Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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व्याप्य विक्लेदन, विभजन, अधिश्रिति, आदि क्रियाओंमें व्यापकरूपसे रहनेवाली पचन सामान्यरूप आकृतिको पचति शब्द जता देता है। अतः आपसे माने गये भ्रमति, पचति, आदि क्रियाशद्ध भी आकृतिको ही कहते हैं । मनुष्य समुदायमें यह बात प्रसिद्ध है।
पचत्यादिशद्धः क्रियाप्रतिपादक एव नाकृतिविषय इति मा मंस्थाः स्वयमाकृत्यधिष्ठानस्य तस्य पचनादिक्रियाप्रत्ययहेतुत्वात् । पचतिशतो हि याः काश्चनाधिश्रयणादिक्रियास्तासां यानि प्रत्यर्थनियतान्यधिश्रयणत्वादिसामान्यानि तैः सहैकार्थे समवेतं यत्सर्वविषयं पचिसामान्यमभिव्यक्तं तत्प्रतिपादयति यथा भ्रमतिशद्धोऽनेककर्मविषयं भ्रमणसामान्य लोके।
पचति, चरति, प्लवते आदि शब्द क्रियाका ही प्रतिपादन करते हैं । आकृतिको विषय नहीं करते हैं, इसपर आकृतिवादी हम कहते हैं कि उक्त आग्रह नहीं मानना । क्योंकि पचन आदि क्रिय शद्बोंके द्वारा अपने आप आकृतिके अधिकरण हो रहे उस अर्थमें ही पकाना, चलना, आदि ज्ञान करानेकी कारणता है जिस कारणसे कि पका रहा है यह शब्द जो कोई भी विक्लेदन, खदरबदर, उसीजना आदि क्रियायें हैं उनके प्रत्येक क्रियारूप अर्थमें नियमित होकर रहते हुए अधिश्रयणत्व, विक्लेदनत्व आदि सामान्य हैं तिनके साथ एक अर्थमें समवायसम्बन्धसे रहता हुआ सब क्रिया धर्मोको विषय करनेवाला जो पचन सामान्य प्रगट हुआ है उसको प्रतिपादन करता है । भावार्थ-जिन्हीं क्रियाओंमें विक्लेदनपन आदि स्वरूप व्याप्य क्रियात्व रहता है वहीं व्यापक पचनसामान्य भी रहता है। अतः रूप, रसके साथ पुद्गल द्रव्यमें या ज्ञान, सुखके साथ आत्मद्रव्यमें एकार्थप्तमवायसम्बन्धसे रहती हुयी आकृतिका वाचक पचति शब्द पचन सामान्यको कह देता है। जैसे कि भ्रमति ( घूम रहा है )शद अनेक घमनेरूप क्रियाओंको विषय करनेवाले भ्रमणसामान्यका लोकमें प्रतिपादन करनेवाला माना जाता है।
तथा डित्थादिशद्वाश्च पूर्वापरविशेषगम् । यदृच्छत्वादिसामान्यं तस्यैव प्रतिबोधकाः ॥ ३९ ॥
यों द्रव्यशद, गुणशब्द, क्रियाशब्द, संयोगिशब्द समवायिशब्द सब आकृतिको कहते हैं। तैसे ही और डित्थ, डवित्थ, आदिक यदृच्छा शब्द भी पहिले तथा पीछे विशेषोंमें रहनेवाले यदृच्छापन आदि जातिरूप जो आकृति है उसीका ज्ञान करानेवाले हैं । केवल यदृच्छापन व्यक्तिको कहने वाले नहीं है । भावार्थ-यदृच्छा शब्द भी आकृति शद्ध है।
न हि डित्थो डवित्थ इत्यादयो यदृच्छाशद्धास्तैरपि डित्थत्वाद्याकृतेरभिधानात् । .