Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
२१४
तत्वार्थ लोकवार्तिके
वे भी समीचीन परीक्षा करनेवाले नहीं हैं, क्योंकि जैसे उन्होंने संपूर्ण शद्बोंको शुद्धद्रव्यका वाचकपना माना है, तैसे ही संपूर्ण शब्दोंको केवल अपने स्वरूपके कथन करनेवालेपनका भी प्रसंग हो जावेगा । शद्बका अर्थ उस शद्वको ही माननेवाले ये दूसरे वादी भी इस प्रकार अवश्य कह देवेंगे कि विवाद में पडे हुए घट, पट, आत्मा, पर्वत, पुस्तक आदि सम्पूर्ण शब्द ( पक्ष ) अपने केवल स्वरूपको ही प्रकाश करनेवाले हैं ( साध्य ) क्योंकि वे शब्द हैं । ( हेतु ) जैसे कि मेघ -गर्जनका शब्द ( दृष्टान्त ) । अर्थात् मृदंगका धिम् किट् धम् ता आदि ध्वनि तथा झींगुर, मक्खी, भौंरा, आदिके शब्दोंका कुछ भी वाच्य अर्थ नहीं है । वे शब्द केवल अपने शद्वरूप शरीरका ही श्रावण प्रत्यक्ष कराते हैं किसी वाच्य अर्थका शाद्वबोध नहीं कराते हैं, तैसे ही अन्य गौ, शुक्ल, आदि शब्द भी केवल अपने शद्वस्वरूप ( डील ) को ही कहते रहते हैं अर्थको नहीं । किञ्चित् टिम, टिमाता हुआ दीपक जैसे अपने ही शरीरका प्रकाश करता रहता है पदार्थोंका नहीं, इस प्रकार इन शब्दवादियोंके ऊपर यदि कोई यों शंका करे कि अभी आप द्वारा कहा गया यह परार्थानुमानरूपी वाक्य अपने शद्वस्वरूपसे अतिरिक्त स्वरूप मात्रको प्रकाश करना रूप इस साध्यका ज्ञान कराता है तब तो शद्वत्व हेतुका इस अनुमान वाक्यसे ही व्यभिचार हो गया। क्योंकि आप मानते हैं कि शद्वका वाच्य अर्थ अपनी भिनभिनके अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है । किन्तु यहां अनुमान वाक्यसे आपने साध्यका ज्ञान कराना रूप अर्थ मान लिया है । यदि शद्ववादी इस अनुमान वाक्यका अर्थ अपने इष्ट साध्यको कथन करना न मानेंगे तो व्यभिचार टल गया, किन्तु ऐसी दशा में इस अनुमान से आपके अभीष्ट साध्यकी सिद्धि कैसे होगी ? अन्यथा अतिप्रसंग हो जावेगा । यानी यह वन्ध्यापुत्र जा रहा है, आकाशके फूलका सेहरा बांधे हुए है, मृगतृष्णाके जलमें स्नान करके आया है, शश (खरगोश) के सींगसे बनी हुयी तीर कमानको लिये हुए है इत्यादि अनर्थक वाक्योंसे अभीष्ट अर्थकी सिद्धि हो जावेगी । शुद्ध द्रव्यवादी यह दोष जैसे शद्ववादीके ऊपर उठाते हैं, तैसे ही अद्वैत शुद्धद्रव्यको वाचक शब्दका अर्थ सिद्ध करनेवाले अनुमानमें भी यही दोष लागू होगा । वे शुद्धद्रव्यवादी यह अनुमान मानते थे कि सभी गुण, कर्म आदिके वाचक शब्द ( पक्ष ) शुद्धद्रव्यके ही अभिधायक हैं ( साध्य ) शद्ब होनेसे ( हेतु ) जैसे आत्मा, ब्रह्म, सत्, चित् आदि शब्द हैं ( दृष्टांत ) । यहां केवल शुद्धद्रव्यतत्त्वसे उस द्रव्यका वाचकपना धर्म भिन्न ही होगा । जो कि शद्वरूप धर्मीका साध्य स्वरूप धर्म माना गया है । द्रव्यवादी यदि उस अनुमान वाक्यसे भी वाचकपनारूप धर्मका प्रकाश होना मानेंगे, तब तो द्रव्यवादियोंके शद्वत्व हेतुका उस वाचकत्व धर्मसे ही व्यभिचार हो जावेगा । यदि द्रव्यवाचकत्वरूप साध्यका उस वाक्यसे प्रकाश होना नहीं मानेंगे, तब तो द्रव्यवादियों के यहां द्रव्यवाचकत्वरूप साध्यकी सिद्धि ही न हो सकेगी। अनुमानके बोलनेसे फल भी क्या निकला ? कुछ नहीं । इस प्रकार शद्ववादी अपना पक्ष दूरतक अभी पुष्ट करेंगे ।