Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्यश्लोकवार्तिके
एतेन जीवादिनोआगमद्रव्यसिद्धिरुक्ता । यं एवाहं मनुष्यजीवः प्रागासं स एवाधुना देवो वर्ते पुनर्मनुष्यो भविष्यामीत्यन्वयप्रत्ययस्य सर्वथाप्यबाध्यमानस्य सद्भावात् । यदेव जलं शुक्तिविशेषे पतितं तदेव मुक्ताफलीभूतमित्याद्यन्वयप्रत्ययवत् । ----
इस कथनसे जीव, सम्यग्दर्शन, आदिके नोआगम द्रव्यकी सिद्धि भी कह दी गयी है । जो ही मैं पहिले मनुष्य जीव था, सो ही मैं इस समय देव हूं यानी देव होकर वर्त रहा हूं, तथा भविष्यमें फिर मैं मनुष्य हो जाऊंगा, ऐसा सभी प्रकारोंसे भी हीन बाधने योग्य अन्वयज्ञान विद्यमान है । गृहस्थ मनुष्य प्रतिदिन विचारता है कि मैंने ही प्रातः जिनार्चा की थी। इस समय भोजन कर रहा हूं। कुछ समय पीछे वाणिज्य करूंगा । तथा जो ही जल मोतीकी जननी विशेषसीपमें पडा था । वही जल परिणाम करते हुए मोती होगया है इत्यादि प्रकारके अन्वयज्ञान जैसे निर्बाध हैं, तैसे ही भविष्य पर्यायोंमें परिणत होनेवाले नोआगम द्रव्यको समझ लेने वाले ज्ञान अबाधित हैं। अविसंवादी हैं।
ननु च जीवादिनोआगमद्रव्यमसंभाव्यं जीवादित्वस्य सार्वकालिकत्वेनानागतत्वासिद्धेस्तदभिमुख्यस्य कस्यचिदभावादिति चेत्, सत्यमेतत् । तत एव जीवादिविशेषापेक्षयोदाहृतो जीवादिद्रव्यनिक्षेपो ।
___ यहां किसीकी और भी शंका है कि जीव, पुद्गल, आकाश, आदिका नोआगम द्रव्य तो असम्भव है, क्योंकि जीवपना, पुद्गलपना आदि धर्म तो उन द्रव्योंमें सर्व काल रहते हैं, इस कारण सामान्यजीवपने आदिको भविष्यमें प्राप्त होनापन असिद्ध है, जीवपने आदि धर्मोकी ओर अभिमुख होनेवाले किसी भी पदार्थका अभाव है, अर्थात् पहिले जीव नहीं होकर पुनः जीव बने यानी, पुद्गल तत्त्व जीव द्रव्य बन जावे, या जीवद्रव्य पुनः पुद्गलद्रव्य बने तब तो द्रव्यनिक्षेपका लक्षण घट सकेगा। किन्तु कोई भी वस्तु जीव नहीं होता हुआ पश्चात् जीव बन जावे, अथवा पुद्गल न होता हुआ पीछेसे पुद्गल बन जावे ऐसा नहीं माना गया है । कोई भी द्रव्य दूसरे द्रव्यरूप नहीं हो सकता है । आचार्य समझाते हैं कि यदि इस प्रकार शंका करोगे तो हम जैन कहते हैं कि यह आपका कहना ठीक है । सामान्यरूपसे जीव, पुद्गल, आदिका नोआगमद्रव्य नहीं बनता है। तिस ही कारण जीव, पुद्गल आदिके विशेषोंकी अपेक्षासे जीव आदिके द्रव्यनिक्षेपका उदाहरण दिया गया है। मनुष्य, देव, पुनः मनुष्य, या खात, अन्न, पुनः खात ये दृष्टान्त नोआगम द्रव्यनिक्षेपके हैं, ऐसा समझना। - नन्वेवमागमद्रव्यं वा बाधितात्तदन्वयप्रत्ययान्मुख्यं सिध्यतु ज्ञायकशरीरं तु त्रिकालगोचरं तव्यतिरिक्तं च कर्मनोकर्मविकल्पमनेकविधं कथं तथा सिध्येत् प्रतीत्यभावादिति चेन, तत्रापि तथाविधान्वयमत्ययस्य सद्भावात् । यदेव मे शरीरं ज्ञातुमारभमाणस्य तत्त्वं