Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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न्यवहारका बाधारहित होकर प्रतिभास हो रहा है । केवल सामान्य या केवल विशेष कोई वस्तु ही नहीं है । अतः उसका शद्बके द्वारा प्रतिपादन भी नहीं होता है ।
कथमेवं पञ्चतयी शद्धानां वृत्तिर्जात्यादिशद्धानामभावादिति न शंकनीयं, यस्मात्,
किसीका कटाक्ष है, जब कि सम्पूर्ण शब्दोंका वाच्य सामान्यविशेषात्मक वस्तु एक ही है तो पूर्वोक्त प्रकार शबोंकी पांच अवयवोंमें विभक्त की गयी वृत्ति कैसे घटित होवेगी ? क्योंकि जाति, गुण, क्रिया, संयोगी, और समवायी इन पांच प्रकारके शद्बोंका तो अभाव मान लिया गया है। आचार्य समझाते हैं कि इस प्रकार किसीको जैनोंके ऊपर शंका नहीं करनी चाहिये, जिस कारणसे कि ( क्योंकि )
तत्र स्याद्वादिनः प्राहुः कृत्त्वापोद्धारकल्पनाम् । जातेः प्रधानभावेन कांश्चिच्छद्वान् प्रबोधकान् ॥ ५१ ॥ व्यक्तेः प्रख्यापकांश्चान्यान् गुणद्रव्यक्रियात्मनः । लोकसंव्यवहारार्थमपरान् पारिभाषिकान् ॥ ५२ ॥
तैसी शंकाके प्रकरणमें स्याद्वादसिद्धान्त रहस्यके वेत्ता आचार्य यों कहते हैं कि सामान्यविशेषात्मक वस्तुओंके प्रतिपादक संपूर्ण शद्बोंमेंसे कुछ जातिवाचक शब्दोंकी व्यावृत्ति कल्पना करके प्रधानरूप जातिको समझानेवाले किन्हीं गो, अश्व, आदि शद्बोंको जाति शब्द माना जाता है और अन्य न्यारे किये हुए कुछ गुण, द्रव्य, क्रिया, स्वरूप व्यक्तिभूत पदार्थोका व्याख्यान करनेवाले शरोंको लोकव्यवहारके लिये गुणशद्ध, द्रव्यशब्द और क्रियाशद कहा जाता है, तथा अपने अपने सिद्धान्तानुसार परिभाषा किये गये सम्यग्दर्शन, पीलु, ब्रह्म, स्वलक्षण, सु, बहुव्रीहि आदि अन्य शद्वोंको पारिभाषिक शब्द कहा है । द्रव्यके दो भेदोंको द्रव्यशद्वसे ही ग्रहण कर न्यारा पांचवा भेद पारिभाषिक शब्द हो जाता है सांकेतिक शब्द इसीमें गर्मित हो जाते हैं। _____ न हि गौरव इत्यादिशद्वाज्जातेः प्रधानभावेन गुणीभूतव्यक्तिस्वभावायाः प्रकाशने गुणक्रियाद्रव्यशद्वाद्वा यथोदिताब्यक्तेर्गुणाद्यात्मिकायाः प्राधान्येन गुणीभूतजात्यात्मनः प्रतिपादने स्याद्वादिनां कचिद्विरोधो येन सामान्यविशेषात्मकवस्तुविषयशद्धमाचक्षाणानां पञ्चतयी शद्धप्रवृत्तिर्न सिध्येत् ।
- गाय, घोडा, महिष, इत्यादि शद्बोंसे गौण हुयी व्यक्तिके स्वभावरूप जातिका प्रधानपने करके प्रकाश करनेमें अथवा ग्रन्थमें पहिले कहे गये शुक्ल, पाटल, चरण, प्लवन, विषाणी, कुण्डली आदि गुण, क्रिया, और द्रव्यवाचक शब्दोंसे गौण हो रहा है तदात्मक जातिस्वरूप जिनका ऐसी