Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वाचिन्तामणिः
रहता ही नहीं है । " द्रव्यादयः पञ्चभावा अनेके समवायिनः ” द्रव्य आदिक पांच भाव ही समवायसम्बन्धवाले हैं । अन्य नहीं । जब कि विरोध पदार्थ इन द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, पांच भावोंसे अतिरिक्त है तो वह समवायवाला नहीं हो सकता है । जो प्रतियोगिता सम्बन्धसे समवायवाला नहीं है वह समवायसम्बन्धसे किसी विशेष्यमें नहीं रह पाता है । प्रकरणमें संयोग और समवाय सम्बन्धसे नहीं सम्बन्धको प्राप्त हुए विरोधका कहीं भी विशेषणपना कहना युक्त नहीं है, अन्यथा यानी विना सम्बन्धित हुए ही कोई पदार्थ विशेषण होने लगे तब तो सभीको सबके विशेषण हो जानेका प्रसङ्ग आ जावेगा जो कि इष्ट नहीं है । ज्ञान आकाशका विशेषण हो जावेगा, सह्यपर्वत विन्ध्यपर्वतका विशेषण हो जाओ ! अतः यही नियम करना आवश्यक होगा कि संयोग या समवाय सम्बन्धसे जो स्वयं युक्त हो गया है वही अन्यत्र उस सम्बन्धसे वर्तता हुआ विशेषण होता है।
समवायवत्समवायिषु संयोगसमवायासत्त्वेऽपि तस्य विशेषणतेति चेन्न, तस्यापि तथा साध्यत्वात् । न चाभाववद्भावेषु तस्य विशेषणता तस्यापि तथा सिद्धयभावात् । न प्रसिद्धमसिद्धस्योदाहरणं, अतिप्रसङ्गात् । । ।
. यदि वैशेषिक यों कहें कि पांच भावोंसे अतिरिक्त समवाय पदार्थ जैसे संयोग या समवाय सम्बन्धसे सम्बद्ध न होता हुआ भी द्रव्य आदि पांच समवायियोंमें विशेषण हो जाता है, यानी समवायमें प्रतियोगिता सम्बन्धसे संयोग या समवाय नहीं भी रहता है फिर भी समवायको विशेषणपना है, तैसे ही विरोधको भी विशेषणपना बन जावेगा। सो यह तो नहीं कहना चाहिये। क्योंकि उस समवायको भी तिस बिना सम्बन्ध हुए प्रकारसे विशेषणपना बन जाना साधने योग्य है । अर्थात् सिद्ध हुए पदार्थका दृष्टान्त दिया जा सकता है । जो स्वयं रोगी है, वह दूसरेकी चिकित्सा क्या कर सकता है ? " अन्यत्र नित्यद्रव्येभ्य आश्रितत्वमिहोच्यते " परमाणु, आकाश, आदि नित्य द्रव्योंके अतिरिक्त सभी पदार्थ जब आधेय हैं तब समवाय भी किसी न किसी स्वरूप या विशेषण. विशेष्यमाव सम्बन्धसे ही अपने आश्रयोंमें आश्रित रह सकेगा। फिर समवायको विना सम्बन्धके रहनेवाला आप क्यों कहते हो? और तुम यदि यह भी कहो कि भाव पदार्थोमें संयोग और समवाय सम्बन्धसे नहीं सम्बन्धित हुआ भी अभाव पदार्थ जैसे विशेषण हो जाता है तैसे ही विरोध भी विरोधियोंमें न सम्बन्धित हुआ विशेषण हो जायगा । सो · यह भी न कहना । क्योंकि अभाव पदार्थको भी तिस बिना सम्बन्धित हुए प्रकारसे विशेषण हो जानेकी सिद्धि नहीं हुयी है । असिद्ध पदार्थ तो असिद्धका उदाहरण नहीं हो सकता है । मरा घोडा मरे हुए अश्ववारको नहीं भगा लेजा सकता है, अन्यथा अतिप्रसंग हो जावेगा। यानी चाहे जिस असिद्धसे किसी भी असिद्धकी सिद्धि करदी जावेगी । तब तो सबके मनोरथ सिद्ध हो जावेंगे । कोई भी दरिद्र या रोगी न रहेगा, अथवा चाहे जिस ज्ञापक असिद्ध उदाहरणका अवलम्ब लेकर किसी भी अप्रसिद्ध दार्टान्तकी सिद्धि कर दी आपेगी। कोई बाधा न पडेगी । अत; नहीं सिद्ध हुए समवाय और अभावका दृष्टांत लेकर विरोध
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