Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
पूर्व सूत्र नाम आदिकके द्वारा निक्षिप्त किये तत्त्वार्थीका सम्पूर्ण रूपसे अधिगम होना प्रमाणों करके और एक देशसे अधिगम होना भी नयों करके व्यवस्थित हो रहा है सूत्रमें निर्णीत कर दिया गया है ।
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। वही इस
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निसर्गादधिगमाद्वेत्यत्र सूत्रे नामादिनिक्षिप्तानां तत्त्वार्थानां योऽधिगमः सम्यदर्शन हेतुत्वेन स्थितः स इह शास्त्रे प्रस्तावे वा कास्यतः प्रमाणेन कर्तव्यो देशतो नयैरेवेति व्यवस्था ।
इस वार्त्तिकका विवरण यों है कि " तन्निसर्गादधिगमाद्वा " इस सूत्र में नाम आदिकके द्वारा क्षिप्त किये गये तात्त्विक पदार्थोंका जो अधिगम होना अधिगमजन्य सम्यग्दर्शनके हेतुपनेसे व्यवस्थित किया गया है । वह अधिगम इस शास्त्र में या इस प्रकरण में पूर्णरूपसे प्रमाण करके कर लेना चाहिये और एक अंशसे नयों करके ही कर लेना चाहिये । यह इस सूत्रने व्यवस्था दी है । भावार्थ — प्रमाण और नयोंसे पदार्थोंका अधिगम करके अधिगमज सम्यग्दर्शन किया जा सकता है।
नन्वेवं प्रमाणनयानामधिगमस्तथान्यैः प्रमाणनयैः कार्यस्तदधिगमोप्यपरैरित्यनवस्था, स्वतस्तेषामधिगमे सर्वार्थानां स्वतः सोऽस्त्विति न तेषामधिगमसाधनत्वम् । न वानधिगता एव प्रमाणनयाः पदार्थाधिगमोपाया ज्ञापकत्वादतिप्रसंगाच्चेत्यपरः ।
यहां शंका है कि जैसे जीव आदिकोंका अधिगम प्रमाण और नयोंसे किया जाता है इस प्रकार उन प्रमाण नयोंका अधिगम भी तिसी प्रकार अन्य प्रमाण नयों करके किया जावेगा । तथा उनका भी अधिगम तीसरे प्रमाण नयों करके किया जावेगा । ज्ञापकोंको अन्य ज्ञापकोंसे जाने विना उनके द्वारा ज्ञाप्य जाना नहीं जाता है। अतः चौथे, पांचवें, आदिकी जिज्ञासा होते हुए आकांक्षाके बढ जानेपर जैनोंके ऊपर यों अनवस्था दोष लगता है । यदि जैन जन अनवस्थाको दूर करने के लिये उन प्रमाण नयोंका अपने आप ही अधिगम हो जाना स्वीकार कर लेंगे, तब तो सम्पूर्ण जीव आदि पदार्थोंका भी अपने आपसे वह अधिगम हो जाओ ! इस कारण उन प्रमाण नयोंको अधिगमका साधकपना नहीं सिद्ध होता है । दूसरोंसे या स्वयं नहीं जाने गये ही प्रमाण और नय तो पदार्थोंके जाननेके उपाय नहीं हैं, क्योंकि वे ज्ञापक हैं । दूसरेसे या अपनेसे जो ज्ञात नहीं हुआ है, वह पदार्थ तो ज्ञापक नहीं होता है । अन्धेरे में पडा हुआ धुंधला पदार्थ परका प्रकाशक नहीं है, अन्यथा अतिप्रसंग दोष हो जावेगा। यानी अज्ञात घट, पट, आदिक पदार्थ भी चाहे जिस वस्तु के ज्ञापक बन बैठेंगे, यह न्यारी आपत्ति हुई, इस प्रकार कोई दूसरा वादी कह रहा है । अब आचार्य कहते हैं कि
सोऽप्यप्रस्तुतवादी । प्रमाणनयानामभ्यासानभ्यासावस्थयोः स्वतः परतश्चाधिगमस्य वक्ष्यमाणत्वात् । परतस्तेषामधिगमे कचिदभ्यासात्स्वतोऽधिगमसिद्धेरनवस्थापरिहरणात् ।