Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थलोकवार्तिके
अतः स्वयं प्रत्यक्षसे ही इस यथोक्त बातका निश्चय किया जावेगा कि प्रत्यक्ष विधानका करनेवाला है निषेधका नहीं। ऐसी दशामें तो उस प्रत्यक्षको निषेधकपना सिद्ध होजाता है, क्योंकि प्रत्यक्ष स्वयं ही इस प्रमेयको जान रहा है कि मैं दूसरेका निषेध करनेवाला नहीं होता हूं। निषेधकपनेका निषेध करना ही निषेधकपन है, तब तो अपने निषेधकपनेको प्रत्यक्षप्रमाण स्वयं प्रतीत कर रहा है।
सन्ति सत्यास्ततो नाना जीवाः साध्यक्षसिद्धयः। प्रतिपाद्याः परेषां ते कदाचित्प्रतिपादकाः ॥ ४०॥
तिसकारण अनेक जीवतत्त्व परमार्थरूपसे सत्यभूत हैं, वे जीव अपने अपने स्वसंवेदन प्रत्यक्षसे अपनी होती हुयी सिद्धिसे सहित हैं। उन अनेक जीवोंमें कोई कोई जीव तो शिक्षा प्राप्त करने योग्य प्रतिपाद्य हैं और कतिपय जीव दूसरोंको शिक्षा देते हुए किसी समय प्रतिपादक हो जाते हैं। अथवा जो पहिले प्रतिपाद्य शिष्य हैं वे ही ज्ञानाभ्यास करते करते प्रतिपादक गुरु हो जाते हैं, उस समय अन्य आत्माएं प्रतिपाद्य हैं । _ यतश्चैवं प्रमाणतो नानात्मनः सिद्धास्ततो न तेषां प्रतिपाद्यप्रतिपादकभावो मिथ्या येन परार्थ जीवसाधनमसिद्धं स्यात् ।
__जिस कारणसे कि इस प्रकार अनेक आत्माएं प्रमाणसे प्रसिद्ध हो चुकी हैं, तिस कारण उन जीवोंको प्रतिपाद्यपना और प्रतिपादकपन झूठा नहीं है, जिससे कि दूसरोंके लिये जीव पदार्थकी सिद्धि करना असिद्ध माना जावे । भावार्थ-इस सूत्रकी अठाईसवीं (२८) वार्तिकके अनुसार दूसरे जीवोंके लिये वचनरूप अजीवके द्वारा जीवकी सिद्धि करना युक्त है।
परार्थं निर्णयोपायो वचनं चास्ति तत्त्वतः । तच्च जीवात्मकं नेति तद्वदन्यच्च किं न नः॥४१॥
परमार्थरूपसे देखा जावे तो दूसरोंके लिये जीवतत्त्वका निर्णय करानेके लिये उपाय वचन ही है और वह वचन जीवस्वरूप नहीं है। इस कारण जैसे वचन अजीव तत्त्व है उसीके समान अन्य धर्म, आकाश, काल आदि अजीव पदार्थ हमारे यहां क्यों नहीं माने जा सकेंगे ? । भावार्थवचनके अतिरिक्त पौद्गलिक शरीर, मन, घट, पुस्तक, गृह या अमूर्त आकाश, काल आदि अजीव तत्त्व भी हैं।
न ह्युपायापाये परार्थसाधनं सिध्यति तस्योपेयत्वादन्यथातिप्रसक्तेरिति । तस्योपायोऽस्ति वचनमन्यथानुपपत्तिलक्षणलिङ्गमकाशकम् ।
___ उपायके न होनेपर दूसरे जीवोंके लिये आत्मतत्त्वका साधन करना नहीं सिद्ध हो पाता है। क्योंकि वह आमतत्त्व उपायोंके द्वारा जानने योग्य उपेय है । अन्यथा यानी उपायके विना ही उपेय तत्वोंका जानना यदि बन जावेगा तो अतिप्रसंग होगा। सूक्ष्म और व्यवहित पदार्थोको भी