Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थश्लोकवार्तिके
जातिः सर्वस्य शब्दस्य पदार्थों नित्य इत्यसन् । व्यक्तिसम्प्रत्ययाभावप्रसंगाध्वनितः सदा ॥ १५॥....
मीमांसक मतके अनुसार किसीका कहना है कि सर्व ही शब्दोंका अर्थ जाति स्वरूप नित्य पदार्थ है अर्थात् घटशद घटत्व जातिको और गो शब्द गोत्व जातिको कहता है । तभी तो एक व्यक्तिमें संकेतग्रहण कर सम्पूर्ण वैसी व्यक्तियोंको जान जाते हैं। आचार्य समझाते हैं कि इस प्रकार किसीका कहना सत्य नहीं है । क्योंकि यों तो शद्बोंसे सदा ही विशेष व्यक्तियोंके ज्ञान हो जानेके अभावका प्रसंग होगा। यानी गो शद्वके द्वारा गोत्व जातिको जाना जावेगा तो गो व्यक्तिका गो शद्वसे कभी ज्ञान न हो सकेगा।
कश्चिदाह-जातिरेव सर्वस्य शद्धस्यार्थः सर्वदानुवृत्तिप्रत्ययपरिच्छेद्य वस्तुस्वभावे शाहव्यवहारदर्शनात् । यथैव हि गोरिति शदोनुवृत्तिप्रत्ययविषये गोत्वे प्रवर्तत इति जातिस्तथा शुक्लशद्धस्तथाविधे शुक्लत्वे प्रवर्तमानो न गुणशद्धः । चरतिशद्धश्चरणसामान्ये प्रवृत्तो न क्रियाशदः, विषाणीति शद्रोऽपि विषाणित्वसामान्ये वृत्तिमानसमवायिद्रव्यशद्धा, दण्डीति शद्धश्च दण्डित्वसामान्ये वृत्तिमुपगच्छन्न संयोगिद्रव्यशः, दित्यशोपि बालकुमारयुवमध्यस्थविरडित्यावस्थासु प्रतीयमाने डिस्थत्वसामान्ये प्रवर्तमानो न यदृच्छाशद्धः।
यहां कोई प्रतिवादी लम्बा पूर्वपक्ष करता हुआ कहता है कि द्रव्यशब्द, गुणशब्द आदि सर्व ही शादोंका अर्थ जाति ही है । सर्व ही कालोंमें वैसाका वैसा ही अनुवृत्ति ज्ञानके द्वारा जाने गये जातिस्वरूप वस्तु स्वभावमें शद्बसे जन्य व्यवहार होता हुआ देखा जाता है। जिस कारणसे कि जैसे ही गौ यह शब्द तो गौ है, गौ है, गौ है, ऐसे वैसे के वैसे ही पछि वर्त्तनेवाले ज्ञानोंके विषय होरही गोत्व जातिमें प्रवर्त्त रहा है, इस कारण आप जैन उसको जाति शब्द कहते हैं, तैसे ही आप जैनोंका गुणशद्वपने करके माना गया शुक्लशब्द भी तिसी प्रकारकी शुक्लत्व जातिमें प्रवर्त रहा है। शुक्ल गुणमें भी जाति रहती है, एक शुक्लको देखकर अनेक शुक्ल वर्णीका ज्ञान हो जाता है। अतः शुक्ल शद्वको भी जाति शब्द्ध मानो ! गुण शब्द नहीं । तथा गमन करना, भक्षण करना; रूप क्रियाको कहनेवाला चरति शब्द भी चरनारूप सामान्यमें प्रवृत्त हो रहा है। क्रियामें भी सामान्य ( जाति ) रहता है। अतः चरति, गच्छति आदि क्रिया शब्द भी जातिशब्द हैं । स्वतन्त्र क्रिया शब्द नहीं । विषाणी ( सींगवाला बैल ) यह शब्द भी विषाणित्व जातिमें वर्त्त रहा है, अतः जाति शब्द है, समवायवाले द्रव्यको कहनेवाला समवायीद्रव्य शब्द नहीं है । और दण्डी यह शब्द भी दण्डित्वरूप जातिमें वृत्तिको प्राप्त हो रहा है, अतः जाति शब्द है, संयोगीद्रव्य शब्द नहीं। इस प्रकार किसी एक मनुष्यको कहनेवाला डित्य शब्द भी उस डित्थ जीवकी बालक, कुमार, युवा, मध्य,