Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
कहना, क्योंकि कार्मणवर्गणाओंसे बने हुए कर्मशरीर और उससे अविनाभावी तैजसवर्गणाओंसे बने हुए तैजसशरीरके शरीपनेको प्राप्त हो गये पुद्गलको ज्ञायकशरीरपना सिद्ध नहीं है, अथवा आहारवर्गणा, भाषावर्गणा आदि पुद्गलोंको भी ज्ञायकशरीरपना असिद्ध है । वस्तुतः बन चुके औदारिक, वैक्रियिक और आहारक इन तीन शरीरोंको ही ज्ञायकशरीरपना युक्त है। अन्यथा यानी ऐसा न मानकर दूसरी प्रकार मानोगे तो विग्रहगतिमें भी जीवके उपयोग आत्मक ज्ञान हो जानेका प्रसंग हो जावेगा । कार्मण और तैजसशरीर दोनों वहां विद्यमान हैं। भावार्थ-औदारिक आदि तीन शरीरोंके न होनेसे ही विग्रहगतिमें उपयोगरूप ज्ञान नहीं माना गया है। क्षयोपशम होनेसे लब्धिरूप ज्ञान है। अतः ज्ञायकशरीरसे आदिके तीन शरीर ही पकडे जावेंगे, तैजस और कार्मण शरीर नहीं ।
कर्मनोकर्म नोआगमद्रव्यं भाविनोआगद्रव्यादनान्तरमिति चेन्न, जीवादिप्राभृतज्ञायिपुरुषकमेनोकर्मभावमापन्नस्यैव तथाभिधानात्, ततोऽन्यस्य भाविनोआगमद्रव्यत्वोपगमात् । तदेतदुक्तप्रकारं द्रव्यं यथोदितस्वरूपापेक्षया मुख्यमन्यथात्वेनाध्यारोपितं गौणमवबोद्धव्यम् ।
. कर्म और नोकर्मरूप नोआगमद्रव्य तो भाविनोआगम द्रव्यसे अभिन्न हो जावेगा, यह तो नहीं कहना । क्योंकि जीव, सम्यक्त्व आदि शास्त्रोंके जाननेवाले पुरुषके कर्म और नोकर्मपनेको प्राप्त हो चुके ही कर्मनोकर्मोको तैसा कथन किया है । उससे भिन्न अन्य अतिरिक्त पडे हुए या आगे होनेवाले कर्म नोकर्मोंसे युक्त जीवको नोआगमद्रव्यपना स्वीकार किया है। तिस कारण कहे हुए भेदवाला यह द्रव्यनिक्षेप शास्त्रानुसार पहिले कहे हुए लक्षणकी अपेक्षासे तो मुख्य समझना और दूसरे प्रकारोंसे कल्पना - कर आरोपित किया गया गौणद्रव्य समझलेना चाहिये, यानी वह द्रव्य गौण और मुख्यकी अपेक्षासे दो प्रकारका है । भावार्थ-देवदत्तके शरीरको द्रव्यनिक्षेपसे जैसे हम मुख्यपनेसे विद्वान् कह देते हैं, उसी प्रकार देवदत्तके चित्र ( तस्वीर ), छाया, नामावलीको भी गौण रीतिसे विद्वान् कह देते हैं । नयचक्रकी समीचीन योजनासे स्याद्वादियोंके यहां यह सब युक्त बन जाता है, अन्यत्र नहीं । अब भावनिक्षेपको कहते हैं
साम्प्रतो वस्तुपर्यायो भावो द्वेधा स पूर्ववत् । आगमः प्राभृतज्ञायी पुमांस्तत्रोपयुक्तधीः ॥ ६७ ॥ नोआगमः पुनर्भावो वस्तु तत्पर्ययात्मकम् । द्रव्यादर्थान्तरं भेदप्रत्ययाद् ध्वस्तबाधनात् ॥ ६८ ॥
तिसी परिणामसे आक्रान्त होरहे वस्तुकी वर्तमानकालमें जो पर्याय है वह भावनिक्षेप है । पूर्वके द्रव्यनिक्षेप समान वह भावनिक्षेप आगम और नोआगम भेदसे दो प्रकार है । तिनमें जीव,