Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थ लोकवार्त
और आत्माको अव्यापकपना अनुमान द्वारा सिद्ध हो गया । इस प्रकार नैयायिकोंके द्वारा आत्मा और कालको व्यापकपना सिद्ध करनेवाला प्रतिज्ञारूपी पक्ष हमारे इस अनुमानसे विरुद्ध पडता है । अतः उनका अमूर्त्तत्व हेतु बाधित हेत्वाभास है, काल और आत्माका व्यापकपन नहीं साध सकता है । तथा सर्वज्ञकी आम्नायसे चले आये आगममें पूज्यचरण श्रीनेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीने लिखा है कि " लोयायासपदेसे इक्केक्के जे छिया हु इक्केक्का । रयणाणं रासीमिव ते काला असंख दव्वाणि ॥ १ ॥ बट्टणहेदू कालो वणगुणमविय दव्वणिचयेसु । कालाधारेणेव य वतिहु सव्व
|| २ || विहिपरिणामियाणं हवदि हु कालो सयं हेदू || लोकाकाशके प्रत्येक प्रदेशोंपर एक एक काल अणु रत्न राशिके समान स्थित हैं, वे कालाणुयें असंख्यात द्रव्य हैं । अर्थात् जगत् श्रेणी के घनप्रमाण संख्या वाले कालद्रव्य हैं और एक एक कालपरमाणुमें अनन्तगुण और पर्याय विद्यमान हैं । प्रधान कारण मानी गयी अपनी द्रव्यशक्तिके द्वारा स्वयं अपने आप वर्त्तना करते हुए पदार्थोंके काला द्रव्य वर्त्तना कराने में निमित्तकारण हैं । कालके अवलम्बसे ही सर्वद्रव्य वर्त्तना करते हैं। इस आगम प्रणाणसे भी आपका माना गया कालको व्यापकपनेका पक्ष ( प्रतिज्ञा ) विरुद्ध पडता है । अतः नैयायिकों का हेतु कालात्यापदिष्ट है और व्यापकपनारूप साध्यसे विरुद्ध होरहे अव्याकपनेके साथ भी अमूर्त्तत्व हेतु व्याप्ति रखता है । अतः विरुद्ध हेत्वाभास भी हो सकता है। पक्ष श पुल्लिंग होना चाहिये ।
न चायमागमोऽप्रमाणं सर्वथाप्यसम्भवद्बाधकत्वादात्मादिप्रतिपादकागमवत् । ततः सिद्धमसर्वगतद्रव्यत्वमात्मनः क्रियावत्वं साधयत्येव ।
हां जो ! यह हमसे कहा गया आगमवाक्य अप्रमाण नहीं है, क्योंकि सभी प्रकारोंसे बाधक प्रमाणोंके उत्थित होनेकी यहां सम्भावना नहीं है । ज्ञान सर्वदेश, सर्वकाल, और सर्वजीव सम्बन्धी बाधाओंसे रहित है वह प्रमाण स्वरूप है । जैसे कि आत्मा, आकाश, परमाणु आदि द्रव्यों के प्रतिपादन करने वाले आगम हम तुम दोनों या लौकिक और परीक्षकोंको प्रमाण हैं । तिस कारण कालसे हुए असिद्ध दोषको और आकाशसे हुए व्यभिचारको दूर करके आत्माको अव्यापक द्रव्यपना सिद्ध होगया । वह हेतु आत्माके क्रियावान्पनेको सिद्ध करा ही देता है ।
कालाणुनानैकान्तिकमिति चेन्न, तत्रासर्वगतद्रव्यत्वस्याभावात् । सर्वगतद्रव्यत्वप्रतिषेधे हि तत्सदृशेऽन्यत्र सकृन्नानादेशसम्बधिनि सम्प्रत्ययो न पुनर्निरंशे कालाणौ । “नजिव युक्तमन्यसदृशाधिकरणे तथा ह्यर्थगतिरिति वचनात् प्रसज्यप्रतिषेधानाश्रयणात् ।
असर्वगतद्रव्यपना हेतुसे क्रियावान्पनेको सिद्ध कर देनेमें कोई नैयायिक कालपरमाणुओं से व्यभिचार देता है । अर्थात् कालाणुओं में अव्यापक द्रव्यपना हेतु विद्यमान है, किन्तु जैनमतके भी अनुसार उन कालाणुओं में क्रियारूप साध्य नहीं माना गया है । अतः असर्वगत द्रव्यपना हेतु अनैकान्तिक हेत्वाभास है । ग्रन्थकार समझाते हैं कि इस प्रकार कहना तो ठीक नहीं है। क्योंकि उस