Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्थचिन्तामाणः ।
२३७
महीं हैं और संपूर्ण चौकोर, तिकोना, छःकौना, गोल आदि रचनाविशेष स्वरूप परिणाम गुण भी आकृति नहीं है, तब तो क्या है ? ऐसा पूंछनेपर हम आकृतिवादी कहते हैं कि जो जातियां विशेष संस्थानोंसे प्रगट की गयी हैं ऐसी लोहितत्व, गोत्व, अश्वत्व, आदि जातियां आकृतिरूप हैं, वह आकृति तो विशेषसंस्थानोंसे नहीं प्रगट हुयीं सत्त्व, द्रव्यत्व आदि जातियोंसे निराली है। सभी सामान्य उन विशेष संस्थानों करके ही प्रगट होते हैं, यह नियम नहीं है । क्योंकि उस विशेष रचनासे रहित माने गये आकाश, काल आदि पदार्थोंमें भी सत्त्व, द्रव्यत्व ये सामान्य ( जाति.) विद्यमान हैं। इस कथनसे द्रव्यत्व नामका सामान्य भी विशेष संस्थानसे व्यंग्य नहीं है, यह कह दिया गया समझ लेना चाहिये । तथा दूसरी बात यह है कि उन गुणोंमें तो विशेषसंस्थान नहीं माना गया है। गुणमें गुण नहीं रहते हैं । संस्थान (परिमाण) चौवीस गुणों से एक गुण है। अतः गुणोंमें संस्थानके न होते हुए भी गुणत्व और सत्ता जाति रह जाती है । एवं उसीके समान आत्मत्व, दिशात्व आदि जातियां भी उन विशेषरचनाओंसे प्रगट नहीं होती है, इस बातको अनेक प्रकारसे समझ लेना चाहिये, किन्तु अनेक गौओंमें रहनेवाली गोत्व जाति तो फिर गलकम्बल, श्रृंग, कुकुद ( ठांठ ), पूछके प्रान्तमें बालोंका गुच्छा आदि विशेष रचनाके विना केवल शरीररूपी पिण्डके साथ युक्त नहीं हो जाती है, अन्यथा यानी सास्ना आदिके बिना भी चाहे जहां गोत्वका योग मान लिया जावे तब तो घोडा, भैंस, हाथी आदिके शरीरसे भी उस गोल्वके प्रगट होनेका प्रसंग हो जावेगा। अतः सिद्ध है कि विशेष अवयवोंकी रचनासे जो जाति प्रगट होती है, वह आकृति है। तैसे ही अनेक राजाओंमें रहनेवाली राजत्व अनेक मनुष्योंमें विशिष्टरचनासे व्यक्त हुयी मनुष्यत्व, पशुत्व आदि सभी विशेषजातियां आकृति हो जाती हैं । वे शब्दके वाच्य अर्थ हैं, इस प्रकार कोई आकृतिवादी कहता है।
सोऽपि न विपश्चित् । लोहितत्वादेः संस्थानविशेषरहितेन लोहितादिगुणेन व्यवच्छेद्यमानत्वात् । पचत्यादिसामान्यस्य च पचनादिकर्मणा तादृशेन व्यंग्यत्वादाकृतित्वाभावानुषङ्गात् । सत्त्वादिजातेश्चाकृतित्वानभ्युपगमे कथमाकृतिरेव पदार्थ इत्येकान्तः सिध्द्यत् । जातिगुणकर्मणामपि पदार्थत्वसिद्धेः।
____अब आचार्य महोदय कहते हैं कि वह आकृतिवादी भी विचारशील पण्डित नहीं है। क्योंकि लोहितपना ( रक्तता) पीतता, सुगन्धत्व आदि जातियोंको विशेष संस्थानोंसे रहित माने गये लाल पीले आदि गुणों करके पृथग्भूत होगयापना देखा जाता है, यानी गुणोंमें रहनेवाली जातियां विशेष संस्थानोंसे रहित होरहे गुणों करके ही प्रगट हो जाती हैं । कारण वही है कि गुणमें गुण नहीं रहता है। और पकाता है, घूमता है, दौडता है इत्यादि क्रियाओंमें रहनेवाली जातियां भी वैसे संस्थान विशेषोंसे रहित कहे गये पचन आदि कर्मोसे ही प्रगट हो जाती हैं, यदि विशेषसंस्थानोंसे ही आकृतिरूप जातिका उद्भूत होना मानोगे तो इन लोहितत्व, भ्रमणत्व, पाकत्व आदि जातियोंको