ही मनुष्य सम्यग्दृष्टि हो सकता है । २४ अंक प्रमाण पर्याप्त मनुष्योंकी संख्या होनेपर भी तो १० नील मानवोंमें एक ही सम्यग्दृष्टि बननेका अधिकारी रहजाता है।
___ इस त्रिलोक, त्रिकाल, अबाधित, अखण्ड, सर्वज्ञोक्त, सिद्धान्तकी सत्यताका युक्तिपूर्ण अनुमान भी इस अग्रिमविवेचनपर अवलंबित है।
उस सिद्धान्तकी पुष्टि के लिये निःशंकित आदि आठ गुणोंके प्रतिपक्ष होरहे शंकादि आठदोष आजकल अस्मदादि मनुष्योंमें कितने कैसे पाये जाते हैं ? इसकी निष्पक्ष, खरी, आलोचना करनी पडती है । जो मनुष्य सर्वज्ञोक्त आगममें शंका कर रहा है, अथवा वीतराग धर्मका बहिरंग श्रद्धालु होकर भी भोगोपभोगोंकी आकांक्षा कर रहा है, मुनियोंके पवित्र शरीरमें घृणा करता है, जैनमतबाह्य दार्शनिकोंके गुणाभासोंकी प्रशंसा स्तुतिओंके पुल बांधता है, वह दीन विचारा निःशंकित, निःकांक्षित, निर्विचिकित्सादि गुणोंको बिलकुल भी नहीं पाल सकता है । सुनिये।
बात यह है कि नाना प्रकारके संकल्प, विकल्पोंमें फंसे हुये प्राणियोंके इस कालमें सम्यक्त्व होना अतीव दुर्लभ है, असंभव तो नहीं है । जब कि असंख्यात योजन चौडे अन्तिम स्वयंभूरमण द्वीपकी परली ओरके अर्धभागमें असंख्याते तिथंच, देशव्रती, पांचवे गुणस्थानवाले पाये जाते हैं, तो जिनालय, जिनागम, तीर्थस्थान, गुरुसंगति, संयमी, सत्संगादि अनेक अनुकूलताओंके होते हुए यहां भरत क्षेत्रसंबंधी आर्यखण्डके मध्यप्रान्तमें सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति हो जाना असंभव नहीं कही जा सकता है।
सूक्ष्म विचारके साथ पर्यवेक्षण किया जाय तो करोडों, अरबों जीवोंमें एक, दो जीवके ही शंकायें करता नहीं मिलेगा, शेष सभी जीव प्रायः हृदयमें व्यक्त, अव्यक्त रूपसे शंका पिशाचियोंसे प्रसित होरहे हैं । परलोक है या नहीं ? बडे, बडे स्नेही जीव भी मरकर पुनः अपने प्रेम पात्रोंको आकर नहीं संभालते हैं ? अत्याधिक प्यार करनेवाले माता पिता भी मरकर पुनः अपनी सन्तानकी कोई खबर नहीं लेते हैं, । आखिर कोई तो उनमेंसे देव देवी हुये ही होंगे, जो कुछ भी उपकार कर सकते हैं ? । तीव्र क्रोधी भी परलोकसे आकर अपने शत्रुओंको त्रास देते हुये नहीं सुने जाते हैं ! कचित् भवस्मरणकर पूर्वभवकी कुछ, कुछ बातोंको कहनेवाले लड़की, लडका, सुने जाते हैं। किन्तु उनसे भरपूर संतोष नहीं होता है।
कोई पुरुष अभिमानके साथ उनकार या अपकार करनेकी प्रतिज्ञा कर मरते हैं, वे भूतकालमें लीन हो जाते हैं । पद्मपुराणमें लिखा है कि एक भंसाने मरकर व्यंतर होकर अयोध्यावासियोंको अनेक त्रास दिये थे । । किन्तु आजकल हजारों, लाखों, गायें बकरियें कत्ल कर दी जाती है। युद्धोंमें अनेक मनुष्य मार दिये जाते हैं, लेकिन कोई भी जीव पुनः अपने घातकोंको दुख
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