Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्वार्थचिन्तामणिः
कारण नहीं ठहरते हैं, अब तुम बतलाओ कि नाम आदिकोंसे वह विरोध अभिन्न है अथवा भिन्न है या भिन्नाभिन्न उभयरूप होगा ? उत्तर दीजिये ।
२९३
प्रथमद्वितीयपक्षयोर्नासौ विरोधक इत्याह
तिन तीन प्रकारके विकल्पोंमें पहिला और दूसरा पक्ष स्वीकार करने पर तो वह विरोध उन अपने आधारभूतोंका विरोध करनेवाला नहीं हो सकता है । इसी बात को आचार्य महाराज स्पष्ट कहते हैं—
नामादेरविभिन्नश्चेद्विरोधो न विरोधकः ।
नामाद्यात्मवदन्यश्चेत्कः कस्यास्तु विरोधकः ॥ ८४ ॥
1
नाम और स्थापना आदि के बीच में पडा हुआ विरोध यदि नाम आदिकोंसे विशेषतया अभिन्न है तो वह विरोधक नहीं हो सकता है। जैसे नाम, स्थापना, आदिकका आत्मभूत स्वरूप स्वयं अपना विरोधक नहीं है । पदार्थोंके अभिन्न निजस्वरूप अपनेसे ही यदि विरोध करने लगेंगे, तब तो संसारमें कोई भी पदार्थ नहीं ठहर सकेगा। क्योंकि पदार्थोंका अपना अपना स्वरूप अपने से विरोध करके अपने आप अपना और पदार्थका मटियामेट कर लेगा । यों तो शून्यवाद छा जावेगा । अतः पहिला अभेद पक्ष गया । द्वितीय पक्षके अनुसार यदि नाम, स्थापना आदि के बीच में पडा हुआ विरोध नाम आदिकोंसे भिन्न मानोगे तो कौन किसका विरोधक होगा ? अर्थात् सभी स्थानोंपर अनेक भिन्न पदार्थ पडे हुए हैं, अथवा भिन्न उदासीन पडा हुआ विरोध भी विरोध करनेवाला हो जाय तो चाहे जो पदार्थ जिस किसीका विरोधक बन बैठेगा । फिर भी शून्यवादका प्रसंग होगा । तथा विनिगमविरहृदोष भी लागू होगा । सर्पसे नकुल जैसे विरोध करता है उसी प्रकार सर्प भन्न पडे हुए बच्चे भी उससे विरोध करने लग जायेंगे । विरुद्ध और विरोधक व्यवस्था न बन सकेगी ।
न तावदात्मभूतो विरोधो नामादीनां विरोधकः स्यादात्मभूतत्वान्नामादिस्वात्मवत् विपर्ययो वा । नाप्यनात्मभूतोऽनात्मभूतत्वाद्विरोधकोर्थान्तरवत् विपर्ययो वा ।
तीन पक्षों में पहिले अभेद पक्षको ग्रहण कर लेनेपर प्रतियोगी और अनुयोगी पदार्थोंमें नाम आदिकोंका आत्मस्वरूप विरोध तो विरोधक नहीं हो सकेगा, क्योंकि तदात्मक विरोध उनकी आत्मारूप ही हो रहा है, जैसे कि नाम, स्थापना, आदिकी आत्मा ( स्वशरीर ) नाम आदि - कसे विरोध नहीं करती है । अथवा विपरीत नियम ही हो जाओ! यानी नाम आदिकसे अभिन्न पडा हुआ विरोध यदि उनमें विरोध कर रहा है तो नाम आदिकका स्वयं डील ही अपना विरोध अपने आप कर बैठे । तब तो नाम आदिक स्वयं खरविषाणके समान असत् हो जावेंगे । तथा