Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामाणः
खतोऽधिगमे सर्वार्थानामधिगमस्य तेषामचेतनत्वेनातिप्रसंगात् । चेतनार्थानां कथः ञ्चित्पमाणनयात्मकत्वेन स्वतोऽधिगमस्येष्टत्वाच्च श्रेयान् प्रमाणनयैरधिगमोऽर्थानां सर्वथा दोषाभावात् ।
शंकाकारने पूर्व में कहा था कि " प्रमाण नयोंका अपने आप अधिगम होना मानोगे तो सम्पूर्णअर्थोका भी अपने आप अधिगम हो जावेगा” इसपर हमारा यह कहना है कि सभी जड या चेतन अर्थोकी अपने आप ज्ञप्ति होना माना जावेगा तो ज्ञप्तिका अतिप्रसंगदोष हो जावेगा। क्योंकि वे घट, पट, आदिक अर्थ अचेतन होनेके कारण स्वयं अपना ज्ञान नहीं कर सकते हैं। अचेतन पदार्थ यदि ज्ञान करने लगे तो वे चेतन हो जायेंगे । ज्ञानके समान कंकड, डेल, भी अपनेको जानकर इष्टानिष्ट पदार्थोका ग्रहण या त्याग करने लग जावेंगे। हां ! एक बात यह है कि सम्पूर्ण अर्थो से ज्ञान, आत्मा, इच्छा, सुख, दुःख आदि चेतन या चेतनके अंशरूप पदार्थोको किसी अपेक्षासे प्रमाणनयस्वरूप होनेके कारण अपने आप अधिगम होना इष्ट किया है । अतः सभी प्रकार दोष न होनेसे प्रमाण और नयोंके द्वारा पदार्थोका अधिगम होना श्रेष्ठ है।
ननु च प्रमाणं नयाश्चेति द्वन्द्ववृत्तौ नयस्य पूर्वनिपातः स्यादल्पान्तरत्वान्न प्रमाणस्य बहत्तरत्वादित्याक्षेपे माइ:
यहां दूसरी शंका है कि इस सूत्रमें प्रमाण और नय अथवा नय और प्रमाण इस प्रकार चाहे जैसे भी द्वन्द्व नामकी समासवृत्ति करनेपर नय शब्दका पहिले निपात (पहिले प्रयोग करना ) हो जावेगा । क्योंकि " अल्पान्तरं पूर्वम् ” इस व्याकरणके सूत्रानुसार अनेक पदोमेंसे थोडे स्वरवाले एक पदका पूर्वनिपात हो जाता है, जब कि विग्रह किये गये प्रमाण और नय पदमेंसे नय पदके अल्प स्वर हैं, यानी दो अच् हैं तथा प्रमाण पदके बहुत स्वर हैं, यानी तीन स्वर हैं, यों अपेक्षाकृत बहुत स्वर होनेसे प्रमाणका पूर्वमें वचनप्रयोग नहीं होना चाहिये । अतः नय शब्दको पहिले बोलना चाहिये । “ नयप्रमाणैरधिगमः " ऐसा सूत्र कहो ! इस प्रकार कटाक्ष होनेपर आचार्य महाराज अच्छे ढंगसे उत्तर देते हैं;
प्रमाणञ्च नयाश्चेति द्वन्द्वे पूर्वनिपातनम् । कृतं प्रमाणशब्दस्याभ्यर्हितत्वेन बह्वचः ॥२॥
प्रमाण और नय भी इस प्रकार द्वन्द्व समास करनेपर बहुत स्वरवाले भी प्रमाण शद्वका पूज्य होनेके कारण पहिले निक्षेपण कर दिया है। अर्थात् अल्प स्वरवाला पहिले प्रयुक्त किया जाता है इस सामान्य नियमका “ अभ्यर्हितं पूर्वम् " अतिपूज्यका पूर्वमें निपात होनारूप अपवादनियम बाधक है। अतः अंशी होनेके कारण पूज्यप्रमाण शद्वका पहिले प्रयोग किया है । लोकमें भी