Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
सामान्य आदि पदार्थोंका भी सोलह पदार्थोंमें गर्भ नहीं हो सकता है । अतः सम्पूर्ण तत्त्वोंके संग्रह न हो सकनेके कारण नैयायिकोंके प्रमाण आदि सोलह पदार्थीका अक्षपाद (गौतम ) ऋषिके द्वारा उपदेश देना दोषोंको जीतनेवाला ( निर्दोष ) नहीं है । अर्थात् सोलह पदार्थोके माननेमें अधिक कहने और न्यून कहनेका दोष आता है।
द्रव्यादिषट्पदार्थानामुपदेशोऽपि तादृशः। सर्वार्थसंग्रहाभावादनाप्तोपज्ञमित्यतः ॥ ६१ ॥
कणाद ऋषिके द्वारा कहे गये वैशेषिकोंके द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवायरूप भावात्मक छह पदार्थोका उपदेश भी तैसा ही है, यानी नैयायिकोंके सोलह पदार्थ सरीखा ही है सातवां पदार्थ तुच्छ अभाव मिलनेपर भी पूर्णता नहीं आती । अतः वह उपदेश सम्पूर्ण पदार्थोका संग्रह न हो जानेके कारण निर्दोष नहीं है । प्रत्यभिज्ञान, तदात्मक सम्बन्ध, अवच्छेदकत्व, निरूपकत्व, आदि पदार्थोका अन्तर्भाव न होनेसे प्रतीत होता है कि वह सर्वज्ञ सत्यवक्ता आप्तके आद्यज्ञान द्वारा उपदिष्ट नहीं है । अतः रथ्यापुरुषके वचन समान आप्तोपज्ञ न होनेसे इस प्रकारका उपदेश मुमुक्षुपुरुषोंको श्रद्धान करने योग्य नहीं है।
सूत्रेऽवधारणाभावाच्छेषार्थस्यानिराकृतौ । तत्त्वेनैकेन पर्याप्तमुपदिष्टेन धीमताम् ॥ ६२ ॥
यदि नैयायिक और वैशेषिक यों कहें कि हमने तत्त्वोंकी संख्या करनेवाले सूत्रोंमें उन्हीं ही उतने ही तत्त्वोंका अवधारण करनेवाला एवकार तो नहीं लगा दिया है। अतः बचे हुए अविनाभाव, जिज्ञासा, और प्रत्यभिज्ञान, तादात्म्य, निष्ठत्व, मोक्ष आदि पदार्थोका निराकरण नहीं हो पाता है । भावार्थ-जैनोंके परिणामिक भावोंमें अन्य कर्तृत्व, प्रदेशवत्त्व, अस्तित्व, नित्यत्व आदि भावोंका जैसे समुच्चय हो जाता है, तैसे ही हमारे यहां भी कोई पदार्थ शेष नहीं रहता है । अनन्त पदार्थोकी गिनती कहांतक गिनायी जावे। जगदीश पण्डितजीने स्वरचित जागदीशीमें यही प्रगट किया है। ऐसा कहनेपर तो हम जैन कहेंगे कि तब तो एक ही तत्त्वके उपदेश देनेसे बुद्धिमानोंको पूर्णता प्राप्त हो जावेगी । सोलह और छह सात तत्त्वोंको बढाकर कहनेसे कोई प्रयोजन नहीं सधता है। पदार्थ, या भाव कह देनेसे अथवा प्रमाणतत्त्व या द्रव्यतत्त्व कहनेसे ही अवधारण न करते हुए अखिल प्रमेय, संशय आदि या गुण, कर्म आदिका समुच्चय हो जावेगा।
प्रमाणादिसूत्रे द्रव्यादिपत्रे वावधारणाभावादनध्यवसायविपर्ययजिज्ञासायविनाभावविशेषणविशेष्यभावमागभावादया संगृहीता एवेति सर्वसंग्रहे प्रमाणं तत्त्वं द्रव्यं तत्त्वमिति
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