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छक्खंडागम
संक्षेपमें इतना जान लेना आवश्यक है कि किसीभी गतिका कोई भी छोटा या बड़ा एक जीव लोकाकाशके असंख्यातवें भाग मेंही रहता है । किन्तु जब सामान्यसे पहिले गुणस्थानको लक्ष्य में रख कर पूछा जायगा कि मिध्यादृष्टि जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? तो इसका उत्तर होगा- सर्व लोकमें रहते हैं; क्योंकि ३४३ राजु घनाकार यह लोकाकाश स्थावर जीवोंसे ठसाठस भरा हुआ है । हालांकि त्रस जीव कुछ अपवादोंको छोड़कर त्रस नाडीके भीतर ही रहते हैं । दूसरे गुणस्थानसे लेकर चौदहवें गुणस्थान तकके जीव लोकके असंख्यातवें भाग में ही रहते हैं । केवल केवलि समुद्घातको प्राप्त सयोगिकेवलिजिन दंड और कपाट समुद्घातकी अवस्थामें लोकके असंख्यातवें भागमें, प्रतर समुद्घातके समय लोकके असंख्यात बहुभागोंमें और लोकपूरणसमुद्घातके समय सर्व लोकमें रहते हैं ।
मार्गणाओं की अपेक्षा किस मार्गणाका कौनसा जीव कितने क्षेत्रमें रहता है, इसका विस्तृत विवेचन इस प्ररूपणा में किया गया है । संक्षेपमें इतना जान लेना चाहिए कि जिस मार्गणा अनन्त संख्यावाली एकेन्द्रिय जीवोंकी राशि आती हो, उस मार्गणावाले जीव सर्वलोक में रहते हैं, और शेष मार्गणावाले लोकके असंख्यातवें भाग में रहते हैं । केवलज्ञान, केवलदर्शन, यथाख्यातसंयम आदि जिन मार्गणाओंमें सयोगि जिन आते हैं, वे साधारण दशामें तो लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं, किन्तु प्रतर समुद्घातकी दशामें लोकके असंख्यात बहुभागोंमें, तथा लोकपूरणसमुद्घातकी दशामें सर्व लोकमें रहते हैं । बादर वायुकायिक जीव लोकके संख्यातवें भागमें रहते हैं ।
४ स्पर्शनप्ररूपणा
क्षेत्रप्ररूपणा में जीवोंके वर्तमानकालिक क्षेत्रका निरूपण किया गया है, किन्तु स्पर्शन प्ररूपणा में वर्तमान कालके साथ अतीत और अनागतकालके क्षेत्रका विचार किया जाता है । जीव जिस स्थानपर उत्पन्न होता है, या रहता है, वह उसका स्वस्थान कहलाता है और उस शरीर के द्वारा जहां तक वह आता-जाता है, वह विहारवत्स्वस्थान कहलाता है । प्रत्येक जीवका स्वस्थान की अपेक्षा विहारवत्स्वस्थानका क्षेत्र अधिक होता है । जैसे सोलहवें स्वर्गके किसी भी देवका क्षेत्र स्वस्थानकी अपेक्षा तो लोकका असंख्यातवां भाग है । किन्तु वह विहार करता हुआ नीचे तीसरे नरक तक जा आ सकता है, अतः उसके द्वारा स्पर्श किया हुआ क्षेत्र आठ राजु लम्बा हो जाता है । इसका कारण यह है कि मध्य लोकसे नीचे तीसरा नरक दो राजुपर है और ऊपर सोलहवां स्वर्ग छह राजुकी ऊंचाईपर है । इस प्रकार छह और दो राजु मिलकर आठ राजुकी लम्बाईवाले क्षेत्रका भूतकालमें सोलहवें स्वर्गके देवोंने स्पर्श किया है । विहारके समान समुद्घात और उपपादकी अपेक्षा भी जीवोंका क्षेत्र बढ जाता है । वेदना, कषाय आदि किसी निमित्तविशेषसे जीवके प्रदेशोंका मूल शरीर के साथ सम्बन्ध रहते हुए भी बाहिर फैलना समुद्घात कहलाता है ।
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