Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
२०१
तत्त्वार्थचिन्तामणिः
व्यक्तिका नाम रख दिया गया डित्थ शब्द यदृच्छा शब्द है । डित्थ शद्वसे तो वक्ता सम्बन्धी बोलनेकी
इच्छा रहनेवाली इच्छाव जातिकी प्रतीति होती है और जातिसे विवक्षित अर्थकी संयुक्तसमवाय या संयुक्तसमवेतसमवाय आदि सम्बन्धों करके ज्ञप्ति हो जाती है । भावार्थ — इच्छाव इच्छामें समवाय सम्बन्धसे रहता है और इच्छा समवाय सम्बन्धसे आत्मामें रहती है आत्मा व्यापक द्रव्य है । अतः विवक्षित अर्थ डित्थके साथ आत्माका संयोग सम्बन्ध है । अब ग्रंथकार कहते हैं कि इस प्रकार यह किसीका अकाण्ड ताण्डवकी चेष्टा करना शब्द और अर्थके सूक्ष्मतत्त्वों को न जाननेपनका ही विलास है । अविचारी रूखे शद्ब शास्त्री वैयाकरण ही ऐसी भोंडेपन की पंडिताई दिखाते फिरते हैं या सम्बधोंकी व्यर्थ चर्चा अपनी योग्यताको बेचकर कोरे हृदयहीन नैयायिक ऐसा फटाटोप दिखाया करते हैं। इसमें कुछ सार नहीं है । यों तो—
1
द्रव्यगुणकर्मणां विवक्षितार्थानां चैवमनुमेयानां शद्वार्यत्वाभिधानात्। शद्वात्परम्परया तेषां प्रतीयमानत्वात् शद्धार्थत्वे कथमक्षार्थता न स्यादक्षात्परंपरायाः प्रतीयमानत्वात् । शद्बो हि श्रोत्रेणावगतो जातिं प्रत्याययति सापि स्वव्यक्तीरिति सर्वः शद्बार्थोक्षार्थ एव ।
जिन अर्थोकी विवक्षा उत्पन्न हुयी है उन अनुमानके विषयभूत द्रव्य, गुण और कर्मको शद्वके वाच्य अर्थपनेका आपने कथन किया है । अर्थात् शद्वसे जाति और जातिसे द्रव्य आदि व्यक्तियोंका अनुमान किया गया है, यों तब तो अनुमानसे जानने योग्य व्यक्तियोंको आपने शद्वका वाच्य अर्थ मान कर कथन किया है । किन्तु अनुमान और शद्वको पृथक् पृथक् प्रमाण माननेवाले. नैयायिक, मीमांसक, कापिल और जैनोंके यहां शद्बजन्य ज्ञानका विषय अनुमेय अर्थ नहीं माना गया है, आगमप्रमाण और अनुमानप्रमाणका विषय भिन्न भिन्न होना चाहिये । किन्तु जातिको शका अर्थ माननेवालोंके उक्त कथनसे अनुमानके द्वारा जानी हुयी व्यक्तिमें वाचक शब्दकी वाच्याता कही गयी है, सो शाद्वबोधमें अनुमानकी व्यर्थ आकांक्षा करना युक्त नहीं प्रतीत होती है । यदि जातिको शवका वाच्यार्थ माननेवाले यों कहें कि शद्वसे जाति और जाति से व्यक्ति, इस प्रकार परम्परासे शद्वके द्वारा ही उन द्रव्य, गुण, कर्म व्यक्तियोंकी प्रतीति हो रही है । इस कारण उनको शद्वका वाच्य माना जावेगा, तब तो हम कहते हैं कि उन द्रव्य, गुण, कर्मोंको इन्द्रियों का विषयपना भी क्यों नहीं प्राप्त हो जावेगा । कारण कि इन्द्रियोंकर के परम्परासे द्रव्य आदिक प्रतीत हो रहे हैं, जब कि श्रोत्र इन्द्रियसे पहिले शब्द जान लिया जाता है, वह शद्ब शादप्रक्रियासे जातिका परिज्ञान कराता है, आपके मतानुसार पीछे वह जाति भी अपने आश्रय मानी गयीं व्यक्तियोंकी प्रतीति कराती
1
है । इस प्रकार शङ्खोंके सभी अर्थ इन्द्रियोंके ही विषयभूत अर्थ कहे जायेंगे । भावार्थ — जैसे शद्वसे जाति और जातिसे व्यक्तिको जाननेमें शद और व्यक्तिका एकको बीचमें देकर सम्बन्ध हो जाता है, वैसे ही कर्णेन्द्रियसे शब्द तथा शद्बसे जाति और जातिसे व्यक्ति इस प्रकार शब्द और व्यक्ति
26