Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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दिति चेत्, किमिदानीं शद्वतो गम्यमानोऽर्थः शद्वस्याविषयः। प्रधानभावनाविषय एवेति चेन, गम्यमानस्यापि प्रधानभावदर्शनात् यथा गुड़शद्धाद्गम्यमानं माधुर्य पित्तोपशमनप्रकरणे।
यदि व्यक्तिवादी यों कहें कि शबसे व्यक्तिकी प्रतीति हो चुकनेपर उस व्यक्तिका विशेषण हो रही जातिका ठीक ज्ञान हो जाता है, तिस ही कारण जाति जान ली ही जाती है, ऐसा कहोगे तब तो हम जैन कह देंगे कि व्यक्तिके समान इस प्रकार जाति भी शद्बका वाच्य अर्थ क्यों न हो जावें ? यदि तुम यों कहो कि उस जातिका शद्वमुद्रासे श्रावणप्रत्यक्ष द्वारा शाबोध नहीं हुआ है वह तो व्यक्तिके विशेषणरूपसे स्वयं ली गई है । ऐसा कहनेपर हम पूछते हैं कि क्या इस समय शद्बके द्वारा अर्थापत्तिसे जान लिया गया अर्थ शद्बका वाच्यगोचर न माना जावेगा ? भावार्थ-शबसे उध्यमान और गम्यमान दोनों ही अर्थ शब्दके वाच्य अर्थ हैं, जैसे कि गंगा शब्दका अर्थ गंगा और गंगाका तीर ( किनारा ) दोनों हैं। यदि तुम व्यक्तिवादी यों कहो कि शद्बके द्वारा कहे गये अर्थ तो प्रधानपनेसे शद्बके विषय हैं, किन्तु ऊपरसे यों ही समझ लिये गये अर्थ विचारे शब्दके प्रधानरूपसे विषय कैसे भी नहीं हैं । सो यह तो न कहना क्योंकि शद्बके द्वारा उपरिष्ठात् समझ लिये गये अर्थको भी प्रधानपना देखा जाता है, जैसे कि पित्तदोषको उपशम ( दूर करने ) के प्रकरणमें गुड शद्बसे विना कहे समझ ली गयी मधुरता प्रधान हो जाती है । एक प्रेमयुक्ता पत्नी परदेशको जानेवाले अपने पतिसे कहती है " गच्छ गच्छासि चेत् कान्त पंथानः सन्तु ते शिवाः। ममापि जन्म तत्रैव भूयाद्यत्र गतो भवान् " ॥ तुम जाते हो तो जाओ, किन्तु मैं यह चाहती हूं कि तुम्हारे पहुंचनेके पहिले वहां में जन्म ले लूं । इन वाक्योंका उच्यमान अर्थ प्रधान नहीं है । किन्तु तुम्हारे चले जाने पर मेरा मरना अवश्यम्भावी है, अतः नहीं जाओ! यह गम्यमान अर्थ यहां प्रधान है । " मञ्चाः क्रोशन्ति " खेतोंपर बांधे गये मचानों पर स्थित हो रहे रखानेवाले पुरुष चिल्ला रहे हैं, यहां उनमें रहने वाले मचान स्थित मनुष्य यह गम्यमान अर्थ मुख्य है ।
___ न चात्र जातेरप्रधानत्वमुचितं तत्पतीतिमन्तरेण प्रवृत्त्यर्थिनः प्रवृत्त्यनुपपत्तेः । यदि पुनोतिः शद्वाद्गम्यमानापि नेष्यते तत्प्रत्ययस्याभ्यासादिवशादेवोत्पत्तेस्तदा कथमशद्धाजातिप्रत्ययान प्रवृत्तिः ? पारम्पर्येण शद्वात् सा प्रवृत्तिरिति चेत्, करणात् किं न स्यात् ? यथैव हि शद्धाद्यक्तिमतीतिस्ततो जातिप्रत्ययस्ततस्तद्विशिष्टे हि तयक्तौ संप्रत्ययात्प्रवृत्तिरिति शद्मूला सा तथा शदस्याप्यक्षात्मतीतेरक्षमूलास्तु तथा व्यवहारान्नैवमिति चेत्, समानमन्यत्र ।
दूसरी बात यह है कि यहां व्यक्तिको प्रधान कहना और जातिको प्रधान न कहना उचित नहीं है। क्योंकि उस जातिका निर्णय किये विना शब्दके द्वारा घट आदिकोंमें प्रवृत्ति करनेके अभिलाषी पुरुषकी प्रवृत्तिका होना नहीं बन सकता है । यदि फिर तुम यह कहो कि शबसे जातिका अर्थापत्ति द्वारा समझ लेना भी हम नहीं मानते हैं, उस जातिका ज्ञान तो अभ्यास, प्रकरण, आदिके