Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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- तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
गमयेयुरिति संभावनायाँ लिङ्मयोगात्तामपि माजीगमन्न गीहिरर्थवत् सर्वथा निर्विषयत्वेन तेषां व्यवस्थापनादित्यप्यात्मघातिनो वचनं स्वयं साधनदूषणवचनांनर्थक्यप्रसक्तेः। .
- गमयेयुः यह प्रयोग ण्यन्त गम्लु धातुसे लिङ् लकारके प्रथम पुरुष सम्बन्धी बहुवचनका रूप है । होय और न भी होय ऐसे संभावना अर्थमें लिङ् लकारका प्रयोग किया गया है । अतः शद्ध भले ही उस इच्छाको भी न समझावें हम बौद्धोंकी इसमें कोई क्षति नहीं है । सभी शब्द अपने वाच्य बहिरंग अर्थोसे युक्त नहीं है । इन्द्र, सुमेरु, वन्ध्यापुत्र आदि शद्वोंके वाच्य पदार्थ जैसे यहां कोई नहीं है, अन्यत्र होंगे, इसका भी कोई निर्णय नहीं । तैसे ही उन शद्बोंको सभी प्रकार विषयोंसे रहितपनेकी व्यवस्था कर दी गयी है । इस प्रकार बौद्धोंका कहना. भी अपने आप अपनेको घात करनेवालेका वचन है, क्योंकि यदि शब्द कुछ भी बहिरंग अर्थोको नहीं कहेंगे तो बौद्धोंसे बोले गये अपने सिद्धान्तको साधन करनेवाले और अन्य सिद्धान्तोंको दूषण देनेवाले वचनोंके व्यर्थ हो जानेका प्रसंग होगा। यह तो एक प्रकारका आत्मघात है । सार्थक शबोंके विना बौद्ध भला स्वयं अपनी भी सिद्धि कैसे कर सकेंगे ?
___संवृत्त्या तद्वचनमर्थवदिति चेत् केनार्थेनेति वक्तव्यम् ? तदन्यापोहमात्रेणेति चेत्, विचारोपपन्नेनेतरेण वा ? न तावत् प्रथमपक्षस्तस्य विचार्यमाणस्याकिञ्चिद्रूपत्वसमर्थनात्। विचारानुपपन्नेन त्वन्यापोहेन सांवृतेन वचनस्यार्थवत्त्वे बहिरर्थेन तथाभूतेन तस्यार्थवत्त्वं किमनिष्टं तथा व्यवहर्तुर्वचनादहिः प्रवृत्तेरपि घटनात् ।
यदि आप बौद्ध वस्तुतः नहीं किन्तु व्यवहार सत्यपनेसे उन वचनोंको अर्थयुक्त कहोगे यों बोलनेपर तो हम पूंछते हैं कि किस अर्थसे शवोंको अर्थयुक्त कह रहे हो ? यह तुमको कहना चाहिये । यदि उस केवल अन्यापोहरूप अर्थ करके शद्बोंको अर्थवान् कहते हो तो हम फिर पूछेगे कि विचारोंसे युक्त हो रहे अन्यापोह करके या विचारोंसे रहित अन्यापोह करके शब्दको अर्थवान् कहते हो ? बताओ। तिनमें पहिला पक्ष तो ठीक नहीं है, क्योंकि उस अन्यापोहका यदि विचार किया जावेगा तो वह तुच्छ पदार्थ किसी भी स्वरूप न पडेगा। इसका हम समर्थन कर चुके हैं । अर्थात् विचारपर आरूढ अन्यापोह कुछ पदार्थ नहीं ठहरता है । ऐसी दशामें शब्द अन्यापोहको कहते हैं, यानी कुछ भी नहीं कहते हैं । यह तात्पर्य निकला दूसरे पक्षके अनुसार विचारोंसे नहीं परीक्षित किये गये कल्पित, व्यवहार्य, अन्यापोह करके तो वचनको अर्थवान् माना जावेगा, तब तो तिसी प्रकारके होते हुए बहिरंग घट, पट आदि पदार्थो करके उस शब्दको अर्थवान्पना क्या अनिष्ट है ? अर्थात् बहिरंग अर्थोंसे सहित होकर भी शब्द अर्थवान् हो सकता है, तथा व्यवहारी पुरुषकी बचनद्वारा बहिरंग अर्थोंमें प्रवृत्ति होना भी यों घटित हो जाता है । अतः अभावरूप अन्यापोह या विवक्षाके पक्षको छोडकर शद्बके वाच्य अर्थ बहिरंग घट, पट, आदि और अन्तरंग आत्मा, . सुख, ज्ञान, आदि पदार्थ मानने चाहिये।