Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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जाता है और सामान्य विशेष्य बन जाता है । भूतलमें संयोग सम्बन्धसे घट रहता है, किन्तु निष्ठत्व सम्बन्धसे घटमें भी भूतल रह जाता है । तैसे ही विशेषपदार्थस्वसमवेतत्वसम्बन्धसे. सामान्यधर्ममें रह जाता है । तथा तिसी कारण इस उक्त कथनसे अभावको कहनेवाले अभाव शब्द या अद्रव्यत्व, अगुणत्व, अथवा असत्ता आदि शद्बोंसे भी उन सामान्यविशेषात्मक वस्तुमें ही प्रतिपत्ति होना कह दिया गया समझ लेना चाहिये । क्योंकि वैशेषिकोंके समान, जैन तुच्छ अभाव पदार्थको नहीं मानते हैं, अभावपदार्थ अन्यभावरूप पड जाता है। जैसे कि घटको नहीं देखते हुए केवल भूतलका दीख जाना ही घटका अनुपलम्भ है तैसे ही घटका अभाव भी रिक्त ( रीता ) भूतल स्वरूप है । अनुपलम्भ यानी प्रकृतपदार्थका ज्ञान न होकर अन्य अप्रकृतका ज्ञान हो जाना तो ज्ञानका अभाव है । और रीता भूतलस्वरूप घटाभाव ज्ञेयका अभाव है। अतः दृष्टान्त और दाष्टांत सम हैं । अद्रव्यत्वशद्वसे गुण, कर्म आदि स्वभावोंका प्रतिपादन होता है। पर्युदास वृत्तिसे अब्राह्मणका अर्थ क्षत्रिय वैश्य आदि स्वरूप हो जाता है। अद्रव्यत्व यानी द्रव्यरहितपना गुणरूप है। अगुणत्व, अकर्मत्व ये द्रव्यरूप हो जाते हैं । इस प्रकार भावरूप विशेषणोंसे युक्त हो रहे अभावका अभाव शद्बकरके अथवा गुण, कर्म आदि उपाधियोंसे तदात्मक युक्त गुण आदिकका अद्रव्यत्व आदि शद्बोंकरके प्रकाशन ( वाचन ) होता है । स्वतन्त्र तुच्छाभाव कोई वस्तु नहीं है । अभाव पदार्थको भाव विशेषणोंसे सहितपना असिद्ध नहीं है, क्योंकि घटका अभाव, पटका अभाव, पुस्तकका अभाव इत्यादिक भावरूप उपाधियोंसे युक्त ही अभाव की सदा प्रतीति हो रही है। स्वतन्त्रतासे कोरा अभाव ही अभावतत्त्व एकबार भी आजतक नहीं जाना गया है । अर्थात् न्यायवेत्ताओंके यहां शाद्वबोध करते समय प्रथमाविभक्त्यन्त पदका अर्थ मुख्य विशेष्य होता है और शेष विभक्तिवाले पदार्थ उसके विशेषण होजाते हैं । घटका अभाव है यहां अभाव विशेष्य है और घटका पटका ये सब उसके विशेषण हैं, अतः निणीत हुआ कि भावोंसे युक्त अभावोंका अभावशद्वसे प्रतिपादन होता है स्वतन्त्र तुच्छ अभाव कोई वस्तु नहीं, जिसका कि वैशेषिकोंके अनुसार अभाव शबसे प्रतिपादन हो सके ।
___ तथैवाद्रव्यं गुणादिरजीवो धर्मादिरिति गुणाापाघेरद्रव्यत्वादेः सुप्रतीतत्वात् न तस्य तदुपहितत्वमसिद्धं तथा प्रतीतेरषाधत्वात् ।
तिस ही प्रकार अद्रव्य यह गुण, पर्याय, या गुण, कर्म आदि स्वरूप है और अजीव यह धर्म, अधर्म आदि स्वरूप है। इस कारण अद्रव्यशद्वसे गुण आदि उपाधियों (विशेषणों) की तथा अजीव शद्बसे धर्म, पुद्गल आदि द्रव्योंकी भले प्रकार प्रतीति हो रही है । अभावको कहने वाले
और नञ् समाससे युक्त अद्रव्यत्वको उन गुण, कर्म आदि उपाधियोंसे सहितपना असिद्ध नहीं है, क्योंकि तिस प्रकार गुण कर्मरूप अद्रव्य है । पुद्गल, धर्म आदि स्वरूप अजीव है, इन प्रतीतियोंका कोई बाधक प्रमाण नहीं है । बाधारहित प्रतीतिओंसे पदार्थोकी सिद्धि हो जाती है ।