Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
क्रियाका ही निमित्तपना, है वैसा परत्व, अपरत्व, आदि क्रियाओंके निमित्तपनेका विरोध है । अतः पर अपरपने आदिके ज्ञानसे अनुमित किया गया कालद्रव्य तो आकाशसे भिन्न ही है । ग्रन्थकार समझाते हैं कि इस प्रकार वैशेषिकोंका यह कहना तो तब सिद्ध हो सकेगा कि परत्व आदि ज्ञानोंका निमित्तकारणपना आकाशके विरुद्ध होवे, किंतु जब आकाशसे आप अनेक क्रियानिमित्तपना हेतुका व्यभिचार देते हैं तब तो प्रतीत होता है कि आप एक आकाशके द्वारा अनेक क्रियाओंका होना स्वीकार करते हैं । यदि पुनः आप वैशेषिक यों कहे कि शद्बका समवायीकरण आकाश है । " परिशेषाल्लिंगमाकाशस्य " इस कणाद सूत्रके अनुसार आकाशका ज्ञापक हेतु शब्द है । शब्दका कारण हो जानेसे उन परत्व, यौगपद्य, आदिके ज्ञान करानेमें आकाशको निमित्तपना विरुद्ध ही है, यह कहो सो भी तो ठीक नहीं है। क्योंकि आपके पूर्वोक्त कथनसे और कणाद सिद्धान्तसे यह बात सिद्ध हो जाती है कि एक द्रव्यको भी अनेक कार्योंका निमित्तपना देखा जाता है और स्वयं आपने एक ईश्वरको तैसा अनेक कार्योका निमित्तकारण स्वीकार भी किया है। अतः अभीतक आपका काल द्रव्य मानना व्यर्थ ही रहा । उसके साध्य कार्य सभी आकाश द्वारा सम्पादित हो जायेंगे। ___यदि पुनरीशस्य नानार्थसिमक्षाभिसम्बन्पान्नानाकार्यनिमित्तत्वमविरुद्धं तदा नभसोपि नानाशक्तिसम्बन्धात्तदविरुद्धमस्तु विशेषाभावात् । तथा चात्मादिक्कालाघशेषद्रव्यकल्पनमनर्थकं तत्कार्याणामाकाशेनैव निवर्तयितुं शक्यत्वात् ।
यदि फिर तुम यों कहो कि ईश्वर भले ही एक है, किन्तु अनेक अर्थोको रचनेकी उसकी इच्छाएं अनेक हैं। अतः अनेक इच्छाओंसे चारों ओर सहित होरहे ईश्वरको नाना अर्थोके करने में निमित्तपना सिद्ध हो जाता है, कोई भी विरोध नहीं है। इसपर हम जैन कहते हैं कि तब तो अकेले आकाश द्रव्यको भी अनेक शक्तियोंके सम्बन्धसे उन परत्व आदि और अवगाहन क्रियाके करनेमें भी निमित्तपना अविरुद्ध हो जाओ ! इस अंशमें ईश्वरसे आकाशमें कोई अन्तर नहीं है दोनों समान हैं। तिसी प्रकार आत्मा, दिशा, काल, वायु, मन, आदि सम्पूर्ण आठ द्रव्योंकी कल्पना करना भी व्यर्थ ही पडेगा। क्योंकि उनके माने गये अनेक कार्य, ज्ञान, यह इससे पूर्व है, पश्चिम है, या दैशिक परत्व, अपरत्व, कालिक परत्व अपरत्व, वृक्ष आदिकोंका कंपाना, एक समयमें अनेक ज्ञानोंको उत्पन्न न होने देना आदि कार्योका आकाशके द्वारा ही सम्पादन किया जा सकता है । अब तो आपके ऊपर और भी अधिक आपत्ति आयी।
अथ परस्परविरुद्धबुध्धादिकार्याणां युगपदेकद्रव्यनिवर्त्यत्वविरोधात्तनिमित्तानि नानात्मादिद्रव्याणि कल्प्यन्ते तर्हि नानाद्रव्यक्रियाणामन्योन्यविरुद्धानां सकृदेककालद्रव्यनिमित्तत्वानुपपत्तेस्तन्निमित्तानि नानाकालद्रव्याण्यनुमन्यध्वं, तथा च नासिद्ध नानादव्यत्वमात्मकालयोरसर्वगतत्वसाधनम् ।।
अब यदि आप यों कहैं कि परस्परमें विरुद्ध हो रहे ऐसे बुद्धि, सुख, दुःख, थोडी आयुवाले