Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 2
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थ लोकवार्त
यो जीवव्यामोह हेतुस्तस्य प्रतिपक्षविशेषोऽस्ति यथोन्मत्तकरसादेः । तथा च दर्शनमोह इति न तस्य प्रतिपक्षविशेषस्य सम्पत्तिरसिद्धा ।
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जो पदार्थ जीवको चारों ओरसे विशेष मोहित करनेका कारण है उस पदार्थका नाश करनेवाला प्रतिपक्षी पदार्थ भी कोई अवश्य है । जैसे कि उन्मत्तताको करनेवाले मद्य रस, धतूरा आदि की शक्तियोंको नष्ट करनेवाले विरोधी पदार्थ हैं । जिन कारणोंसे ज्वर, श्लेष्म, खांसी आदि रोग उत्पन्न होजाते हैं उनके प्रतिपक्षी निदानोंसे वे रोग दूर भी होजाते हैं । आत्माको मूढ बनानेवाले अहिफेन, कुमंत्र आदि पुद्गल द्रव्यके निवारक प्रतिपक्षी पदार्थ संसार में विद्यमान हैं । और तैसा ही आत्माको तत्त्वार्थोके श्रद्धानमें न लगाकर कुतत्त्वोंकी ओर ( तरफ ) झुकानेवाला मोहक मोहनीय कर्म है । इस प्रकार उस कर्मके नाश करनेवाले द्रव्य, या अनिवृत्तिकरण, आदि विशेष प्रतिपक्षियोंकी किसी समय किसी आत्मामें अच्छी प्राप्ति होजाना असिद्ध नहीं है, सो सुनिये ।
स च द्रव्यं भवेत् क्षेत्रं, कालो भावोऽपि वाङ्गिनाम् । मोहहेतु सपत्नत्वाद्विषादिप्रतिपक्षवत् ॥ ११ ॥
मोहनीय कर्मके प्रतिपक्षको अनुमानसे सिद्ध करते हैं कि जीवोंके मोहनीय कर्मका वह प्रतिपक्षी पदार्थ ( पक्ष ) विशिष्ट द्रव्य, क्षेत्र और काल हैं तथा भांव भी हैं ( साध्य ) क्योंकि उन द्रव्य आदिकोंको मोहनीय कर्मके मिथ्या आयतन, रौद्रध्यान, आदि हेतुओंका शत्रुपना है | ( हेतु ) जैसे कि विष, अधिक भोजन, आदिके प्रतिपक्ष माने गये द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावोंके मिलनेपर विष और अधिक भोजनके दोषोंका नाश होजाता है । ( अन्वय दृष्टान्त) अधिक भोजनके दोषोंका वडवानल चूर्ण, पञ्चसकार चूर्ण आदि द्रव्यसे, समीचीन जल वायुके प्रदेशमें टहलनेसे, प्रातः काल व्यायाम, डेरे करवट लेटना आदि क्रियाओंसे नाश होजाता है, विषका भी द्रव्य आदिकसे नाश होजाता है, तैसे ही द्रव्य आदि कारणकूटसे मोह कर्मका नाश होजाता है ।
मोहहेतोर्हि देहिनां विषादेः प्रतिपक्षी बन्ध्यकर्कोट्यादि द्रव्यं प्रतीयते, तथा देवतायतनादि क्षेत्र, कालच मुहूर्तादिः, भावश्च ध्यानविशेषादिस्तद्वद्दर्शनमोहस्यापि सपत्नो जिनेन्द्रविम्बादि द्रव्यं, समवसरणादि क्षेत्रं, कालश्चार्ध पुद्गलपरिवर्तनविशेषादिर्भाववाधाप्रवृत्तिकरणादिरिति निश्रयते । तदभावे तदुपशमादिप्रतिपत्तेः, अन्यथा तदभावात् ।
जिस कारण से कि प्राणियोंको मोहके कारण होरहे विष आदि पदार्थों के प्रतिपक्षी द्रव्य तो बन्ध्य, ( विषकी शक्तिको निष्फल करनेवाली कोई विशेष औषधि ) कर्कोटी, ( विशेष फल, जडी, बूटी ) यन्त्र, मन्त्र, तन्त्र, गारुड, आदि प्रतीत हो रहे हैं, तथा विष, शरीर वेदना, बाबले कुत्ते, और लोखटीके काटनेका पागलपनको नाश करनेवाले क्षेत्र भी सुदेवोंके स्थान, धर्मशाला, मन्त्रशाला