Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
वर्तमानमें मूर्तिदर्शन, पूजन, नाटकोंका अभिनय सिक्का, दर्पणमें मुखका प्रतिबिम्ब, सभापतिपन, आदिके द्वारा अनेक प्रयोजन सिद्ध हो रहे हैं, जो कि अन्य प्रकारोंसे नहीं सध सकते हैं । भविष्यमें परिणत होने वाले द्रवणकी योग्यताको द्रव्यनिक्षेप सम्भालता है, द्रव्यनिक्षेपको माने विना कार्यके लिये उपादान कारणोंका ही आदान करना, तैलके अर्थ तिलोंका, घडेके लिये मिट्ठीका ग्रहण करना नहीं बन सकेगा। सभी जीव या पुद्गलद्रव्य नवीन नवीन कार्योको कर रहे प्रतीत हो रहे हैं । द्रव्यनिक्षेपने उनको विश्वास दे रखा है कि लगे रहो । सफल होगे । कार्यसिद्धि तुम्हारे सामने हाथ जोडे खडी हुयी बाट जो रही है । निमित्त मिलानेपर झट हाथ आ जायगी। जो पदार्थ कुछ भी अर्थक्रियाओंको करता है, वह वस्तु या वस्तुका एक अंश अवश्य है । नाम आदिक. भी वस्तु हैं । इनको अवस्तुपना कहना युक्तिपूर्वक नहीं बनता है। भावके समान नाम आदिकोंको बाधा रहित प्रतीतिसे वस्तुपना सिद्ध है।
एतेन नामैव वास्तवं न स्थापनादित्रयमिति शद्धाद्वैतवादिमतं, स्थापनैव कल्पनात्मिका न नामादित्रयं वस्तु सर्वस्य कल्पितत्वादिति विभ्रमैकान्तवादिमतं, द्रव्यमेव तत्वं न भावादित्रयमिति च द्रव्याद्वैतवादिदर्शनं प्रतिव्यूढम् । तदन्यतमापाये सकलसंव्यवहारानुपपत्तेश्च युक्तः सर्वपदार्थानां नामादिभियासस्तावता प्रकरणपरिसमाप्तेः।
उक्त इस कथनसे इन मतोंका भी खण्डन होगया समझ लेना चाहिये । तिनमें शद्बाद्वैतवादियोंका यो मन्तव्य है कि जगत्में शद्वस्वरूप नामनिक्षेप ही वस्तुभूत है । स्थापना, द्रव्य, भाव, ये तीनों परमार्थ नहीं हैं, कल्पित है । सम्पूर्ण अर्थोको एकान्तसे भ्रान्तिरूप कहनेवालोंका यह मत है कि कल्पनास्वरूप स्थापना ही जगत्में पदार्थ है, नाम, द्रव्य, भाव, ये तीनों कोई वस्तु नहीं हैं कारण कि सब कल्पित हैं। तीसरे द्रव्याद्वैतवादीका यह सिद्धान्त है कि भविष्यमें द्रवण करने योग्य द्रव्य ही ठीक ठीक पदार्थ है, नाम, स्थापना, और भाव ये तीन कुछ वस्तु नहीं हैं, तुच्छ हैं । इन तीनों एकांतोंका जैन सिद्धान्तके अनुसार नाम, आदिक चारोंको वस्तुभूतपना सिद्ध कर देनेपर निराकरण हो जाता है । एक बात यह भी है कि उन नाम आदिक चारों से किसी एकके भी न माननेपर जगत्के सम्पूर्ण श्रेष्ठ व्यवहार नहीं बन सकेंगे । सभी स्थलोंमें नाम आदिक चारोंका मुख्य या गौणरूपसे एक दूसरेको न छोडते हुए अविनाभाव हो रहा है। अतः सम्पूर्ण ही पदार्थोंका यथायोग्य नाम आदिक चारोंसे न्यास होना युक्तियोंसे सिद्ध है । तिनसे ही इस सूत्रके प्रकरणोंकी सब ओरसे समाप्ति हो जाती है पूर्वापर सम्बन्ध अन्वित हो जाता है।