Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
क्रियाका संपादन कर देगी । अतः वस्तुभूत हो जावेगी । यों हमारे ऊपर जातिके अवस्तुपनेका कोई दोष नहीं है । अब आचार्य कहते हैं कि यह तो नहीं कहना । क्योंकि खाना, पीना, दोहना, लादना आदि व्यवहारको करनेवाले पुरुषका उस जातिको केवल विषय करनेवाले ज्ञानसे कोई प्रयोजन नहीं सधता है । अर्थक्रियाके अभिलाषुकको भले ही ज्ञान न होय, किन्तु प्रयोजन सध जाना चाहिये। गौ, घट, पट इन व्यक्तियोंसे ढोना, दुहना, जल धारण, शीतको दूर करना आदि वाञ्छनीय अर्थक्रियाएं होती हैं । ये क्रियाएं गौ आदिकके ज्ञानसे नहीं होने पाती हैं । गोत्व आदि जातियां भी किसी कामकी नहीं हैं । लड्डु और जलके ज्ञानसे भूख प्यास दूर नहीं होती है। कार्यको सिद्ध करनेमें कारक हेतुओंकी आवश्यकता है । ज्ञापकोंकी नहीं।
.न शगजातौ लक्षितायामर्थक्रियार्थिनां व्यक्ती प्रवृत्तिरुपपद्यते अतिप्रसंगात् । ...यहां कोई यो उपाय करे कि शद्बके द्वारा अभिधावृत्तिसे जातिका ज्ञान होगा और तात्पर्यकी अनुपपत्ति होनेपर जातिसे लक्षणावृत्तिके द्वारा व्यक्तिका ज्ञान कर लिया जावेगा । इस कारण अर्थक्रियाको चाहनेवाले पुरुषोंका गौ, घट आदि व्यक्तियोंमें प्रवृत्ति होना बन जाता है। इसपर आचार्य कहते हैं कि यह उपाय तो अच्छा नहीं है, क्योंकि अतिप्रसंग हो जावेगा।भावार्थ-गंगा शबके साथ घोष कह देनेसे तात्पर्य न बननेके कारण गंगाकी गंगातीरमें लक्षणाकी जाति है। " गंगामें मछली हैं " यहां लक्षणा नहीं है। जब कि शादबोधके प्रकरणमें सर्वत्र लक्षणा मानी जावेगी तो आकाशमें रूप है । घटमें ज्ञान है । इन अशुद्ध प्रयोगोंमें भी लक्षणा करके निर्वाह किया जा सकेगा जो कि इष्ट महीं है तथा यो परम्परासे कार्य होना माना जाधे तब तो अनुमान, अर्थापत्ति आदिसे जाने गये पदार्थीको भी इन्द्रियविषयपना प्राप्त होगा, यह भी अतिप्रसंग हो जावेगा । इसीको स्पष्ट करते हैं कि
शद्वेन लक्षिता जातिय॑क्तीर्लक्षयति खकाः । संबन्धादित्यपि व्यक्तमशद्वार्थज्ञतहितम् ॥ १६ ॥ तथा ह्यनुमितेरों व्यक्तिर्जातिः पुननेः । कान्यथाक्षार्थताबाधा शब्दार्थस्यापि सिध्यतु ॥ १७ ॥ अक्षणानुगतः शद्बो जातिं प्रत्यापयेदिह ।
सम्बन्धात् सापि निःशेषा खव्यक्तीरिति तन्नयः ॥१८॥ " शब्द करके पहिले जाति कही जाती है। पीछे जाति और व्यक्तिका समवाय सम्बन्ध होनेके कारण यह जाति अपनी आधारभूत व्यक्तियोंका लक्षणावृत्तिसे ज्ञान करा देती है। इस प्रकारका कहना